i next office में हुए group discussion में शामिल विशिष्टजनों ने शहर को बनाए रखने के बताए उपाय

VARANASI

बनारस को बनाने बसाने और बनाने और पहचान दिलाने में जिन्होंने अपना योगदान दिया उन्हें याद करने की जिम्मेदारी हमारी ही है। इसके लिए हर किसी को आगे आना होगा। यह बातें गुरुवार को आई नेक्स्ट ऑफिस में आयोजित ग्रुप डिस्कशन में निकलकर आयीं। शहर के पितरों को याद करने के लिए पितृपक्ष में आई नेक्स्ट की ओर से 'मेरा पितर मेरा शहर' नाम से क्रमबद्ध एक स्टोरीज पब्लिश कीं। इसमें शहर की विशेषताओं के साथ तमाम पहलुओं को उजागर किया गया। इसके आखिरी पड़ाव में शहर के मानिंद लोगों बीच डिस्कशन का आयोजन आई नेक्स्ट ऑफिस में कराया गया। इसमें शामिल हर किसी ने शहर को बनाए रखने उपाय भी बताए।

हमारे शहर की संस्कृति बेहद समृद्धशाली है। इसे बचाए रखते हुए विकास की ओर अग्रसर होना चाहिए। नयी पीढ़ी को यह बताना जरूरी है कि दुनिया के प्राचीनतम नगरी में शामिल बनारस आखिर सदियों बाद भी लगभग हर मामले जस का तस क्यों है ताकि शहर और उसे बसाने वालों के महत्व को समझकर संरक्षित कर सकें

सुशील यादव, सामाजिक कार्यकर्ता

शहर को पहचान देने में जिन महापुरुषों का योगदान रहा है उनके बारे में शहर के लोगों को बताना जरूरी है। इसके लिए उनकी, उनके कामों की लिस्टिंग की जानी चाहिए। महत्वपूर्ण तिथियों पर उन्हें याद किया जाना चाहिए। इसके लिए शहर के हर वर्ग को एकजुट होकर प्रयास करना होगा।

नित्यानंद राय, अधिवक्ता

शहर के लोगों को यह जानना जरूरी है कि इसे बसाया किसने और बनाए रखने में योगदान किसका है? हर क्षेत्र के महापुरुषों को याद रखते हुए उनके कार्य को सामने लाया जाना चाहिए। नयी पीढ़ी को उनके बारे में बताना बेहद जरूरी है। ऐसा न हो कि आधुनिक होने के चक्कर में वह अपने पुरखों को भूल जाएं।

मनोहर लाल

शिक्षक

बनारस के महापुरुषों की जीवनी और इस शहर के लिए उनके योगदान को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। प्राइमरी से लेकर हायर एजुकेशन तक बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए। बचपन से ऐसी नींव पड़ेगी तो शहर की नयी पीढ़ी अपने पुरखों को हमेशा याद रख सकेगी।

प्रभाशंकर मिश्र

शिक्षक

अपने शहर को बनाए रखने की जिम्मेदारी युवा पीढ़ी की है। इसके लिए सबसे जरूरी है कि उन्हें याद किया जाए जिन्होंने इस शहर को बसाया और पहचान दिलाई। इसके लिए युवाओं को संगठित होना होगा। हर विशेष दिन महापुरुषों को याद करना होगा।

आशुतोष सिन्हा

युवा नेता

शहर में आधुनिकता हावी हो रही है। इसकी वजह से शहर की संस्कृति प्रभावित हो रही है। इसे रोका नहीं गया तो आने वाले वक्त में बनारस का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। इस शहर की संस्कृति को बचाना ही शहर बसाने वाले पितरों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

त्रिलोचन शास्त्री

वैदिक जानकार

अपने शहर के महापुरुषों को याद करने के लिए हर किसी को खुद से पहल करनी होगी। इसके लिए कोई समूह या संगठन बनाना जरूरी नहीं है। हमें यह समझना होगा कि जिस शहर पर हम गर्व करते हैं उसे पहचान देने वाले हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण हैं

गुलशन कपूर

सामाजिक कार्यकर्ता