मेरठ (ब्यूरो)। इसका खुलासा दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के रियलिटी चेक में हुआ। खुलासा हैरत में डालता है लेकिन इसके पीछे विभाग के अपने तर्क हैैं। खुलासा यह है कि गढ़ रोड पर करीब आधा दर्जन कालोनियों में एक बड़ी आबादी के घरों तक बिजली की सप्लाई बांस की बल्लियों के सहारे की जा रही है।

बल्लियों के सहारे सप्लाई
शहर के प्रमुख गढ़ रोड स्थित 132 केवी मेडिकल बिजलीघर से आसपास की दो दर्जन से अधिक प्रमुख कालोनियों को बिजली सप्लाई होती है। इस क्षेत्र में शिवशक्ति विहार, भोपाल विहार, संगम विहार कुछ ऐसी प्रमुख कालोनी हैं जो एमडीए और नगर निगम के दायरे में आती हैैं। बावजूद इसके इन कालोनियों के अंदर बल्लियों के सहारे बिजली के तार और कनेक्शन लोगों के घर तक पहुंचाए गए हैैं। हालांकि मेन रोड तक पावर सप्लाई सीमेंट के खंभों के सहारे की जा रही है। मगर कालोनी के अंदर मेन रोड से लेकर सैकड़ों गलियों तक केवल बांस की बल्लियां के सहारे ही बिजली की सप्लाई टिकी हुई है। यहां गलियों में जमीन में गड़ी होने के साथ-साथ दीवारों में फंसाकर बल्लियों पर बिजरी के तार टिकाए हुए हैं। घरों से लेकर स्कूल, दुकानें सब जगह इन बल्लियों के सहारे ही बिजली सप्लाई की जा रही है। ऐसे में अगर बल्लियों के गिरने से कभी कोई बड़ी दुर्घटना हो जाए तो उसका जिम्मेदार कौन होगा। इसका जवाब बिजली विभाग के पास नहीं है।

बनी थी योजना
बिजली चोरी रोकने के लिए इस साल की शुरुआत में पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम (पीवीवीएनएल) ने वर्ष 2024 तक मेरठ, सहारनपुर और मुरादाबाद मंडल के 14 जिलों के 65 लाख उपभोक्ताओं के घर, दफ्तर या अन्य प्रतिष्ठानों पर बिजली के प्रीपेड मीटर लगाने की तैयारी शुरू की थी। इसके तहत खुले तारों की जगह एबी केबल के साथ ही आम्र्ड केबिल डाले जा रहे हैं। इन कामों पर करीब 8000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।

एक नजर में फैक्ट्स
मेरठ जिले के 7.20 लाख घरों और प्रतिष्ठानों पर प्रीपेड मीटर लगाने का लक्ष्य

जिले के 3.20 लाख शहरी और 4 लाख ग्रामीण उपभोक्ताओं के यहां प्रीपेड मीटर लगेंगे

इसके तहत 13 हजार करोड़ में से करीब 3700 करोड़ रुपये मीटर खरीद पर खर्च होंगे

इस व्यवस्था के तहत शहर से वर्ष 2019-20 में लगाए गए 1 लाख 20 हजार स्मार्ट मीटर भी हटेंगे

पीवीवीएनएल का उपभोक्ताओं पर औसतन 30 फीसदी बिजली बिल हर माह बकाया

यह रकम हर माह करीब पांच हजार करोड़ के आसपास रहती है

लाइन लॉस का ग्राफ भी 25 फीसदी से अधिक बना हुआ है

इस क्षेत्र में हजारों परिवारों के घर तक बल्लियों के सहारे ही बिजली पहुंच रही है। कई बार मांग के बाद भी खंभे नहीं लगाए जा रहे हैं। इससे आए दिन हादसे भी हो रहे हैं।
शशिकांत गौतम

बिजली के खंभे के लिए कई बार बिजलीघर में अप्लाई किया लेकिन वहां खंभे पर लाइन खींचने का खर्च मांगा जाता है। जबकि यह विभाग की जिम्मेदारी है।
अंकित सिंह

यह तर्क दिया जा रहा है कि यहां बड़ी लाइन गुजर रही है इसलिए नीचे खंभे नहीं लगाए जा रहे हैं। स्थानीय लोग खंभों की मांग करते हैैं तो उनसे उनके खर्च पर ही खंभा लगाने को कहा जाता है।
प्रदीप कुमार

पहले आबादी कम थी पर अब हर घर में बिजली कनेक्शन पहुंच गया है तो बिजली की लाइन को व्यवस्थित क्यों नही किया जा रहा है। कई बार बिजलीघर में इस बाबत शिकायत की गई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
सचिन

यह समस्या 132 केवीए की लाइन के कारण है। इन लाइन के नीचे बिजली के पोल नहीं लगाए जा सकते हैं क्योंकि वह 132 की रेंज में आ सकते हैं। इसके लिए जल्द ही अंडरग्राउंड केबिल डालने की योजना पर काम शुरू किया जाएगा। इसके लिए बजट का इंतजार है।
सर्वेश कुमार, एसडीओ