- यूपी बोर्ड परीक्षा में कक्ष निरीक्षकों की कमी ने खड़े किए सवाल

- सामने आ रहा है शिक्षा विभाग में शिक्षकों की कमी का सच

Meerut। माध्यमिक शिक्षा परिषद की परीक्षा ने स्कूली शिक्षकों की संख्या पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जनपद में तीन सौ से अधिक स्कूलों में बोर्ड परीक्षा कराने के लिए शिक्षक नहीं मिल रहे हैं। मजबूरन में स्कूलों को चपरासी और बाबू लगाने पड़ रहे हैं। बोर्ड परीक्षा में कक्ष निरीक्षक बने हुए हैं। देखा जाए तो बोर्ड परीक्षा ने माध्यमिक शिक्षा परिषद के स्कूलों की पोल खोल दी है। इसके साथ ही बोर्ड के नियमों के अनुसार कॉलेजों में शिक्षकों की संख्या पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।

तलाशने पर नहीं हैं कक्ष निरीक्षक

यूपी बोर्ड एग्जाम में कक्ष निरीक्षकों को खोजने के लिए शिक्षा विभाग के पसीने छूट रहे हैं, जबकि विभाग के पास वित्तविहीन स्कूलों को छोड़कर 160 से अधिक स्कूल हैं। इतने स्कूलों में पढ़ा रहे हजारों शिक्षकों के बावजूद कक्ष निरीक्षकों की कमी है। जिले में परीक्षा संपन्न कराने के लिए माध्यमिक शिक्षा विभाग को 6 हजार कक्ष निरीक्षकों की जरुरत थी, लेकिन विभाग कड़ी मशक्कत के बाद भी पूरे कक्ष निरीक्षकों की नियुक्ति नहीं कर पाया है और माध्यमिक शिक्षा परिषद को बेसिक शिक्षा विभाग के शिक्षकों का सहारा लेना पड़ रहा है।

नहीं हुई स्कूलों में नियुक्तियां

परीक्षा के दौरान हर साल कक्ष निरीक्षकों का टोटा परीक्षा केंद्रों पर देखने को मिलता है, जिसका मुख्य कारण स्कूलों में शिक्षकों का अभाव माना जा रहा है। मगर सूत्रों मानें तो 2011 से माध्यमिक शिक्षा विभाग के स्कूलों में नियुक्तियां नहीं हो पाई हैं, जिसके चलते इन विद्यालयों में 40 प्रतिशत तक शिक्षकों का अभाव पाया जाता है। परीक्षा के लिए जनपद के 392 में से केवल 140 विद्यालयों को ही केंद्र बनाया गया है।

ये हैं स्कूलों का हाल

-392 स्कूलों के पास है माध्यमिक शिक्षा परिषद की मान्यता।

-38 विद्यालय हैं सरकारी।

-133 है सहायता प्राप्त विद्यालय।

- 232 है वित्तविहीन विद्यालय।

-हाईस्कूल में कम से कम होने चाहिए सात शिक्षक।

- इंटरमीडिएट विद्यालय में होने चाहिए कम से कम 12 शिक्षक।

कक्ष निरीक्षक के लिए लगाई ड्यूटी न देने वाले शिक्षकों पर कार्रवाई की जाएगी।

श्रवण कुमार यादव, डीआईओएस