वाराणसी (ब्यूरो)गाजीपुर : मुख्तार अंसारी के साथ ही चार दशक पूर्व जिले से शुरू होकर पूर्वांचल में चर्चित हुआ गैंगवार दफन हो गया। मिनी चंबल के नाम से चर्चित मुड़ियार गांव निवासी उसके आपराधिक गुरु मकनू सिंह के गांव से यह गैंगवार शुरू हुई थी। तब गैंग की कमान एक तरफ से मकनू सिंह के हाथ में थी और दूसरी तरफ से साहब सिंह के। दोनों की हत्याओं की बाद मकनू सिंह गिरोह की कमान माफिया मुख्तार अंसारी ने संभाली तो साहब सिंह के गिरोह की कमान माफिया बृजेश सिंह और त्रिभुनव सिंह ने। इसके बाद कई जिंदगियां इस गैंगवार की भेंट चढ़ गईं।

बात 80 के दशक की है। मुड़ियार गांव निवासी रामपत सिंह ग्राम प्रधान भी रहे चुके थे। इस गांव में साढ़े तीन बीघा जमीन को लेकर रामपत सिंह और पट्टीदारी के भतीजे मकनू सिंह में विवाद हो गया। मकनू सिंह व उसके भाई साधू सिंह ने उस जमीन पर खेती करने से मना कर दिया, लेकिन रामपत सिंह नहीं माने और एक दिन ट्रैक्टर लेकर उस जमीन को जोतने चले गए। मुड़ियार गांव के मोड़ के पास रामपत सिंह की हत्या कर दी गई। हत्या का आरोप मकनू सिंह व साधू सिंह पर लगा। पिता की हत्या का पता चलने पर रामपत सिंह के छह पुत्र राजेंद्र सिंह, रामनगीना सिंह, वीरेंद्र सिंह, विजयशंकर सिंह, रामविलास सिंह व त्रिभुवन बदले की आग में धधकने लगे। यहीं से गैंगवार ने जन्म ले लिया। उधर, वाराणसी के चौबेपुर थाना क्षेत्र के धौरहरा गांव में माफिया बृजेश सिंह के पिता की हत्या हो गई। कुछ कारणों ने त्रिभुवन एवं बृजेश दोनों जेल में पहुंचे और उन्हें साथ मिला चंदौली के सिकरौर गांव के बदमाश साहब सिंह का। साहब सिंह ने त्रिभुवन और बृजेश सिंह की दोस्ती कराई। इधर मुख्तार अंसारी मकनू सिंह और साधू सिंह की शरण में आ गया। त्रिभुवन सिंह ने अपने पिता की हत्या का बदला लेने की बात बृजेश से की तो पुलिस हिरासत में साधू सिंह की हत्या गाजीपुर में कर दी गई। हत्या का आरोप बृजेश सिंह पर लगा। एक के बाद एक दोनों पक्षों के लोगों की हत्याएं होती रहीं, लेकिन गैंगवार रुकने का नाम नहीं ले रहा था।

मकनू सिंह और साधू सिंह की हत्या के बाद गैंग का नेतृत्व मुख्तार के हाथ में आ गई

मकनू सिंह और साधू सिंह की हत्या के बाद कमान मुख्तार अंसारी के हाथ में आ गई। वहीं, साहब सिंह की हत्या के बाद गिरोह का नेतृत्व बृजेश एवं त्रिभुवन करने लगे। त्रिभुवन सिंह के बड़े भाई सिपाही राजेंद्र सिंह की वाराणसी में गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसके अलावा उनके भाई रामविला सिंह, भतीजे अनिल सिंह एवं राहुल सिंह की भी हत्या कर दी गई। मकनू सिंह गिरोह के भी कई लोगों की हत्या हुई। मुख्तार ने गिरोह की कमान संभाली और अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत कर ली। समय के साथ मुख्तार राजनीतिक रूप से मजबूत हुआ तो बृजेश सिंह एवं त्रिभुवन सिंह को फरारी काटनी पड़ी। कुछ वर्षों पहले दोनों हाजिर हुए जिसके बाद बृजेश सिंह एमएलसी बने और जमानत पर जेल से बाहर आ गए। त्रिभुवन सिंह अभी भी जेल में हैं। उधर बृजेश सिंह के करीबी कहे जाने वाले विधायक कृष्णानंद राय समेत उनके छह सहयोगियों की हत्या में मुख्तार का नाम आया। २००५ में जेल गया मुख्तार जेल के अंदर से ही अपना गिरोह चलाता रहा। इस बीच गुरुवार की शाम मुख्तार की बांद में हार्ट अटैक से मौत की सूचना मिली और चार दशक का गैंगवार दफन हुआ।

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ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती : शक्ति सिंह

माफिया त्रिभुवन सिंह के पुत्र शक्ति सिंह ने कहा कि इंसान को अपने कर्म का फल यहीं भुगतना होता है। ऊपर वाले के लाठी में आवाज नहीं होती।

मुख्तार को न प्रशासन का खौफ था, न कानून की चिंता

वर्ष 2005 में दंगे की आग में झुलस रहे मऊ की सुनसान सड़कों पर खुली जीप में हथियार लहराते और मूछों पर ताव देने वाले माफिया मुख्तार अंसारी को ना तो प्रशासन का खौफ था और ना ही कानून की चिंता। सत्ता में गहरी पैठ जमाकर रखने वाले मुख्तार ने पिछले 18 साल से सलाखों के पीछे से भी अपराध के साम्राज्य का इस कदर विस्तार कर डाला कि वर्ष 2017 से पहले तक उसके नाम का सिक्का पूरे पूर्वांचल में चलता रहा। 25 अक्टूबर 2005 को वह जमानत रद कराकर जेल चला गया। महीने भर बाद ही भाजपा विधायक कृष्णानंद राय को गोलियों से भून दिया गया। मामले की जांच सीबीआइ को सौंपी गई, लेकिन वह मुख्तार और बाकी आरोपितों को कोर्ट में दोषी नहीं साबित कर पाई। मुख्तार की सियासी पहुंच का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह कभी बसपा, कभी सपा तो कभी निर्दल अपने और अपने परिवार का सियासी भविष्य को सुरक्षित रखते हुए गाजीपुर के साथ ही मऊ, बनारस सहित अन्य जिलों में अपने राजनीतिक रंग को चटक करता रहा।

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जब तक फाटक पर रहता मुख्तार, नहीं कटती बिजली

: मुख्तार अंसारी का खौफ आम लोगों में ही नहीं बल्कि सरकारी विभाग के अधिकारियों व कर्मियों में था। मुख्तार जब फाटक आने वाला होता था तो उससे पहले ही बिजली विभाग को सूचित कर दिया जाता था कि बिजली नहीं कटेगी। जबकि, उन दिनों बिजली का काफी संकट हुआ करता था। मुख्तार अंसारी जब तक यहां रहता था, बिजली एक मिनट के लिए भी नहीं कटती।

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786 नंबर की गाड़ियों के काफिले में चलता था मुख्तार

: मुख्तार अंसारी अपनी सुरक्षा को लेकर हमेशा सतर्क रहता था। इसलिए जब उसका काफिला सड़कों पर चलता था, तो कोई यह भी नहीं पता लगा पाता था कि मुख्तार अंसारी किस गाड़ी में बैठा है। मुख्तार 786 नंबर का शौकीन था। यही कारण था कि मुख्तार के काफिले में चलने वाले लगभग सभी वाहनों का नंबर 786 ही था। इससे और भी कोई अंदाजा नहीं लगा पाता था कि मुख्तार कौन सी गाड़ी में है।