देहरादून। देश में कोरोना संक्रमण के बीच बच्चों को स्वस्थ रखना सबसे जरूरी है। बच्चों ने पेट में कीड़ों की समस्या सबसे कॉमन है। जिससे बच्चे कुपोषण सहित कई बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं, जिससे उनको कोरोना का खतरा दूसरे बच्चों से कहीं ज्यादा है। 25 सितम्बर से पूरा देश कृमि मुक्ति सप्ताह चलाया जाएगा। इस दिन सभी गवर्नमेंट और पब्लिक स्कूलों में 1-19 वर्ष तक के बच्चों को कृमि नाशक दवा खिलाई जाएगी। जिससे बच्चों में कृमि को खत्म किया जा सके।
क्या होता है कृमि
आंतों के कीड़े या कृमि, जिन्हें परजीवी कीड़े भी कहा जाता हैं। ये आंतों के कई प्रकार के पैरासाइट में से एक हैं। आतों में फ्लैटवर्म, जिसमें टेपवर्म और फ्लूक वर्म आते हैं। इसके अलावा राउंडवॉर्म, एस्कारियासिस, पिनवर्म और हुकवर्म बॉडी में कई तरह के संक्रमण का कारण बनते हैं।
यह हैं कृमि के लक्षण
-बार-बार पेट में दर्द होना
-आंखें लाल रहना
-जीभ का रंग सफेद एवं जीभ मोटी होना
-मुंह से हर समय दुर्गन्ध आना
-सोते समय जिन बच्चों के दांत बजना
-बार-बार दस्त लगना
-डाइट से ज्यादा भूख लगना
-खाना ज्यादा खाने के बावजूद वजन गिरना
ये हैं कृमि होने के रीजन
-दूषित पानी पीने के कारण।
-दूषित मिट्टी में खेलना या खाना।
-सफाई की व्यवस्था न होना।
-गलत खान-पान।
-गंदे हाथों से खाना।
-खुले में रखे हुए खाने को खाना।
-शौच के बाद हाथ साफ न करना।
यह रखें सावधानी।
-जीवनशैली और खाने में बदलाव ज़रूरी।
-भोजन करने से पहले और बाद में हाथों को अच्छी प्रकार धोएं।
-खुले में बनने वाला भोजन न खाएं।
-खुले में बिकने वाली चीजें न खाएं।
-पानी को बॉयल और फिल्टर करके पिएं।
-दूषित एवं बासी भोजन न खाएं।
-अधिक मीठे एवं डिब्बाबंद पदार्थो का सेवन न करें।
-अच्छी प्रकार पका हुआ एवं स्वच्छ भोजन करें।
-कच्ची सब्जियां और कच्चे मांस का सेवन न करें।
-मीठे एवं चिपचिपे पदाथरें का सेवन कम करें।
कोरोना काल में कृमि की दवा खाना लाभदायक
कोरोना काल कृमि की दवा खाना जरुरी है। क्योंकि पेट में कीड़े होंगे, तो उससे इम्युनिटी कमजोर होगी। जिससे कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। इसे देखते हुए कोरोना संक्रमण के बीच कृमि की दवा खिलाना जरूरी है।
कोरोना संक्रमण के बीच कृमि की दवा खिलाना बच्चों के लिए लाभदायक होगा। इसलिए कोरोना संक्रमण के बीच दवा अवश्य खिलाएं। ताकि पेट में कीड़े होने से इम्युनिटी कमजोर न हो और बच्चों को दूसरी बीमारियों के साथ कोरोना से बचा जा सके।
डॉ। के। कुमार कौल, फिजिशियन दून मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल