हमारी सोसाइटी में लाखों ऐसे लोगों हैं जिनके साथ कुदरत ने थोड़ी नाइंसाफी की है। हालांकि वह फिर भी खुश हैं। शरीर में किसी भी तरह की कमी के लिए वो ना तो ऊपर वाले को दोष देते हैं ना ही शिकायत करते हैं। इनके जीने का अंदाज बताता है कि इसके पास कुछ कम है फिर भी ना कोई गम है। इन्हें जिंदगी के मायने पता हैं और ये बखूबी अपनी जिंदगी जी भी रहे हैं। वर्ल्ड डिसेबिलिटी डे पर ऐसे हौसला बुलंद लोगों को सलाम है। आइये मिलते हैं कुछ ऐसे लोगों से
इन्हें देखकर खुद विकलांग हो गई परेशानियां
- वर्ल्ड हैंडीकैप्ड डे पर सिटी के कुछ हैंडीकैप्ड की दास्तां
-एक बनारस कचहरी में तो दूसरा मुगलसराय में प्रॉब्लम को कर रहा परास्त
- और भी लोग हैं जिन्होंने फिजिकली चैलेंज्ड होते हुए भी दिया है हौसले का परिचय
VARANASI:
आपके बॉडी में थोड़ी सी भी प्रॉब्लम होती है तो पूरा घर सर पर उठा लेते होंगे। किसी वजह से हाथ काम न करे, पैर में चोट हो जाए सभी जरूरी काम दरकिनार कर रेस्ट लेने की कोशिश में लग जाते होंगे। ऐसा कंडीशन सभी के साथ क्रिएट होती है। लेकिन अपनी सोसाइटी में काफी लोग ऐसे हैं जो अपने शरीर की कुदरती या फिर अन्य वजह से हुई कमी के बावजूद पूरी जिंदादिली के साथ जिंदगी गुजार रहे हैं। ये लोग उन सभी के लिए नजीर भी हैं जो परेशानियां देखकर जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेते है। बुधवार को वर्ल्ड हैंडीकैप्ड डे है और आज हम आपको ऐसे हैंडीकैप्ड के बारे में बताएंगे जो अपने दम पर अपना ही नहीं बल्कि पूरे परिवार की गाड़ी खींच रहे हैं।
एक हाथ से कराते हैं मुंह मीठा
मूल रुप से सिकरौल का निवासी गणेश कुमार (ख्8) का एक हाथ कुहनी के बाद कुदरती तौर पर नहीं है। यानि सारी जिम्मेदारियों को उठाने के लिए इनके बाद दो कंधे तो हैं लेकिन हाथ सिर्फ एक है। इस कमी की वजह से गणेश बचपन में खेलों से भी दूर रहे। गणेश के सामने चुनौतियों का पहाड़ तब खड़ा हो गया जब उसके सामने घर चलाने की जिम्मेदारियां भी आन पड़ी। एक हाथ से परिवार की गाड़ी खींचने के लिए गणेश ने बनारस कचहरी में एससी एसटी कोर्ट के बाहर एक छोटी सी गुमटी रखकर चाय बेचना स्टार्ट किया। अदम्य साहस व आत्मविश्वास से लबरेज गणेश दुकान का पूरा काम संभालते हैं। खुद एक हाथ से चाय छांनकर कोर्ट के अंदर व परिसर में अधिवक्ताओं व फरियादियों को पिलाते हैं। गणेश का साहस देख खुद एडवाकेट भी उसे सपोर्ट करते हैं। थोड़ी-थोड़ी मुसीबतें देखकर जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ने वाले उन लोगों के लिए गणेश एक मिसाल है।
अब मोबाइल है जुबान
बनारस से पंद्रह किलो मीटर दूर मुगलसराय के सरेसर गांव निवासी कमलेश (ख्7) की कहानी भी किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है। भगवान ने उन्हें कुदरती तौर पर डेफ एंड डम्ब बनाया है। यानि वह ना सुन सकते हैं ना बोल सकते हैं। बचपन में बच्चों को खेलते देख उसका भी मन खूब होता था लेकिन उसे खेल के रूल्स समझाना बड़ा मुश्किल होता था। बचपन में अन्य बच्चों द्वारा खिल्ली उड़ाने से नाराज कमलेश कई बार घर से दूर खेत में अकेले वक्त गुजारते थे। आज वहीं कमलेश अपने घर की जिम्मेदारियां उठाये हुए हैं। वह मोबाइल कम्यूनिकेशन शॉप पर जॉब करते हैं। अब मोबाइल ही इनकी जुबान है। मोबाइल पर ना कमलेश सुन सकते हैं ना बोल सकते हैं मगर मोबाइल के एसएमएस फीचर के जरिये वह अपनी बातों को बखूबी सामने वाले या फिर दूर बैठे लोगों तक पहुंचाते हैं। यहीं नहीं सुबह का न्यूज पेपर पढ़ना उसके डेली रूटीन में शुमार है।
फेसबुक पर हैंडीकैप्ड्स की कहानी
भगवान की माया भी बहुत अजीब होती है। किसी को बनाने में यदि कोई कमी छोड़ देते है तो उसमें कोई एक ऐसी क्वॉलिटी जरूर भर देते है कि पूरी कायनात उसकी दीवानी हो जाती है। फिजीकली डिसेबल्ड ऐसे लोगों की एक पूरी सोसायटी फेसबुक पर काफी एक्टिव है। हाथ पैर से विकलांग ऐसे लोगों को सोशल मीडिया पर काफी प्रमोट किया जा रहा है। हाथ नहीं होने के बावजूद पैरों से सुंदर तस्वीरों को बनाकर उसमें रंग भरते हुए हुए कि पिक शेयर की जा रही है। इसी तरह कई ऐसी पिक फेसबुक पर वायरल हो चुकी है जिसमें हैंडीकैप्ड की बहादुरी प्रदर्शित हो रही है।
परिवार का पेट पालना है तो कुछ न कुछ करना जरूरी है। मेरे हिसाब से मुझे यहीं काम आसान लगा। यहां के लोग भी मुझे काफी सपोर्ट करते है।
गणेश कुमार, विकलांग, कचहरी
मैं सुन या बोल नहीं सकता मगर मोबाइल पर टेक्स्ट मैसेज टाइप करके अपनी बातें लोगों पहुंचा देता हूं। इससे मुझे काफी आत्मविश्वास मिलता है।
- कमलेश, डेफ एंड डम्ब, मुगलसराय