वाराणसी (ब्यूरो)। सबसे बड़ी समस्या सीनियर और जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर्स के हॉस्टल बिल्डिंग में लगी लिफ्ट भी है, जो कई सालों से खराब है। एक की सांसे चल भी रही थी तो उसकी भी सांसे दिवाली के दिन यानी गुरुवार की भोर में थम गई।

बस नाम की सुविधाएं
बीएचयू हॉस्पिटल को पूर्वांचल के एम्स का दर्जा दिया जाता है। यहां कई राज्यों और जनपदों से मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। बीएचयू के डॉक्टर इनका इलाज भी करते हैं। लेकिन ट्रामा सेंटर कैंपस में डॉक्टरों के रहने के लिए बने 7 मंजिल सुश्रुत हॉस्टल में सुविधाओं के नाम पर सिर्फ शीशे की खिड़किया और ईंट की दीवारें हैं। सुश्रुत हॉस्टल में बीएचयू के करीब 400 से अधिक रेजिडेंट डॉक्टर रहते हैं। इनमें से 25 में अधिक डॉक्टर दिव्यांग हैं। एक डॉक्टर एक कमरे का करीब 12 हजार हाउस रेंट अलाउंस देता है।

सीढ़ी चढऩे में परेशानी
इतना चार्ज देने के बाद भी फ्री-वाईफाई, शुद्ध मिनरल वाटर और लिफ्ट जैसी मूलभूत सुविधाएं तक नसीब नहीं है। यहां लगे चार लिफ्ट में से तीन कई सालों से खराब हंै। एक कभी चलता है कभी बंद हो जाता है। आलम यह है कि उसकी भी गुरुवार की सुबह सांसे थम गई। सुश्रुत हॉस्टल में 25 से अधिक दिव्यांग डॉक्टर भी रहते हैं। इनको अपने कमरे तक चढ़ कर आने-जाने में जान पर बन आती है।

फाइलों में उलझी है फैसिलिटी
विदित हो कि बीएचयू का पूरा कैम्पस वाईफाई से युक्त है, लेकिन जहां सबसे ज्यादा जरूरी है। वहां डाक्टरों के हॉस्टल तक यह सुविधा नहीं है। इस हॉस्टल में बीएचयू के मेडिकल, आयुर्वेद और डेंटल तीनों फैकल्टी के सीनियर और जूनियर रेजिडेंट रहते हैं। इन्हें डॉक्टरी के अलावा 24 घंटे रिसर्च का कार्य भी करने के लिए हाई स्पीड इंटरनेट की जरूरत पड़ती है, लेकिन वाईफाई के केवल सेंट्रल ऑफिस के फाइलों से निकलकर यहां तक नहीं पहुंच पा रही है।

68 हो चुके हैं खाली
इस असुविधा ने डॉक्टरों को काफी परेशान कर रखा है। हॉस्टल में 410 कमरे हैं, लेकिन अब इसमें 68 खाली हो चुके हैं। डॉक्टरों का कहना है कि इससे बेहतर दस हजार में कैंपस के बाहर पूरे सुख-सुविधाओं से युक्त हॉस्टल लिया जा सकता है।

जेब से लगाते हैं ट्यूबलाइट
एक रेजिडेंट डॉक्टर ने बताया कि जब लाइट चली जाती है तो यहां लगे हुए पुराने सरकारी लैम्प और लाइट चुक-चुक यानी जलती-बुझती रहती है। इससे डर टाइप का माहौल बन जाता है। कई बार शिकायत करने के बाद भी प्रशासन द्वारा लाइट नहीं बदला जाता है तो खुद के खर्च से ही ट्यूबलाइट-एसीएफएल करके लगाना पड़ता है।

बच के रहना रे बाबा!
विदित हो कि 7 साल पहले सुश्रुत हॉस्टल का निर्माण बीएचयू के ट्रामा सेंटर और अन्य विभागों में काम करने वाले डॉक्टरों के लिए बनाया गया था। हॉस्टल में चार लिफ्ट है। अब सभी लिफ्ट खराब है। एक तो एकदम जर्जर हालत में पड़ा हुआ है। इसका इस्तेमाल जानलेवा हो सकता है। इसके स्विच टूटे हुए हैं और भूतिया टाइप का दिखता है।

पहले से ही की जा रही अनदेखी
सुश्रुत हॉस्टल का निर्माण 2014 में हुआ था, तब से ही यहां पर यह सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं। हाल ही में दो मेस और दो कैंटीन स्टार्ट किए गए। इसके बारे में आईएमएस-बीएचयू के निदेशक प्रोफेसर बीआर मित्तल ने बताया कि बताया कि कंप्यूटर सेंटर को जल्द से जल्द इस व्यवस्था को बहाल करने के लिए कहा गया है। सुश्रुत हॉस्टल में स्विच, केबल और अन्य चीजों के लिए करीब 90 लाख का स्टीमेट आया है। जल्द ही असुविधाओं को दूर कर लिया जाएगा।