देहरादून, 13 मार्च (ब्यूरो)।
दून मेडिकल कॉलेज में ग्लूकोमा वीक मनाया जा रहा है। इस दौरान हॉस्पिटल के सीनियर एसोशिएट प्रोफेसर डॉ। सुशील ओझा और आई डिपार्टमेंट में एचओडी डॉ। यूसुफ रिजवी हॉस्पिटल में सैकड़ों पेशेंट्स की जांच की। जिसमें कई पेशेंट ऐसे मिले जिनमें ग्लूकोमा के लक्षण दिखाई दिए। डॉ। सुशील ओझा ने बताया कि 18 मार्च तक ये जांच लगातार की जाएगी।

40 साल के बाद ज्यादा खतरा
डॉ। रिजवी ने बताया कि इस बीमारी के 40 साल बाद होने का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए इस दौरान नियमित जांच जरूरी है। 40 साल के बाद आंखों की जांच समय-समय में कराते रहें। रोजाना वर्कआउट करें।

क्या है ग्लूकोमा
ग्लूकोमा आंख से जुड़ी एक बीमारी है। इसे काला मोतियाबिंद भी कहा जाता है। 10 से 15 प्रतिशत केसों में यह बीमारी भाई-बहनों में भी पाई जाती है। एक रिसर्च के मुताबिक देश में हर आठवां व्यक्ति ग्लूकोमा से पीडि़त है। 11.2 मिलियन भारतीय इस बीमारी से ग्रस्त हैं और 1.1 मिलियन लोग अंधे हैं। इनमें बच्चे भी शामिल हैं। आधे से ज्यादा लोग अपनी स्थिति के बारे में अनजान हैं।

बच्चों में भी हो रहा ग्लूकोमा
बच्चों में यह अनुवांशिक रूप से भी उभर कर सामने आ रहा है। बीते कुछ दिन में हॉस्पिटल में पहुंचने वाले पेशेंट में कई बच्चे ऐसे थे जिनमें ग्लूकोमा के लक्षण मिले हैं। डॉक्टर्स के अनुसार डायबिटिक व हाई ब्लड प्रेशर वाले पेशेंट को ग्लूकोमा की जांच कराने की की जरूरत है। जिससे समय से पता चले और उपचार किया जा सके।

वल्र्ड ग्लूकोमा वीक के तहत हॉस्पिटल में ग्लूकोमा की जांच की जा रही है। आवश्यक जांच और जरूरत पडऩे पर उपचार शुरू किया जाएगा। आंखों की सुरक्षा के लिए लोग को सावधानी बरतनी चाहिए। बुजुर्ग ही नहीं, बच्चों में भी ये लक्षण मिल रहे हैं। -:
सुशील ओझा, ऑप्थेमोलॉजिस्ट, दून मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल
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