जो बीत चुका है उसके प्रति अपनी श्रद्धा समर्पित करने का विशेष अवसर पितृ पक्ष है। चूंकि 'आज' का कारण बीता हुआ कल है इसलिए वर्तमान हमेशा से भूत का ऋणी रहा है। इसी ऋण से उऋण का प्रयास 'वर्तमान' अपने पूर्वजों को विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों के जरिये स्मरण कर करता है। जो कल था उसने ही हमें आज की थाती दी है। 'हमारा पितर हमारा शहर' के जरिये श्रद्धा समर्पित करने इसी क्रम में हम शहर के उन प्राचीन इमारतों की चर्चा करेंगे जिन्होंने हमारा बीता हुआ कल देखा है और वह आज भी है।

मैंने आपको पहले बताया कि मेरी पहचान किसी एक नाम की मोहताज कभी नहीं रही। मुझे काशी के नाम से भी लोगों ने जाना और बनारस के नाम से भी। वाराणसी भी मेरा ही नाम है। मुझ पर बहुत सी इमारतों का निर्माण हुआ। इन इमारतों को मेरी पूरी कहानी पता है। क्योंकि ये तब भी थीं और आज भी हैं। मेरे परिधि में आनी वाली ऐसी ही एक इमारत है रामनगर किला। गंगा किनारे बने इस किले का वर्तमान देख कर आप इसके 'भूत' के वैभव का अंदाजा लगा सकते हैं। इस किले का निर्माण महाराजा बलवंत सिंह ने 1750 में करवाया था।

मुगल स्थापत्य का है शानदार नमूना

पूरा किला मुगलकालीन स्थापत्य का बेजोड़ नमूना है। गंगा उस पार स्थित इस किले की शहर से दूरी तकरीबन 14 किमी है। पीपे के पुल के जरिये भी इस तक पहुंचा जा सकता है। पूरे किले का निर्माण चुनार के बलुआ पत्थर से किया गया। किले के सामने एक बड़ा मैदान है। जहां बाढ़ की स्थिति में गंगा का पानी नहीं पहुंच पाता है। पूरे फोर्ट में नक्काशीदार बालकनी बनायी गयी है। काशी नरेश का आवास भी इसी किले में रहा है। मुख्य द्वारा तोप लगे हुए हैं राजसी वैभव की गाथा कहते हैं। वर्तमान में किले के सिर्फ एक भाग को आम जनता के लिए खोला गया है बाकी के पूरे हिस्से पर महाराज अपने परिवार के साथ निवास करते हैं। किले पर लहराने वाली राज पताका इस बात का संदेश देती है कि काशी नरेश इस समय किले में मौजूद हैं। दरबार हाल और स्वागत कक्ष किले की खासियत हैं।

संग्रहालय है खास

वर्तमान में किले के एक हिस्से को संग्रहालय का रूप दिया गया है। यहां पुराने अस्त्र शस्त्र, पुरानी कारें और राजा के उपयोग में आने वाली विभिन्न चीजें प्रदर्शित की गयी हैं। महाराजा की सोने और चांदी के काम वाली विशेष पालकी, हाथी के हौदे व बहुमूल्य ज्वेलरी आकर्षण का केन्द्र है। यहां पर एक एस्ट्रोनॉमिकल घड़ी भी संग्रहित है। जो कि न सिर्फ समय बल्कि साल, महीने सप्ताह के साथ ही सूर्य और चंद्रमा की विशेष स्थिति को भी बताती है। बहुत तरह की पांडुलिपियां और रेयर बुक्स इस म्यूजियम की शोभा बढ़ा रहे हैं।