-बनारस में पहली बार रोबोटिक के लिए लगा कैंप
-भारत विकास परिषद वरुणा सेवा संस्थान व इनाली फाउंडेशन के सहयोग से लगे तीन दिवसीय कैंप में 90 लोगों को लगे हाथ
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23 जुलाई को 31
24 को 33
25 जुलाई को 26 लोगों को कृत्रिम हाथ लगाए गए।
5000 से अधिक लोगों को देश भर में फाउंडेशन फ्री में लगा चुका है हाथ।
जिन लोगों के हाथ किसी कारणवश नहीं थे उन्हें हाथ मिलने की खुशी शब्दों में बयां करना मुश्किल है। रोबोटिक हाथ लगते ही उनके चेहरे की चमक बढ़ जा रही थी। मौका था राजा बलदेव दास बिड़ला अस्पताल मच्छोदरी में चल रहे भारत विकास परिषद वरुणा सेवा संस्थान के सेवा अभियान के अंतिम दिन का। हॉस्पिटल में तीन दिवसीय रोबोटिक हाथ लगाने का कैंप आयोजित किया गया। जिसमें कुल 90 लोगों को हाथ लगाया गया। ये हाथ परंपरागत हाथ से अलग थे। जिसमें सामान्य हाथ की तरह सारे फंक्शन मौजूद रहे। जिनको हाथ लगा था उन्होंने मोबाइल से बात करने, ग्लास से पानी पीने, कोल्ड ड्रिंक पीने सहित हाथ का चार्जर उठाया तो उनको विश्वास ही नहीं हुआ। लंबे समय से समाज में उपेक्षित लोगों में खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
90 को मिला हाथ का सहारा
हॉस्पिटल में संस्थान के सहयोग से पूणे की इनाली फाउंडेशन की ओर से तीन दिवसीय कैंप लगाया गया था। इसमें 88 लोगों के रजिस्ट्रेशन हुए थे, लेकिन अंतिम दिन तक कुल 90 लोगों को रोबोटिक हाथ लगाया गया। इसके लिए सीएसआर फंड से फाउंडेशन पैसा जुटाता है दिव्यांगों की मदद करता है।
सामान्य हाथ की तरह चलती हैं उंगलियां
सामान्य हाथ और उंगलियों की तरह ही रोबोटिक हाथ कार्य करता है। ये सब हाथ में लगी बैटरी से संचालित होता है। इसमेंएक स्विच है और बैटरी को मोबाइल की तरह चार्ज भी किया जाता है। इनाली फाउंडेशन की प्रोजेक्ट मैनेजर महिमा सिन्हा ने बताया कि ये बैटरी पांच साल तक चलती है। लेकिन इसे प्रॉपर चार्ज व मेंटेन करना पड़ता है। इसमें लापरवाही करने पर यह प्रॉपर कार्य नहीं करेगा।
फाउंडेशन फ्री में करता है गड़बड़ी दूर
कई बार रोबोटिक हाथ में कुछ गड़बड़ी आ जाती है, तो उसे फाउंडेशन के पते पर कुरियर कर देना है। महिमा ने बताया कि फाउंडेशन हाथ में आयी गड़बड़ी को दूर कर संबंधित पते पर भेज देता है। इसके लिए कोई चार्ज नहीं लिया जाता है। इसके लिए पूणे में वर्कशॉप है। जहां 22 लोग कार्य करते हैं। वहीं हैदराबाद में भी फाउंडेशन का सेंटर खोला गया है।
जल्द ही वाराणसी में भी सेंटर
सन् 2018 में अपनी मंगेतर के नाम पर इनाली फाउंडेशन की शुरुआत करने वाले सीइओ प्रशांत गाढ़े (कौन बनेगा करोड़पति प्रतिभागी) ने बताया कि फाउंडेशन उत्तर भारत में जल्द अपना सेंटर ओपेन करेगा। इसके लिए वाराणसी पर विचार किया जा रहा है। क्योंकि यहां से बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ सहित अन्य प्रदेशों को जोड़ना आसान होगा।
खर्च 11 हजार, देते हैं फ्री
प्रशांत ने बताया कि विभिन्न कंपनियां जहां 80 से 90 हजार रुपये में रोबोटिक हैंड बनाती हैं। वहीं इनाली फाउंडेशन के रोबोटिक हाथ पर सिर्फ 11 हजार रुपये ही खर्च आता है। वह भी सीएसआर फंड से ही लोगों को प्रोवाइड कराया जाता है। इसके लिए कोई पैसा दिव्यांगों से नहीं लिया जाता। प्रशांत ने बताया कि बीटेक की पढ़ाई के दौरान एक प्रोजेक्ट पर कार्य करने के दौरान रोबोटिक हैंड की प्रेरणा मिली। बताया कि रोबोटिक हैंड पर सबसे पहले जर्मनी ने काम किया है। उसके बाद कई कंपनियां इस क्षेत्र में उतर गयीं, लेकिन उनका मूल्य सबके बस में नहीं है। प्रशांत ने बताया कि मेरे काम को इंफोसिस की निदेशक सुधा मूर्ति के अलावा कई संस्थाओं ने आर्थिक सहयोग किया है। प्रशांत गाढ़े ने इस रोबोटिक हाथ को डिजाइन किया है। बनारस में लगे शिविर में रमेश लालवानी सहित अन्य ने सहयोग किया है।
रोबोटिक हाथ के बाद पैर व हथेली लगाने का भी आगे प्लान है। जल्द ही दस हजार लोगों को एक दिन में हाथ व पैर लगने लगेगा। जिससे दिव्यांग अपना कार्य आसानी से कर सकेंगे।
प्रशांत गाढ़े, सीइओ
इनाली फाउंडेशन, पुणे
बातचीत----
मेरा हाथ सन् 2012 में मोल्डिंग मशीन से कट गया था। तब से मैं एक हाथ से ही कार्य करता था। लेकिन जैसे ही पता चला कि रोबोटिक हाथ लगाने का कैंप लगा है तो मैं यहां आकर हाथ लगवा लिया है। अच्छा लग रहा है।
मनोज यादव, गाजीपुर
खेलते समय मशीन से मेरे दोनों हाथ कट गए थे। इसी बीच रोबोटिक हाथ के लिए रजिस्ट्रेशन कराया। लेकिन मेरे साइज का हाथ न नहीं है। मेरा साइज ले लिया गया है। अब पुणे से मेरे लिए हाथ बनकर आएगा। तब लगेगा।
शिवम जायसवाल, चकिया
सन् 2015 में मेरा हाथ जेनरेटर से कट गया। तब से एक हाथ से ही कार्य कर रहा था। अब रोबोटिक हाथ लग गया है। मेरे लिए आज का दिन बहुत खुशी वाला है।
एहतेशाम अली, भदोही
मेरे दोनों हाथ चारा मशीन से सन् 1992 में कट गए। अभी पता चला कि रोबोटिक हाथ लगने वाला है तो मैंने भी रजिस्ट्रेशन करा लिया। आज हाथ लग गए हैं। इससे अब किसी के सहारे नहीं रहना होगा।
दयाराम, गोधना