सेकमोल में तैयार हो रहे 100 'इडियट्स'

- देश को लर्निग बाय डूइंग यूनिवर्सिटी देने की प्लानिंग में हैं सोनम वांगचुक

- यूनिवर्सिटी में 15 परसेंट ही चलेंगी क्लासेज और 85 परसेंट होगी प्रैक्टिकल नॉलेज

<सेकमोल में तैयार हो रहे क्00 'इडियट्स'

- देश को लर्निग बाय डूइंग यूनिवर्सिटी देने की प्लानिंग में हैं सोनम वांगचुक

- यूनिवर्सिटी में क्भ् परसेंट ही चलेंगी क्लासेज और 8भ् परसेंट होगी प्रैक्टिकल नॉलेज

Meerut: Meerut: फिल्म थ्री इडियट्स फुंगसुक वांगड़ू का कैरेक्टर जिससे प्रेरित था, वो मंगलवार को मेरठ पहुंचे। हम बात कर रहे हैं सोनम वांगचुक की। लद्दाख के अलची गांव से बिलोंग करने वाले सोनम वांगचुक को किताबी बातों पर नहीं, बल्कि करके सीखने पर ज्यादा यकीन है। जीवन में हरदम कुछ नया करना ही उनका लक्ष्य है, सोनम ने जीवनभर करके सीखने का सिद्धांत अपनाकर आज अपने जीवन को सरल बना लिया है कि लोग उनसे सीखने की प्रेरणा लेते हैं। मंगलवार को जब वो ट्रांसलेम एकेडमी पहुंचे तो लोगों में उनसे मिलने का जबरदस्त क्रेज दिखा।

नहीं देखा स्कूल

सोनम ने साढ़े नौ साल की उम्र तक स्कूल तक नहीं देखा था। उन्होंने बताया कि वह एक ऐसे गांव से बिलोंग करते हैं, जहां उस समय एक स्कूल तक नहीं हुआ करता था। सोनम ने पेड़ों पर कूदते फांदते हुए पशु-पक्षियों को देखा, उसने देखा कैसे जमीन से पानी चढ़ाया जाता है। इसी तरह के दृश्यों को देखकर ही उनको आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली है। सोनम ने कहा मैं नौ साल तक स्कूल नहीं गया। मैं खुद को भाग्यशाली समझता हूं, शायद इसी कारण मैं यहां तक पहुंच पाया हूं। सोनम के अनुसार जब बच्चा ढाई-तीन साल का होता है तो उसे स्कूल भेज दिया जाता है, किताबों का बोझ भी उसपर लाद दिया जाता है, जिसका सीधा असर बच्चे की क्रिएटिविटी पर होता है। इसलिए बच्चों को शुरू से ही किताबी बोझ पर न लादा जाए बल्कि एजुकेशन ऐसी हो जो बच्चों में प्रैक्टिकल करने की भावना जगाए।

छोटा उम्र से प्रयोग

सोनम ने बड़े होकर ही जीवन को प्रैक्टिकल नजरिए से नहीं देखा, बल्कि वह बचपन से ही जीवन को प्रैक्टिकल सोच के साथ लेकर चले हैं। वह जब सातवीं क्लास की पढ़ाई के लिए दिल्ली के केंद्रीय विद्यालय में आए थे उस समय भी प्रयोग किए थे। उन्होंने ने बताया कि उस समय दिल्ली में बहुत ही गर्मी थी तब उन्होंने वैपरेशन टेक्नीक पर आधारित कॉटन शीट का कॉर्नर बनाकर एक एसी बनाया था। सोनम को सुबह जागने के लिए किसी अलार्म से कोई असर नहीं पड़ता था। इस कंडीशन में उन्होंने एक आइडिया निकाला था, जिसमें उन्होंने अलार्म के साथ पानी कप का कनेक्ट करके रख दिया था। जिससे पानी गिरने पर उसकी नींद झट से खुल जाया करती थी। सोनम हमेशा से वेस्ट मैटिरियल का यूज करके कुछ स्पेशल बनाने की कोशिश करते हैं।

कोई नहीं होता फेलियर

हम अपनी क्लास में अंक अच्छे नहीं लाते और फेल हो जाते हैं, जीवन में हम खुद को फेलियर मान लेते हैं। लेकिन हर इंसान के पीछे कोई न कोई प्रतिभा छुपी होती है, जिसे हम पेरेंट्स के प्रेशर के कारण समाज की सोच के कारण दबा लेते है। उनके अनुसार यहां ये सोचने की आवश्यकता है कि वह बच्चा फेलियर नहीं है, बल्कि व्यवस्था फेल हो रही है। इसी उद्देश्य को लिए ही उन्होंने सेकमोल कैंपस बनाया है। इस कैंपस में वो बच्चे आते हैं, जो स्कूल के मूल्यांकन में भले ही फेल हो गए हों, लेकिन जीवन में वह बहुत ही बड़ी सफलता हासिल कर सकते हैं। कैंपस में अभी सौ स्टूडेंट पढ़ रहे हैं, जो देश विदेश से पढ़ने आए हुए हैं।

साइंटिस्ट बनने को साइंस पढ़ना जरुरी नहीं

वांगचुक के अनुसार देश में कई साइंटिस्ट ऐसे भी हुए हैं, जिन्होंने साइंस नहीं पढ़ा और वो साइंटिस्ट हैं। उनके अनुसार साइंटिस्ट बनने के लिए साइंस पढ़ना जरुरी नही है। जिस चीज में रुची हो वही करनी चाहिए, हर कोई अपनी रुची के अनुसार अपने फिल्ड में साइंटिस्ट बन सकता है। हमारे देश में बड़ी कनफ्यूजन ही रुची है। माता पिता यह ध्यान नहीं दे पाते आपका बच्चा किसको कैसे देखता है। हम केवल किताबी कीड़ा बनकर ही रह जाते हैं।

बदलाव की है आवश्यकता है

वांगचुक के अनुसार जूनियर लेवल से ही एजुकेशन में सुधार की आवश्यकता है। इसके लिए शिक्षकों का प्रशिक्षण होना चाहिए कि बच्चे कैसे सीखते हैं। पेरेंट्स को भी बदलने की आवश्यकता है। अक्सर हम सोचते हैं साइंस मंत्र है, लेकिन साइंस कोई मंत्र नहीं है। इसके लिए साधारण जनता की सोच बदलनी होगी। हमें एजुकेशन में ऑरिजनलिटी लानी होगी तभी बदलाव आएगा।

लर्निग बाय डूइंग यूनिवर्सिटी बनाएंगे

सोनम वांगचुक जल्द ही एक लर्निग बाय डूइंग यूनिवर्सिटी बनाने वाले है। करके सिखों सोच को लेकर ही वह यह यूनिवर्सिटी बना रहे हैं। इस यूनिवर्सिटी में 8भ् प्रतिशत बाहरी दुनिया की गतिविधि और क्भ् क्लासेज होंगी।

बनाया है ग्लेशियर

वांगचुक ने अभी हाल में लदाख के गांव में पानी की कमी को देखते हुए गुरुत्वाकर्षण के माध्यम से बर्फ का ग्लेशियर भी बनाया था। जिससे बारिश न होने पर पानी की कमी होने पर किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए यह ग्लेशियर काम आ सकें।