मेरठ (ब्यूरो)। जनपद के प्राचीन और महाभारत कालीन वट यानि बरगद के पेड़ों के संरक्षण के लिए सात वट वृक्षों को विरासत सूची में शामिल किया गया है। जिनमें शहरी क्षेत्र के दो वट वृक्ष इस सूची में शामिल हैं। जिसमें से एक मेरठ कालेज और दूसरा गांधी बाग में है। हालांकि प्राचीन वट वृक्ष तलाशने का क्रम अभी जारी है।

इन वट वृक्षों का हुआ संरक्षण
मेरठ कॉलेज में स्थित वट वृक्ष के नीचे ही महात्मा गांधी ने आजादी के संघर्ष के दौरान बैठक की थी। 1920 में पहली बार वह मेरठ आए तो उन्होंने मेरठ कॉलेज में वट वृक्ष के नीचे ही यज्ञ में शामिल होकर आहुति दी थी।

हस्तिनापुर पांडेश्वर महादेव मंदिर महाभारतकालीन इतिहास संजोए है। माना जाता है कि इस प्राचीन मंदिर में बरगद के पेड़ को पांडवों ने बोया था। इस पेड के तने की गोलाई 6.8 सेमी है। जिसकी उम्र 130 साल तक होने का अनुमान है।

परीक्षितगढ़ के बढ़ला में भी 150 से 200 वर्ष पुराने वट वृक्ष हैं। इस वृक्ष के तने की गोलाई 480 सेमी है। इसके अलावा यहां के दो अन्य प्राचीन बरगद के वृक्षों को विरासत में शामिल किया गया है।

गांधी बाग स्थित शिव मंदिर के प्राचीन वट वृक्ष की शाखाओं से पूरा मंदिर ढका हुआ है। इस वट वृक्ष की भी परिक्रमा करना शुभ माना जाता है। यह वृक्ष 1857 की क्रांति और अंग्रेजों के जुल्मों का साक्षी है।

सरधना दौराला मार्ग स्थिति 100 साल पुराना वट वृक्ष, इसके ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व की डिटेल्स जुटाई जा रही हैैं।

फैक्ट्स एक नजर में
पेड़ों में पडऩे वाले वलय से उनकी उम्र का पता लगाते हैं।

वैज्ञानिक शोधों के मुताबिक बरगद, पीपल, पाकड़, गूलर व कदंब जैसे पेड़ों से ज्यादा मात्र में ऑक्सीजन निकलती है।

ये पेड़ वातावरण की कार्बन डाई आक्साइड को सोखकर भोजन बनाते हैं।

ये हवा में तैरते विषाक्त सूक्ष्म कणों एवं भारी तत्वों को भी अवशोषित कर वातावरण शुद्ध करते हैं।

महाभारतकालीन और अन्य ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व के स्थलों के 100 वर्ष से पुराने पेड़ों को संरक्षित करने की बड़ी कार्ययोजना पर लगातार काम चल रहा है। इसके तहत विरासत सूची में शहरी क्षेत्र के दो और देहात क्षेत्र के पांच वट वृक्ष शामिल हैैं।
राजेश कुमार, डीएफओ