देहरादून ब्यूरो। मोथरावाला के पास रिस्पना और बिंदाल नदियां मिल जाती है और आगे इसे सिसवा नदी के नाम से जाना जाता है। आगे जाकर सिसवा के आसपास में वन क्षेत्र से आने वाले नाले मिलते हैं, जो हरिद्वार के पास गंगा में मिलते हैं। मोथरावाला के पास जहां दोनों नदियां मिलती हैं, वहां नदी का पाट काफी चौड़ा है और सैकड़ों टन कचरा यहां डंप है। सड़क से गंदगी की पर नजर न पड़े इसके लिए सड़क के किनारे और पुल को ग्रीन नेट से कवर किया गया है।

चार बस्तियों का डंपिंग ग्राउंड
मोथरावाला से रिस्पना की ओर बढ़ते हुए चार रिस्पना के दोनों तरफ चार बस्तियां हैं। शिव नगर, एमडीडीए कॉलोनी, दीप नगर और शाह नगर। ये घनी बस्तियां हैं और इन बस्तियों का कचरादान रिस्पना नदी ही है। शाह नगर के पास रोड के किनारे डस्टबिन नजर आये। लेकिन वे भरे हुए थे। डस्टबिन से ज्यादा कचरा बाहर बिखरा हुआ था। डस्टबिन के ठीक पीछे रिस्पना में कचरा का ढेर लगा था। बताया गया कि डस्टबिन का कचरा उठाया नहीं जाता, बल्कि सफाई कर्मी झाडू लगाकर नदी में फेंक देता है। नदी के दूसरी तरफ बसे दीपनगर से निकलने वाले कचरे के ढेर रिस्पना के दूसरे किनारे में लगे हुए हैं।

पीएम के हस्तक्षेप के बाद भी बदहाली
रिस्पना की इस हालत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मन की बात में भी रिस्पना नदी की दुर्दशा का मुद्दा उठ चुका है। मन की बात के 50वें एपिसोड में मार्च 2017 को प्रधानमंत्री ने दीपनगर निवासी बीए की स्टूडेंट गायत्री की एक मैसेज का जिक्र किया था। इसमें गायत्री ने कहा था कि पूरे साल बहने वाली रिस्पना अब डंपिंग ग्राउंड बन गई है। प्रधानमंत्री ने कहा था कि गंदगी के प्रति यह गुस्सा अच्छा है। स्वच्छ भारत मिशन को इसी तरह के गुस्से से सफलता मिलेगी। इस प्रकरण के कुछ समय तक रिस्पना में कई बार अधिकारी पहुंचे। कुछ योजनाएं भी बनी, लेकिन रिस्पना की हालत सुधर नहीं पाई।

फ्लैश बैक पर एक नजर
देहरादून के निवासी और जन विज्ञान के जुड़े विजय भट्ट रिस्पना और बिंदाल की पुरानी स्थिति को याद करते हुए कहते हैं। रिस्पना साफ पानी की नदी थी। रिस्पना पर पुल नहीं था, कॉजवे था। बरसात में वाहन नहीं आ पाते तो गोरखपुर गांव के लोग झोटा बुग्गी से लोगों को आर-पार करवाते थे। नदी के किनारे घनी झाडिय़ां होती थी। चूना भट्टा के पास जरूर रिस्पना की स्थिति खराब लगती थी, क्योंकि यहां हर समय भट्टियों के गंध समाई रहती थी। साफ सुथरी बजरी छनती थी। रिस्पना के बारीघाट के बजरी सबसे अच्छी और महंगी मानी जाती थी, इसमें चूने का लेप होता था। रिस्पना और बिंदाल चौड़े पाटों वाली नदियां थी। 1990 के बाद के बाद दोनों नदियों का गंदलाते और इसके पाट संकरे होते महसूस किये। 2000 के बाद यह सिलसिला बढ़ गया और अब स्थिति सामने है।