देहरादून (ब्यूरो) ईसी रोड स्थित काबुल हाउस की प्रॉपर्टी का मामला यूपी के समय सामने आया था। 14 अगस्त 1984 को तत्कालीन रेवेन्यू कमिश्नर राणा प्रताप ङ्क्षसह ने डीएम दून को आदेश दिया था कि काबुल हाउस की प्रॉपर्टी को अवैध कब्जेदारों से मुक्त कराया जाए। तब तहसीलदार ने कब्जेदारों को नोटिस जारी कर प्रॉपर्टी खाली करने को कहा था। हालांकि, कब्जेदारों ने रेवेन्यू कमिश्नर के आदेश को छिपाकर सिर्फ तहसीलदार के नोटिस के आधार पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। राज्य गठन के बाद प्रकरण नैनीताल हाई कोर्ट ट्रांसफर हुआ। 2007 में हाई कोर्ट को यह केस डीएम देहरादून को रिमांड कर दिया। साथ ही डीएम को केस निस्तारण तक बेदखली पर स्थगनादेश भी जारी कर दिया।

मामले से बचते रहे अफसर
2007 में प्रकरण डीएम की रिमांड में आने के बाद भी किसी अधिकारी ने इसमें हाथ नहीं डाला। इस बीच हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा गया कि काबुल हाउस की प्रॉपर्टी का कस्टोडियन जिला प्रशासन है और इसके बाद भी प्रकरण का निस्तारण नहीं किया जा रहा। साथ ही बताया गया कि प्रॉपर्टी को भूमाफिया गिरोहबंद होकर खुर्दबुर्द कर रहे हैं। यहां तक कि सरकार में निहित हो चुकी काबुल के राजशाही परिवार से जुड़ी प्रॉपर्टी के फर्जी वारिस भी सामने आ गए हैं। उन्होंने प्रॉपर्टी को कई व्यक्तियों को बेच भी दिया है। हाई कोर्ट ने 2021 में जब जिला प्रशासन को सख्ती के साथ मामले के निस्तारण के निर्देश दिए तो अफसर एक्टिव हुए।डीएम सोनिका ने सभी पक्षों के तर्क सुनने और दस्तावेजों के परीक्षण के बाद पाया कि प्रॉपर्टी पर सरकार का अधिकार है। लिहाजा, करीब 40 वर्ष के लंबे इंतजार के बाद काबुल हाउस के सभी कब्जेदारों और इससे जुड़े पक्षों के दावे को खारिज कर दिया गया। अब इस बेशकीमती प्रॉपर्टी पर जिला प्रशासन सरकार के पक्ष में कब्जा लेगा।

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