हजारों की संख्या में लोगों ने गंगा में लगायी पुण्य की डुबकी

लोगों ने खिचड़ी खाकर निभाई पर्व की परंपरा, पतंगबाजी भी हुई खूब

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हर घर की रसोई से उठ रही स्वादिष्ट खिचड़ी की गमक और छतों पर गूंजता भक्काटे का शोर। भगवान भास्कर के उत्तरायण होने के महापर्व मकर संक्राति पर शुक्रवार को पूरे शहर का कुछ ऐसा ही माहौल रहा। हालांकि बहुतों ने एक दिन पहले गुरुवार को ही संक्राति का पर्व मनाया लिया था। पर विद्वानो ने 15 जनवरी को ही संक्राति का पर्व मनाये जाने को मान्यता दी थी। लोगों की मान्यता के अनुसार बड़ी संख्या में गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाकर पर्व की परंपरा निभायी। गंगा स्नान के बाद लोगों ने अन्न-धन का दान किया। नई फसल के आने की खुशी में मनाये जाने वाले इस त्योहार पर खिचड़ी खाने की परंपरा है। इसके चलते अधिकतर घरों में नये चावल की खिचड़ी बनी। चोखा, अचार, पापड़, दही के साथ ने उसका स्वाद कई गुना और भी बढ़ा दिया।

सेवा कर बटोरा पुण्य

स्नान करने वालों से गंगा के अधिकतर घाट पटे दिखे। दशाश्वमेध घाट, प्रयाग घाट, राजघाट, प्रहलाद घाट, अस्सी घाट, केदार घाट आदि जगहों पर अपेक्षाकृत भीड़ कुछ अधिक रही। अखिल भारतीय वैश्य एकता संघ के कार्यकर्ताओं ने चाय का वितरण किया। समाज संगठन के कार्यकर्ताओं ने सहायता शिविर का आयोजन कर श्रद्धालुओं की सहायता की। सामाजिक संगठनों की ओर से खिचड़ी का वितरण भी किया गया। कुछ जगहों पर दवाइयों की भी व्यवस्था की गयी थी। खिचड़ी बाबा मंदिर के सामने भी खिचड़ी वितरण का कार्य पूरे दिन चलता रहा।

जमके उड़ी और लड़ी भी

मौसम ने पतंगबाजों का खूब साथ दिया। ठंड की कमी रही। दोपहर बाद अचानक मौसम बदला और बूंदे भी आसमान से टपकी पर थोड़ी ही देर में सूर्य नारायण फिर से दमकने लगे। पतंगबाजी के शौकीन सुबह से ही छत पर जो चढ़े तो शाम होने के बाद ही नीचे उतरे। हर छत पर पतंगबाजों की जमावड़ा देखने को मिला। जहां तहां लोग कन्ना, मांझा, पतंग, लटाई पर अपना हाथ साफ करते दिखे। हर गली मोहल्लों से भक्काटे का शोर उठता रहा। महिलाएं भी घर का कामकाज निपटाकर छतों पर ही दिखाई दीं।