-विभिन्न शहरों से बुक होकर कैंट रेलवे स्टेशन पहुंची 26 गाडि़यों को लेने नहीं आए ओनर

-24 साल से पड़ी गाडि़यां हो चुकी हैं कबाड़

कैंट रेलवे स्टेशन के पार्सल में स्पेशल 26 गाडि़यां हैं। जो अब कबाड़ में बदल गयी हैं। कई गाडि़यां तो पिछले 24 साल से धूल फांक रही हैं। लेकिन इनके मालिक इन्हें अब तक लेने नहीं आये। दरअसल गाड़ी की कीमत से ज्यादा रेलवे का वारफेज 'स्थान शुल्क' हो गया है। यहां बुक होकर आने वाले पार्सल पर लगने वाला वारफेज गाडि़यों की कीमत से ज्यादा हो गया। अपने मालिक के इंतजार में ये गाडियां कैंट स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर पांच स्थित पार्सल शेड में खड़े-खड़े कबाड़ हो चुकी हैं। विभागों की औपचारिकता के चक्कर में इनका ऑक्शन भी पिछले 23 साल से लटका हुआ है। जबकि इसके लिए लगातार पार्सल घर की ओर से लिखा पढ़ी की जा रही है।

सीन-वन

सन् 1996 में वड़ोदरा जंक्शन से बनारस के लिए बुक हुई बजाज गाड़ी वाराणसी जंक्शन पर पहुंच तो गयी, लेकिन इसके मालिक आज तक नहीं पहुंचे। अपने मालिक के इंतजार में कैंट स्टेशन के पार्सल शेड में खड़ी इस गाड़ी को आज पहचानना मुश्किल है। इसका वारफेज गाड़ी की कीमत से कहीं ज्यादा हो गया है।

सीन-टू

बिहार के मोर स्टेशन से सन् 1997 में बनारस के लिए राजदूत मोटरसाइकिल बुक हुई थी। यह बाइक कुछ दिन तक स्टेशन पर पड़ी रही, लेकिन इसे कोई लेने नहीं पहुंचा। जब इस बाइक के ओनर को सूचना दी गयी तो उसने पूछा कि कितना पैसा लगेगा। वारफेज पता चलने के बाद वह लौटकर नहीं आया।

सीन-थ्री

झांसी रेलव स्टेशन से चार अक्टूबर 2019 को बुक हुई मोटरसाइकिल कैंट स्टेशन पहुंच गयी है। यहां पहुंचने के बाद इस बाइक के ओनर से लगातार संपर्क करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन उसका मोबाइल फोन नॉट रिचेबल है। जिससे संपर्क नहीं हो पा रहा है। एसी स्थिति में छह महीने से अधिक होने के कारण इस बाइक को भी रेलवे प्रशासन ने ऑक्शन की लिस्ट में दर्ज कर लिया है।

रेल मैनुअल के तहत पार्सल विभाग की तरफ से प्लेटफॉर्म और गोदाम में स्थान उपलब्ध कराने के नाम पर वाहन स्वामियों से वारफेज शुल्क वसूलने का नियम है। पार्सल शेड में खड़ी 26 गाडियां उन्हीं में शामिल हैं। इन गाडि़यों में 1996, 97, 98 सहित लगभग सभी साल में कैंट स्टेशन पहुंची गाडि़यां हैं। कुछ गाडियां 24 साल, कुछ 22 साल, 18, 15 तो कुछ 10 साल से खड़ी हैं। ये गाडि़यां ट्रेनों से बुक होकर यहां पहुंची थी। लेकिन चार्ज बढ़ने के कारण वाहन स्वामियों ने उसे यहीं पर छोड़ दिया। वो फिर लौटकर वापस नहीं आए।

दस रुपये बढ़ता है रेट

ट्रेन में बुक कर भेजे गए पार्सल के स्टेशन पर पहुंचने के बाद उसको रखने का अलग-अलग रेट है। टू व्हीलर के लिए स्टेशन पर पहुंचने के छह घंटे तक कोई चार्ज नहीं लिया जाता है। इस बीच यदि मालिक पहुंच गया तो उसे कोई शुल्क नहीं देना होगा। वह बिल्टी दिखाकर अपना वाहन अपने साथ ले जा सकता है। लेकिन यदि छह घंटे तक वह अपना वाहन लेने नहीं आता है तो उसे प्रति घंटे दस रुपये चार्ज देना होगा। यह वारफेज चार्ज कई बार इतना अधिक हो जाता है कि लोग अपना बुक किया हुआ सामान लेने ही नहीं आते हैं।

वाहनों के निस्तारण की है उम्मीद

लंबे समय से प्लेटफॉर्म नंबर पांच स्थित पार्सल शेड में खड़ी गाडियां कबाड़ हो चुकी हैं। इनका समय से डिस्पोज ऑफ न होने से कर्मचारियों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है। वहीं जगह के अभाव में सामान को शेड के बाहर ही रखना पड़ रहा है। विभागीय स्तर पर वाहनों के निस्तारण के लिए आरटीओ को कई बार लेटर लिखा गया। लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं मिला। इस उदासीनता के कारण अब तक वाहनों को नीलाम नही किया जा सका।

छह महीने तक इंतजार का नियम

- रेलवे ने पार्सल के लिए गाइडलाइन बनाया है।

- बुक होकर स्टेशन पर पहुंचे सामान यदि उसे लेने के लिए कोई छह महीने तक नहीं आता है तो उसकी नीलामी की जा सकती है।

- लेकिन गाडि़यों के मामले में आरटीओ से परमिशन की प्रक्रिया है।

- यही वजह है कि लगभग 24 साल से पार्सल शेड में पड़ी गाडि़यों के विभागीय फार्मेलिटी के चक्कर में नीलाम नहीं हो पायी हैं।

- 15 जनवरी 2021 को भी रेलवे पार्सल घर की ओर से आरटीओ को लेटर भेजा गया है।

- अभी तक इसका जवाब कैंट रेलवे स्टेशन नहीं पहुंचा है।

-अब आरटीओ की झंडी मिले तो इनका आक्शन हो।

ये भी जानें

26

गाडि़यां हैं रेलवे के पार्सल घर में

24

साल से कई गाडि़यों को लेने नहीं आये ओनर

23

साल से इन गाडि़यों का नहीं हो सका है ऑक्शन

10

रुपये पर आवर का है वारफेज चार्ज

कैंट रेलवे स्टेशन की ओर से गाडि़यों के निस्तारण के लिए मालिकों सहित आरटीओ को सूचना दी जा रही है। लेकिन इनकी ओर से कोई पहल नहीं हो रही है। ऐसे में ये गाडि़यां कबाड़ बन चुकी हैं।

आनंद मोहन, डायरेक्टर

कैंट स्टेशन