--City के mental hospitals, clinic में बढ़ रहे हैं मानसिक रोगी

-पांडेयपुर के government mental hospitals में रोजाना आठ सौ से एक हजार तक पहुंच रहे हैं patients

VARANASI

सीने में जलन, आंखों में तूफान सा क्यूं है? इस शहर में हर शख्स परेशां सा क्यू हैं फिल्मी गीत की ये लाइन अब अपने शहर पर फिट बैठने लगी हैं। घबराहट, बैचेनी, डिप्रेशन, सिजोफ्रेनिया, मेनिया जैसी बीमारियां शहर में लोगों को परेशान कर रही हैं। ऐसा हम नहीं कह रहे हैं बल्कि शहर के नामी मेंटल हॉस्पिटल्स इस बात पर अपनी मुहर लगा रहे हैं। शहर भर में रोजाना हजारों मानसिक रोगी अपना उपचार करा रहे हैं। इनमें युवाओं की संख्या सबसे अधिक है। पांडेयपुर के गवर्नमेंट मेंटल हॉस्पिटल में रोजाना आठ सौ से एक हजार तक पेशेंट्स पहुंच रहे हैं। जबकि यही कंडीशन बीएचयू के मेंटल डिपार्टमेंट में भी है। सिटी में दर्जनों से अधिक खुले मेंटल क्लीनिक पर भी मानसिक रोगियों के पहुंचने का फ्लो इधर बीच बहुत बढ़ा है।

युवा वर्ग है खासा प्रभावित

कोई मोबाइल नहीं मिलने तो कोई आशिकी में तनाव झेलकर मानसिक रोगी बन रहा है। कोई कॅरियर को लेकर बेचैन है तो किसी को जल्दी से जल्दी अमीर बनने की इच्छा में बीमारियां घेर रही हैं। बीएचयू के मेंटल डिपार्टमेंट में इस तरह के केसेज बेशुमार पहुंच रहे हैं। इनमें युवाओं की संख्या सबसे अधिक है। हालांकि इन बीमारियों के प्रति अवेयरनेस भी खूब बढ़ी है। व्यवहार में परिवर्तन होते ही लोग तुरंत साइकिएट्रिस्ट के पास पहुंच कर इलाज करा रहे हैं।

गवर्नमेंट मेंटल हॉस्पिटल पांडेयपुर में पूरे पूर्वाचल से मानसिक रोगी इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। यहां तीन साइकिएट्रिस्ट लगभग सात से आठ सौ पेशेंट्स को डेली देख रहे हैं। उनमें एक डॉ। अमरेंद्र कुमार हॉस्पिटल के निदेशक व प्रमुख अधीक्षक का पद भी संभाल रहे हैं। रोजाना पहुंचने वाले मानसिक मरीजों में युवाओं के अलावा महिलाओं की भी संख्या अधिक है। उनमें लगभग आठ से दस परसेंट सिजोफ्रेनिया, मेनिया जैसी बीमारियों से ग्रसित है।

बेहद डेंजरस है सिजोफ्रेनिया

सिजोफ्रेनिया एक ऐसा मनोरोग है जिसके चलते रोगी की सोच, विचार, भावना व व्यवहार में गंभीर विकृतियां पैदा हो जाती हैं। इन विकृतियों के चलते रोगी का कामकाज, व्यवसाय पढ़ाई-लिखाई व यहां तक कि दिनचर्या तक बिगड़ जाती है। इसे बेहद खतरनाक रोग माना जाता है। यह रोग हमारे माइंड में महत्वपूर्ण रासायनिक तत्वों की असामान्य कमी के चलते होता है। आनुवांशिक रूप से रोगी में यह कमी इसी रोग से ग्रस्त अपने माता या पिता से भी आती है।

शुरुआती लक्षण

-रोगी स्वभाव के विपरीत अलग-थलग रहने लगता है। वह एक जगह घटों बैठा रहता है और परिजनों व मित्रों से कटा रहता है

-अक्सर रोगी अकेले बैठे-बैठे कुछ न कुछ बुदबुदाते रहते हैं और अकारण बीच-बीच में हंसने या रोने लगते हैं

-शुरुआत से ही रोगी की दिनचर्या बिगड़ने लगती है और वह अपने डेली रूटीन वर्क जैसे नहाना-धोना आदि समय पर नहीं करते हैं

