पीके कैंपेन के तहत आई नेक्स्ट के ग्रुप डिस्कशन में निकला निष्कर्ष

प्रोग्राम में शामिल लोगों ने रखी अपनी राय, धर्म के नाम पर लोगों की भावनाओं से हो रहे खिलवाड़ को बताया गलत

VARANASI : अंधविश्वास को दूर करना किसी एक का काम नहीं बल्कि हम सभी की जिम्मेदारी है। इसलिए जरुरी है कि इसके खिलाफ घर से ही पहल हो। घरों में लोग अक्सर तांत्रिक या ओझा के चक्कर में पड़ जाते हैं, जो गलत है। ये चीजें अंधविश्वास को बढ़ावा देती हैं। ये बातें शुक्रवार को आई नेक्स्ट ऑफिस में हुए ग्रुप डिस्कशन में सामने आई। यह डिस्कशन पीके कैंपेन के तहत किया गया था। ग्रुप डिस्कशन में राय देने के लिए सोसायटी के अलग अलग कैटेगरी के लोगों को इनवाइट किया गया था। लगभग एक घंटे से ज्यादा चले इस बहस में आई नेक्स्ट की इस पहल को सराहा गया और पब्लिक को ऐसे लोगों से दूर रहने पर भी रायशुमारी हुई जो धर्म के नाम पर अपना धंधा चलाकर पब्लिक को मूर्ख बना रहे हैं।

क्यों पड़े हो चक्कर में

डिस्कशन में स्पो‌र्ट्स अर्थारिटी ऑफ इंडिया (साई) के कोच फरमान हैदर, सत्या फाउण्डेशन के सचिव चेतन उपाध्याय, बिजनेसमैन शकील अहमद जादूगर, काशी विद्यापीठ में मासकॉम विभाग के डॉ मनोहर लाल और सत्य मंथन की ओर से अंशु केडिया मौजूद रही। इस बहस के दौरान सभी ने अपनी बातें रखी। अंधविश्वास को लेकर होने वाले टोने टोटके पर फरमान हैदर का कहना था कि ये जरुरी है कि अंधविश्वास की कमर हम सब खुद तोड़ें क्योंकि लोग बीमारी से लेकर बाकी छोटी छोटी बातों पर भी झाड़फूंक कराते हैं जो गलत है। भगवान के नाम पर हो रहे अतिक्रमण के मुद्दे पर चेतन उपाध्याय, शकील अहमद जादूगर, डॉ मनोहर लाल और अंशु केडिया ने इसे गलत बताया और प्रशासन और पब्लिक संग मिलकर इस समस्या का निदान कर इसे हल करने की बात कही।

ये निकला निष्कर्ष

- धर्म के नाम पर बेवकूफ बनाये जाने वाले लोगों से पब्लिक हो सावधान

- तांत्रिक और ओझा के चक्कर में न आयें लोग

- मंदिर मस्जिद बनाकर सड़क पर अतिक्रमण कर विकास में बाधक बने लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई हो

- मंदिर-मस्जिद या मजारों पर बीमार लोगों संग झाड़ फूंक कर उनको ठीक करने का दावा करने वाले फर्जी लोगों से दूर रहे पब्लिक

- मानसिक बीमारी, कुत्ते के काटने, पीलिया और अन्य बीमारियों को दूर करने के नाम पर फैले अंधविश्वास को न मानकर पहले दवा और फिर दुआ करने की दी गई सलाह

- अंधविश्वास में डूबे लोग मंदिरों और मस्जिदों में न चढ़ाये रुपये

- अंधविश्वास को रोकने के लिए पढ़े लिखे लोगों को आगे आना होगा

- हर घर में एक व्यक्ति अगर समझदारी से काम ले तो अंधविश्वास फैलाकर फायदा कमाने वालों का बंद हो जायेगा कारोबार

- अंधविश्वास के नाम पर मजारों पर अक्सर इंसानों संग जानवरों जैसा बर्ताव होता है। ऐसा होते देखकर विरोध करें

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आज अंधविश्वास के जाल में बहुत से लोग फंसे हुए हैं। लोग गंभीर बीमारी में पहले डॉक्टर के पास न जाकर फकीर या तांत्रिक के पास जाते हैं। जो जानलेवा और गलत है। हर धर्म यह कहता है कि पहले दवा और फिर दुआ। इसलिए जरुरी है कि लोग ऐसे अंधविश्वास से परहेज करें और इन सब चक्करों में न फंसें।

फरमान हैदर, कोच साई

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अक्सर ये देखने में आता है कि लोग अपना घर और दुकान बचाने के लिए मंदिर या मस्जिद बनाकर सड़क पर अतिक्रमण कर इसे इललीगल से लीगल करने का काम करते हैं। ये गलत है। ऐसे लोग जो धर्म के नाम पर अतिक्रमण करते हैं तो ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।

चेतन उपाध्याय, सचिव सत्या फाउण्डेशन

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अक्सर देखने में आता है कि मंदिर हो या दरगाह हर जगह अंधविश्वास के नाम पर खेल होता है। लोगों को भूत प्रेत और जिन्न का डर दिखाकर बेवकूफ बनाया जाता है। मैं ये नहीं कहता कि सब गलत है लेकिन हर को सही भी नहीं कहा जा सकता है। इसलिए जरुरी है कि पब्लिक ऐसे लोगों से बचकर रहे जो अंधविश्वास फैलाकर सिर्फ अपनी फायदा कर रहे हैं।

शकील अहमद जादूगर, बिजनेसमैन

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नॉर्मली ये देखने में आता है कि लोग विज्ञापनों के जरिए डर फैलाकर यंत्र, ताबीज और कई चीजों का कारोबार करते हैं। इसे लोग खरीदते हैं अच्छे की आस में लेकिन होता कुछ नहीं है और लोग बेवकूफ बनते हैं। इसलिए जरुरी है कि कर्म करें और इन सब चीजों के चक्कर में न पड़ें।

डॉ मनोहर लाल, लेक्चरर, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ

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आज के दौर में धर्म पैसा कमाने का जरिया बन गया है। बेरोजगारों को जब कुछ नहीं सूझता तो वह लोग धर्म का सहारा लेकर इससे कमाने की प्लैनिंग करते हैं और तरह तरह से अंधविश्वास फैलाकर लोगों को बेवकूफ बनाकर उनकी भावनाओं से खिलवाड़ कर पैसे कमाते हैं। इसलिए पब्लिक को जागरुक होना होगा।

अंशु केडिया, सत्य मंथन