कामकाजी महिलाओं में लगातार बढ़ रहा स्ट्रेस और डिप्रेशन
जिला अस्पताल की मेंटल ओपीडी रोजाना आती हैं 80 से 90 महिलाएं
>Meerut। अधिकारों और अस्तित्व की चाहत में नजरअंदाज होती महिलाएं अवसाद में डूब रही हैं। पढ़े-लिखे वर्ग में ही नहीं, कम पढ़े-लिखे तबके में भी यह समस्या अब तेजी से उभरकर सामने आ रही है। स्थिति यह है कि टर्निग 36 यानी 35 की उम्र पार कर चुकी महिलाएं डिप्रेशन की अलार्मिग स्टेज पर पहुंच चुकी हैं। जिला अस्पताल की मानसिक ओपीडी में आने वाली करीब 35 से 40 प्रतिशत महिलाओं की कहानी यही दास्तां बयां कर रही है।
यह है स्थिति
जिला अस्पताल में हफ्ते में तीन दिन मानसिक ओपीडी का संचालन किया जाता हैं। इसमें एक दिन में लगभग 150 मानसिक रोगी पहुंचते हैं, जिसमें 80 से 90 महिलाएं होती हैं। इन्हीं महिलाओं में करीब 40 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं, जो परिवार में ही नजरंदाज किए जाने की वजह से अंदर ही अंदर घुटकर अवसाद का शिकार हो रही हैं। जिला अस्पताल की क्लीनिकल साइकलोजिस्ट डॉ। विभा नागर बताती हैं कि डिप्रेशन से ग्रस्त महिलाएं 35 से 45 आयुवर्ग की हैं। घर के जरूरी फैसलों में राय न लिया जाना, फाइनेंशियल लेवल पर कमजोर होना, बच्चों को लेकर खुद के फैसले न ले पाना जैसी बातें अवसाद की वजह बन रही हैं।
लक्षणों से पहचानें डिप्रेशन
डिप्रेशन से ग्रस्त व्यक्ति अक्सर चिड़चिड़ा हो जाता है। इसके अलावा अकेले रहना पसंद करना, किसी से बात नहीं करना, खुद को अलग-थलग रखना, व्यवहार में परिवर्तन, हेल्पलेस महसूस करना डिप्रेशन के लक्ष्ाण हैं।
ऐसे करें बचाव
रुचिपरक कार्य करें
कॉन्फिडेंस लेवल बढ़ाएं
घर के लोगों से बात करें, अकेले न जूझें
सेल्फ एस्टीम बढ़ाएं
जगह परिवर्तन करें
मनोचिकित्सक से मिलकर परामर्श लें।
शुरुआती स्टेज में डिप्रेशन को समझना आसान नहीं होता हैं लेकिन जैसे-जैसे यह बढ़ता है, व्यक्ति के मन में आत्महत्या तक के विचार आने लगते हैं। अवसाद से निकला जा सकता हैं, बस जरूरी है कि समय रहते मनोचिकित्सक से राय ले ली जाए।
डॉ। कमलेंद्र किशोर, मनोचिकित्सक, जिला अस्पताल