देहरादून,(ब्यूरो): राजधानी दून में शताब्दी पूर्व से इतिहास समेटे खलंगा युद्ध स्मारक आजकल चर्चाओं में है। चर्चा में इसलिए चूंकि इस जगह पर सरकार ने वाटर ट्रीटमेंट प्लांट (डब्ल्यूटीपी) प्रस्तावित है, जिससे दून शहर की प्यास बुझाई जानी है। इस डब्ल्यूटीपी की वजह से खलंगा के पहाड़ी से 2-3 हजार पेड़ों की बलि जानी है, जिसका लोकल पब्लिक, पर्यावरणविद़ और एनजीओ से जुड़े लोग विरोध कर रहे हैं। विरोध के पीछे पर्यावरण के साथ ही पेयजल स्रोतों को क्षति पहुंचने की बात हो रही है। लोग इस ऐतिहासिक स्थल से किसी भी कीमत पर पेड़ों को न काटने की सरकार से मांग कर रहे हैं। डब्ल्यूटीपी के विरोध के बीच ऐतिहासिक धरोहर खलंगा युद्ध स्मारक आजकल चर्चा का केंद्र बना हुआ है।

1814 में रचा गया था इतिहास
खलंगा युद्ध स्मारक जहां पर स्थित है वहां अग्रेजों और एंगलो-गोरखा युद्ध हुआ था। इसी जगह पर 1814 में बलभद्र कुंवर थापा व उनके बहादुर सेनानियों ने अंग्रेजों को रोका था। तब से लेकर यह जगह ऐतिहासिक स्थल के रूप में दर्ज है। खलंगा वॉर मेमोरियल गढ़वाल के शौर्य के प्रतीक 52 गढ़ों में भी शामिल है। चर्चा में आने के बाद कई लोग आजकल खलंगा के इतिहास और उसके गौरवमयी इतिहास के बारे में जानने को उत्सुक हो रहे हैं।


खुखरियों के दम पर जीता रण
दून घाटी की खूबसूरत वादियों के बीच बना खलंगा वार मेमोरियल गोरखा योद्धाओं के शौर्य का प्रतीक है। खलंगा में केवल 600 गोरखाओं ने खुंखरियों के दम पर अंग्रेजी सेना के छक्के छुड़ा दिये थे। खलंगा युद्ध में गोरखा सैनिकों ने अपने अदभुत रण कौशल का परिचय दिया था। जिसका अंग्रेजों ने भी लोहा माना। खलंगा युद्ध के बाद अंग्रेजों ने गोरखाओं के सम्मान में खलंगा वार मेमोरियल का निर्माण करवाया।

वीरता की याद दिलाता है वार मेमोरियल
खलंगा वार मेमोरियल नालापानी के पास खलंगा की पहाड़ी पर बना है। यह शौर्य के प्रतीक के रूप में देवभूमि के सपूतों की बहादुरी की याद दिलाता है। खलंगा की पहाड़ी पर जंगलों के बीचों बीच गोरखा सैनिक कमांडर बलभद्र सिंह थापा अपने सैनिकों और परिवार के साथ रह रहे थे। इस किले को जीतने के लिए ब्रिटिश सरकार के सैनिकों और अधिकारियों ने हमला बोल दिया।

3500 फिरंगियों को चटाई थी धूल
उस समय करीब 600 गोरखा सैनिकों ने खलंगा पर मोर्चा संभाला था, जिसमे करीब 100 महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे, जबकि बलभद्र के सैनिकों के सामने ब्रिटिश सरकार की 3500 सैनिक उस दौरान में आधुनिक हथियारों से लैस खड़े थे। बावजूद इसके गोरखा सैनिकों ने पारंपरिक हथियार खुखरी, तलवार और धनुष-बाण से इस जंग को लड़ा। तब से लेकर आज तक यहां वीर सपूतों की याद में मेला भी आयोजित किया जाता है।

अंग्रेजों ने बनवाया वार मेमोरियल
इस जंग में गोरखा सैनिकों ने करीब 750 सैनिकों और 31 अधिकारियों को मौत के घाट उतारा था। बलभद्र के करीब 130 सैनिकों की भी शहादत हुई। साथ ही देहरादून के खलंगा पहाड़ी पर हुए इस युद्ध में गोरखा सेना का नेतृत्व कर रहे वीर बलभद्र भी शहीद हो गये। इस जंग में गोरखा सैनिकों के शौर्य और वीरता को देख ब्रिटिश हुकुमत प्रभावित हुई। जिसके बाद अंग्रेजों ने शत्रु सेना के सम्मान में बलभद्र खलंगा युद्ध स्मारक का निर्माण करवाया। साथ ही 1815 में ब्रिटिश सरकार ने गोरखा रेजीमेंट की भी स्थापना की।

खलंगा का मतलब छावनी
बहादुरी की मिशाल पेश करता खलंगा युद्ध स्मारक आज एक फेमस टूरिस्ट स्पॉट भी है। यहां हजारों पर्यटक पहुंचते हैं। बहुत सारे लोग खलंगा के बारे में नहीं जानते होंगी कि खलंगा का मतलब क्या होता है। दरअसल, खलंगा एक नेपाली भाषा का शब्द है, जिसका मतलब छावनी से है। अंग्रेजी इतिहासकारों ने इसे किला कहा था।

पेड़ों की बलि चढ़ाना शर्मनाक
खलंगा ऐतिहासिक स्मारक है। यहां पर अंग्रेजों के साथ कई बार युद्ध लड़ा गया और यहां ही अंग्रेजों को नॉर्थ की ओर आने से रोका गया। ऐसे ऐतिहासिक जगह को संजोया जाना चाहिए न कि बरबाद किया जाना चाहिए।
सीबी थापा,

खलंगा का आर्केलॉजिकल महत्व है। ऐसे स्थलों को संरक्षित रखा जाना चाहिए। वाटर ट्रीटमेंट प्लांट दूसरी जगह पर भी बनाया जा सकता है। सरकार को वाटर प्रोजेक्ट के लिए दूसरे विकल्पों पर विचार करना चाहिए।
वाईबी थापा,

पेड़ों से ही हवा और पानी मिल रही है। शहर के अंदर से लाखों पड़ों को उखाड़ फेंक सिटी का विस्तार हो रहा है। यदि ऐसा हुआ तो भविष्य में पानी के सा्रेत सूख जाएंगे और स्वच्छ हवा के लिए भी तरशना पड़ेगा।
डॉ। आंचल शर्मा, द अर्थ एंड क्लाइमेट इनीशिएटिव

एक तरफ सरकार पेड़-पौधों को संरक्षित करने की अपील कर रही है वहीं दूसरी ओर पेड़ों को काटने की योजना बना रही है। पेड़ों की कमी से शहर का वाटर लेवल लगातार गिर रहा है, इसके बाद भी सरकार चेत नहीं रही है।
प्रदीप कुकरेती, राज्य आंदोलनकारी


खलंगा पर एक नजर
1814
में अंग्रेजों के साथ लड़ा गया युद्ध
750
अंग्रेजी सैनिक व 31 अफसरों को किया गया ढेर
1815
में अंग्रेजों ने शत्रु सेना के सम्मान में में बनाया यह वार मेमोरियल।
1500
फिरंगी सैनिक व उनके 35 अफसर युद्ध के बीच बुरी तरह जख्मी होने के बाद हुए थे भाग खड़े।

dehradun@inext.co.in