-महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के एमए गांधी विचार कोर्स में मात्र नौ स्टूडेंट्स ने लिया है एडमिशन

-विभाग में तैनात हैं दो टीचर, एक क्लर्क, दो फोर्थ क्लास एम्प्लाई

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साल पहले यूनिवर्सिटी में गांधी विचार पढ़ाने को बना भव्य भवन

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51,000 रुपये खर्च हो रहे हैं डिपार्टमेंट में स्टूडेंट्स को पढ़ाने पर हर महीने

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से अधिक किताबें हैं विभाग की लाइब्रेरी में महात्मा गांधी जी के विचार और उनसे जुड़ी हुई

देश ही नहीं, पूरी दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले महात्मा गांधी के विचारों को युवाओं के बीच पहुंचाने के लिए स्थापित महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, यूनिवर्सिटी के गांधी अध्ययन पीठ में संचालित एमए-गांधी विचार कोर्स के प्रति छात्रों का आकर्षण अब कम होता जा रहा है। कहा जाता है कि कभी इस विभाग की कक्षा में निर्धारित सीट स्टूडेंट्स से भरी होती थी। तब एडमिशन के लिए मारामारी होती थी। लेकिन अब इस कोर्स में गिनती के ही स्टूडेंट एडमिशन लेते हैं। बावजूद इस डिपार्टमेंट में इन स्टूडेंट्स को पढ़ाने पर हर महीने करीब 2,51,000 रुपये खर्च हो रहे हैं। यानी कि सालाना 30 लाख रुपये खर्च हो रहे हैं। वहीं अन्य खर्च अलग है।

दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम पिछले दिनों सोमवार को गांधी अध्ययन पीठ पहुंची। टीम ने यहां देखा कि ग्राउंड फ्लोर पर स्थित क्लासेस में ताला लटक रहा है, हालांकि लाइब्रेरी खुली हुई थी। वहीं डायरेक्टर व टीचर अपने कक्ष में बैठे हुए थे। ऑनलाइन क्लासेस संचालित होने की वजह से यहां स्टूडेंट्स नहीं दिखे। लाइब्रेरी में भी सन्नाटा छाया हुआ था। टीचर्स ने बताया कि क्लासेस स्टार्ट होने पर यहां स्टूडेंट्स पढ़ने आते हैं। उस समय ग्राउंड व फ‌र्स्ट फ्लोर पर स्थित क्लासेस में भी स्टूडेंट्स मिल जाएंगे। लेकिन इस समय यूनिवर्सिटी के बंद होने के कारण स्टूडेंट्स नहीं आ रहे हैं।

नौ पर 2.51 लाख रुपये खर्च

महात्मा गांधी की प्रेरणा से स्थापित काशी विद्यापीठ में गांधी जी के विचारों का अध्ययन करने के लिए कैंपस में बकायदा गांधी अध्ययन पीठ की सन् 1996 में स्थापना की गई। जिसके लिए यहां भव्य भवन भी बनाया गया। जिसमें एमए-गांधी विचार नाम से कोर्स भी संचालित होता है। वहीं पीएचडी में भी एडमिशन होता है। सेशन 2020-21 की बात करें तो डिपार्टमेंट में मात्र 09 स्टूडेंट्स ने ही गांधी विचार पढ़ने के लिए एडमिशन लिया है, जबकि इस कोर्स की विभाग में 25 सीटें हैं। इन स्टूडेंट्स को पढ़ाने के लिए हर महीने दो टीचर, एक क्लर्क व दो फोर्थ क्लास कर्मचारी की सेलरी पर लगभग 02 लाख 51 हजार रुपये खर्च किया जा रहा है। वहीं चार स्टूडेंट ने रिसर्च में भी एडमिशन लिया है।

पांच साल से भर नहीं रही सीट

इस विभाग में सिर्फ एक पाठ्यक्रम संचालित होता है। जिसमें निर्धारित सीट पिछले पांच साल से खाली रह जा रही है। कभी आठ तो कभी दस सीट पर ही स्टूडेंट ने एडमिशन लिया है। पिछले सेशन में भी यही हाल रहा है। अभी तक आए फॉर्म में इस साल भी सीट के खाली रहने की पूरी संभावना है। जबकि पांच साल पहले यानी सन् 2016 तक इस विभाग की निर्धारित सीट पर पूरा एडमिशन हो जाता था।

बढ़ा दी गयी थी सीट

सन् 1995 में तत्कालीन गवर्नर मोतीलाल बोरा ने इस विभाग की बिल्डिंग के लिए तीन अगस्त को शिलान्यास किया। एक साल में लगभग डेढ़ करोड़ रुपये से बिल्डिंग का निर्माण किया गया। कोर्स में स्टूडेंट्स की बढ़ती संख्या को देखते हुए विभाग में सेल्फ फाइनेंस कोटे से पांच सीट बढ़ा दी गयी। इस प्रकार टोटल 25 सीट हो गयी, लेकिन हालत यह है कि वर्तमान में रेग्यूलर की 20 सीट ही नहीं फुल हो पा रही हैं।

लाइब्रेरी में हैं दुर्लभ किताबें

विभाग में खुद की लाइब्रेरी भी है। जिसमें 2500 किताबें हैं। इनमें से अधिकतर किताब गांधी जी से जुड़ी हैं। यहां गांधी वांगमय का आठ वाल्यूम रखा हुआ है। जो आउट ऑफ प्रिंट है। इसी तरह यंग इंडिया का भी पांच वाल्यूम रखा है जो दुर्लभ है। इसका मिलना मुश्किल है। इन किताबों को पढ़ने के लिए बीएचयू, इलाहाबाद, गोरखपुर, पूर्वाचल विश्वविद्यालय के अलावा अन्य संस्थाओं से लोग आते थे, लेकिन कोरोना के चलते पिछले दो साल से लाइब्रेरी में सन्नाटा छाया हुआ है।

:: कोट ::

मौजूदा दौर की शिक्षा रोजगारपरक हो गयी है। जिससे स्टूडेंट्स का गांधी विचार पढ़ने में रूचि कम हो गयी है। इसे वही विद्यार्थी पढ़ते हैं जिनका गांधी जी के विचारों सत्य, अहिंसा आदि से गहरा लगाव है।

प्रो। बंशीधर पांडेय, इंचार्ज डायरेक्टर

गांधी अध्ययन पीठ, काशी विद्यापीठ

:: स्टॉफ पर महीने का खर्च ::

1,0000

रुपये एक एसोसिएट टीचर पर

55,000

रुपये एक पार्ट टाइम टीचर पर

40000

रुपये एक क्लर्क पर

56000

रुपये दो फोर्थ क्लास स्टॉफ पर

:: स्टूडेंट्स की फीस ::

5400

रुपये प्रति वर्ष रेग्यूलर सीट पर एडमिशन की फीस

9000

रुपये प्रति वर्ष पेमेंट सीट पर एडमिशन की फीस

20,000

रुपये पीएचडी की फीस