इलाज

-इस रोग के इलाज में दवाओं का महत्वपूर्ण स्थान है

-दवाओं के नियमित सेवन से रोगी में व्याप्त शक, वहम, आक्रोश व अन्य विकृतियां अपने आप ठीक हो जाती हैं और ज्यादातर रोगी सामान्य रूप से रहने लगते हैं

-इस रोग के एक बार होने के बाद बार-बार होने की संभावना हमेशा बनी रहती है। इसलिए दवाओं को मनोरोग विशेषज्ञ की सलाह से लगातार लेना जरूरी होता है

यादाश्त कमजोर करता है मेनिया

अधिक समय तक मानसिक तनाव से पीडि़त रहने पर कुछ स्त्री-पुरुष उन्माद मेनिया से पीडि़त होते है। उन्माद में रोगी को अपनी स्मरण शक्ति पर कंट्रोल नहीं रहता। वह पागलों जैसी हरकतें करने लगता है। यदि उन्माद की जल्दी चिकित्सा न की जाए तो रोगी 'पागल' भी हो जाता है।

कैसे होता है मेनिया रोग

अधिक समय तक किसी गहरी चिंता या भय से पीडि़त रहने पर मेनिया रोग की उत्पत्ति हो सकती है। अचानक लगे सदमे के कारण भी मेनिया रोग होता है। लड़कियां अपने प्रेमी द्वारा छोड़कर चले जाने व विश्वासघात के कारण मेनिया से पीडि़त हो सकती है। सिर पर लगी चोट भी किसी स्त्री-पुरुष को उन्माद से पीडि़त कर सकती हैं।

लक्षण

मेनिया रोग के शुरुआत में रोगी पागलपन की हरकतें करता है। उसे किसी बात का स्मरण नहीं रहता। सब काम उलटे करने लगता है। रोग की अधिकता में रोगी जोर से हंसता या चीखने-चिल्लाने लगता है। कभी जोर से रोने भी लगता है।

क्या खाएं?

मेनिया के रोगी को दलिया, खिचड़ी, सूप, खीर, दालें व सब्जियों का सेवन कराएं। यदि रोगी चबाकर रोटी खा सके तो उसे रोटी खिला सकते है। बादाम की 7-8 गिरी रात को जल में डालकर रखें। प्रात: उनके छिलके उतारकर, उसी के साथ पीसकर, दूध में मिलाकर पिलाएं।

क्या न खाएं?

मेनिया रोगी को चाय, कॉफी व दूसरे गर्म खाद्य पदार्थो का सेवन न कराएं। घी, तेल से बने पकवानों का सेवन न कराएं। दूषित वायु, धूल-मिट्टी व धुएं के वातावरण में रोगी को न जाने दें। रोगी को धूप में न चलने-फिरने दें।

जैसा कि अब एंड्रायड मोबाइल को लेकर बहुत से केसेज आ रहे हैं। हाईस्कूल-इंटर में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स मोबाइल की जिद और मोबाइल का अधिक यूज करने से मनोरोगी बन रहे हैं। इसमें लड़के व लड़कियां दोनों शामिल हैं। रोग का ही असर है कि सुसाइड के भी केसेज बढ़े हैं।

डॉ। तुलसी

साइकिएट्रिस्ट

पहले इतनी अवेयरनेस नहीं थी कि लोग बीमारियों के बावजूद समझ नहीं पाते थे कि क्या परेशानी है? तनाव, बेचैनी बढ़ रही है। पहले नई दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में स्ट्रेस की कम्पलेन अधिक हुआ करती थी। लेकिन अब धीरे-धीरे पूर्वाचल में भी फैल रहा है।

डॉ। संजय गुप्ता

साइकिएट्रिस्ट

अपने हॉस्पिटल में साइकिएट्रिस्ट की कमी है। फिर भी रोजाना एक-एक डॉक्टर चार-चार सौ मरीजों को देख रहा है। अधिकतर मरीजों में मेनिया, सिजोफ्रेनिया, नॉन ऑरजेनिक की समस्या अधिक है। बेहतर चेकअप के साथ ही मनोरोगियों की काउंसलिंग भी कराई जा रही है।

डॉ। अमरेंद्र कुमार

प्रमुख अधीक्षक, गवर्नमेंट मेंटल हॉस्पिटल