वाराणसी (ब्यूरो)। प्रति महीने 30 क्विंटल गांजे की खपत, यह बताने के लिए काफी है कि शहर बनारस किस कदर नशे की गिरफ्त में है। घाट, गलियों, विवि कैंपस, कॉलेज के नुक्कड़ और साधु, फॉरेनर, रिक्शा चालकों के साथ युवाओं का एक वर्ग जमकर गांजा फूंक रहा है। चुनाव के समय गांजा की खपत का ग्राफ अचानक बढ़कर रेड जोन में चला जाता है। बनारस में गांजा की दो किस्में प्रचलित हैं। इनमें एक है नागिन और दूसरी मर्चइय्या। बनारसी गंजेड़ी नागिन ढूंढ़ते हैं। राज्य सूचना निदेशालय की ओर से मादक पदार्थों की तस्करी और गैर कानूनी रूप से इस्तेमाल को लेकर यूपी के शहरों का डेटा जारी किया गया है।
आया नाकारात्मक परिवर्तन
बनारस की सदियों से पहचान पानी, पहलवानी और पोषक खानपान की रही है। यहां के युवा दूध, देसी घी, लस्सी और कुश्ती-व्यायाम से शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखते हैैं। लेकिन डेढ़ दशकों से शहर के मिजाज में नाकारात्मक परिर्वतन आया है। साधु-संयासी और रिक्शा चालकों द्वारा सेवन किया जाने वाला गांजा, अब आम चलन में आ गया है। जो कभी घाटों पर चोरी छिपे इस्तेमाल किया जाता था, अब खुलेआम हो रहा है। मानों यह ट्रेंड बन गया है। नतीजा सबके सामने है, बनारस में नशेडिय़ों की लंबी फौज। इनमें सबसे अधिक संख्या युवाओं की है।
गंजेडिय़ों के अड्डे
बनारस में बीएचयू व इसके आसपास का इलाका, लंका, कबीरचौरा, चौकाघाट, पांडेयपुर स्थित जिला हॉस्पिटल कई वर्षों से गंजेडिय़ों का बड़ा अड्डा है। कैंट, बनारस स्टेशन, सिटी और काशी रेलवे स्टेशन पर दिनभर युवाओं समेत गंजेडिय़ों को चिलम सुलगाते देखा जा सकता है।
एक पुडिय़ा 50 रुपए
शहर के कई हिस्सों जैसे लंका, कबीरचौरा, खोजवां, लहरतारा, बेनियाबाग, चौकाघाट, कमच्छा, पीलीकोठी, कोनिया, शिवपुर, भोजूबीर, सामनेघाट, कज्जाकपुरा, चेतगंज, पांडेयपुर समेत पूरे गंगा घाट इलाके के समीप बसे मोहल्ले और कॉलोनियों में 50-70 रुपये में गांजे की पुडिय़ा आसानी से मिल जाती है। कहीं-कहीं रेट अधिक हो सकता है। एबीसीडी की रिपोर्ट के अनुसार बनारसियों (30 क्विंटल प्रति महीने) से ज्यादा दिल्ली और मुंबई के गंजेड़ी चिलम फूंकते हैं। दोनों शहरों में इस नशे की सालाना खपत क्रमश: 38.36 और 32.38 मीट्रिक टन है।
तस्कर बने चुनौती
बनारस में पुलिस की नाक के नीचे से हर किस्म के गांजा की तस्करी होती है। गांजा की सप्लाई करने वाले तस्करों की चेन इतनी मजबूत है कि इसे भेद पाना आसान नहीं है। उड़ीसा, बिहार, साउथ इंडिया व नार्थ इंडिया से माल यहां आता है। तस्करों के नेटवर्क घाट पर पड़े साधु से लेकर रिक्शा चलाने वालों तक से जुड़े हैं। गंगा घाटों पर मौजूद तमाम साधु वेशधारी नशे की तस्करी में अहम भूमिका निभाते हैं, जो पुलिस की धर-पकड़ को आसानी से चकमा देकर निकल जाते हैैं।
धुआं में सड़ रहा फेफड़ा
गांजे के कसैले और काले धुंए में अपने फेफड़े को छलनी करने पर तुले लोग दमा के पेशेंट हो गए हैैं। इंडस्ट्रियल प्वाइजन रिर्सच सेंटर (आईटीआरसी) की रिर्पोट में चिलम फूंकने वाले 43 फीसदी लोग सांस के रोगी हो गए हैैं। इनमें से कइयों के डीएनए पर भी डेडली नुकसान देखा जा रहा है। शाकाहारी गंजेडिय़ों में फेफड़े के सडऩे के भी कई केसेज मिले हैैं।
कब और कहां हुई कार्रवाई
वाराणसी में मादक पदार्थों की धर-पकड़ अभियान में 28 जनवरी को डाफी टोल प्लाजा के पास डीआरआई ने करीब 6 क्विंटल गांजा बरामद किया था। इसकी कीमत एक करोड़ 18 लाख रुपए आंकी गई थी। वाराणसी-मिर्जापुर पुलिस ने कंबाइंड रूप से 60 लाख रुपए का तीन क्विंटल गांजा पकड़ा था। 20 जनवरी को रामनगर में 5 किलो गांजा जब्त किया गया।
गांजा, कैनाबिस सैटाइवा नामक पौधे के सूखे फूलों, पत्तियों, तने और बीजों के हरे-भूरे रंग का मिश्रण होता है। लंबे समय तक गांजे के सेवन से व्यक्ति को इसकी आदत लग जाती है। मौजूदा समय में युवा इसके लती हो रहे हैैं। गांजा का धुआं मस्तिष्क के तंत्रिका के विकास और उसके कार्यों को प्रभावित करता है। इसके सेवन से युवा व नशेड़ी सुस्त हो जाते हैं। किशोरों में गांजे के सेवन से इनके दिमाग का विकास सुचारू रूप से नहीं हो पाता है।
डॉ। रवि शंकर मौर्य, प्राईवेट डॉक्टर
गांजा व प्रतिबंधित मादक पदार्थों की बिक्री करने वाले अराजक तत्वों की पहचान की जाएगी। गैंगस्टर अधिनियम के साथ अन्य कठोर विधिक कार्रवाई की जाएगी। नशे की लत से युवा पीढ़ी को बचाने के लिए और नशे के सौदागरों के चंगुल से निकालने के लिए अवेयर किया जाएगा। आरोपियों पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपना कर कार्रवाई की जाएगी।
सुभाष चन्द्र दुबे, ज्वाइंट सीपी, क्राइम-हेडक्वार्टर, वाराणसी