रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं, अपना खुदा है रखवाला, अब तक उसी ने हैं पाला। ये फिल्मी सॉन्ग अपने बनारस के हजारों लोगों पर बिलकुल फिट बैठता है। हजारों ऐसे हैं जिनके पास घर और बिस्तर नहीं है और रोज रात वो सड़क, पटरी और डिवाइडर को बिस्तर की तरह इस्तेमाल करते हैं। हालांकि इसमें एक बड़ा खतरा भी है। कहीं कोई सलमान किसी रात इन्हें गहरी नींद न सुला दे! आप भी देखिये कैसे रस्ते में जिंदगी सोती है सस्ते में

कोई सलमान न सुला दे इन्हें गहरी नींद में

- हजारों गरीब, बेसहारा और बेघर लोगों की रात कटती है सड़क, पटरी या फिर डिवाइडर पर

- तमाम खतरों से अनजान ये सभी रोज रात में सोते हैं हथेली पर रखकर जान

- महिलाएं और बच्चे भी है इस तरह की भीड़ में शामिल, आश्रय देने की किसी को नहीं सुध

VARANASI: मुम्बई की तर्ज पर बनारस में भी हजारों ऐसे हैं जो रोजी-रोटी की तलाश में आते हैं। इनके पास ना तो रहने के लिए घर होता है ना ही सोने के लिए बिस्तर। आसमान ही इनके लिए चादर है और जमीन ही बिछौना। ऐसे हजारों लोग दिन में बहुत व्यस्त रहने वाली शहर की सड़कों पर रात काटते हैं। मगर किस रात कोई सलमान खान नशे में धुत अपनी गाड़ी से इनकी नींद को गहरी नींद में बदल देगा, इन्हें भी नहीं पता।

आई नेक्स्ट टीम ने देखा

सलमान खान को हिट एंड रन मामले में एक दशक से ज्यादा वक्त बीतने के बाद सजा सुनाए जाने पर आई नेक्स्ट ने ये जानने की कोशिश की कि अपने शहर में कौन से लोग खतरों से अनजान सड़कों पर सोते हैं। इसके लिए आई नेक्स्ट टीम ने देर रात शहर की सड़कों पर दौड़ लगाई। कोई भी ऐसी सड़क या पटरी नजर नहीं आई जहां पर गरीबों दिन भर की थकान में बाद गहरी नींद में सुनहरे भविष्य के सपने देख रहे थे।

कुछ तो मिले चारपाई पर

ऐसा नहीं है कि सारे गरीब जमीन पर ही सो रहे थे। रविन्द्रपुरी एक्सटेंशन एरिया में पहुंचने पर आई नेक्स्ट तब हैरान रह गई जब दर्जनों लोग बाकायदा फोल्डिंग और चारपाई पर सोते नजर आए। पता चला ये सभी मलिन बस्ती के निवासी है जो अमूमन सर्दियों को छोड़ अन्य सभी सीजन में सड़क पर भी सोते हैं। और तो और, इनकी चारपाई की पहुंच खतरनाक रूप से ट्रैफिक रेंज तक थी।

मासूम और महिलाएं भी

आई नेक्स्ट की इस तफ्तीश में लंका, महमूरगंज सहित कई अन्य एरिया में महिलाएं और मासूम बच्चे भी खतरनाक तरीके से सड़क से बिलकुट सही पटरियों पर सोते नजर आए। इसमें कुछ बच्चे इतने छोटे थे जो रात में नींद खुलने पर सड़क के बीच तक चले जाएं तो हैरानी की बात नहीं। लेकिन इनके माता-पिता के पास उन्हें इससे बेहतर सोने की जगह देने का शायद ऑप्शन भी नहीं था।

बाजार में मजदूरों की भरमार

मैदागिन एरिया के मालवीय मार्केट की तंग सड़क के दोनों तरफ जब रात में दुकानें बंद थीं तो उनके बाहर काफी ज्यादा संख्या में लोग सोते हुए नजर आए। एक जगे हुए व्यक्ति ने आई नेक्स्ट टीम को शक की निगाह से देखा और पूछा कि क्या बात है? जब आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने पूछा कि आप लोग कौन हैं और यहां क्यों सो रहे हैं, उसने बताया कि सभी विशेश्वरगंज, दवा मंडी, गोलादीनानाथ और पक्का महाल में सामान ढोने वाले मजदूर हैं। हर कोई बनारस के बाहर का है इसलिए होटल में खाकर रात में वहीं सोते हैं। स्थानीय दुकानदार भी इन्हें सपोर्ट करते हैं क्योंकि इसी बहाने उनके दुकान की रखवाली भी हो जाती है।

सही रास्ता दिखाने की जरूरत

गरीबों को उनके जान की हिफाजत के लिए जरूरी नहीं कि सड़क या पटरियों से खदेड़ा जाए। इन्हें जरूरत है सही रास्ता दिखाने की। समझाने कि वह अपनी नींद पूरी करने के लिए ऐसी जगह सोएं जो पूरी तरह से सुरक्षित हो। ऊंचाई पर हो और व्हीकल के अनकंट्रोल होने पर भी उन्हें नुकसान न पहुंचाये। या फिर वो जगह मेन रोड से हटके किसी मुहल्ले या कॉलोनी में हो जहां लोगों की आवाजाही कम से कम हो।

यदि प्रशासन एनजीओ करे मदद

सड़कों पर रात गुजारने वाले सभी को आश्रय देना शायद किसी के बस की बात नहीं। लेकिन प्रशासन नये रैन बसेरों की स्थापना करके, एनजीओ के साथ मिलकर इनके लिए कोई ठौर-ठिकाना बना कर मदद कर सकता है। ठंड में तो इनके लिए रैन बसेरे बनाए जाते हैं मगर गर्मियों में इन्हें जान हथेली पर रखकर खुद से रात काटनी होती है।