देहरादून (ब्यूरो) ट्रांसप्लांट विधि बहुत ही जटिल प्रक्रिया है। पेड़ों को जड़ों समेत सुरक्षित निकालना और फिर उसे दूसरी जगह ले जाना मुश्किल काम है। पीडब्ल्यूडी के अफसरों का कहना है कि विदेशों मेें चौड़ी-चौड़ी सड़कें है। ओपन वायर नहीं है। बड़ी-बड़ी मशीनें कहीं भी आसानी से जा सकती है। लेकिन उत्तराखंड की भौगोलिक संरचना पहाड़ीनुमा होने के कारण यहां पेड़ों को इधर-उधर ले जाना मुश्किलों भरा काम है। सड़कों की चौड़ाई पहले ही बहुत कम है। बड़ी मशीनें लाई नहीं जा सकती। ऊपर से सड़कों के ऊपर बिजली, टेलीफोन समेत कई तरह की केबल गुजर रही है, जिससे पेड़ों को एक स्थान से दूसरे स्थानों पर ले जाना बहुत ही कठिन हो रहा है। जितना संभव हो रहा है उससे बढ़कर काम किया जा रहा है।

जेसीबी-पोकलेन का ही सहारा
पेड़ों को ट्रांसप्लांट के लिए तकनीक की मदद नहीं मिल पा रही है। कई पेड़ों की जड़ें कई-कई मीटर गहरी है। लेकिन मशीन 400 से लेकर 500 एमएम डाया से अधिक की मशीन नहीं है। जिससे ज्यादा गहरी जड़ों वाले पेड़ पोकलेन व जेसीबी से सुरक्षित नहीं निकल पा रहे हैं। ये मशीनें करोड़ों रुपए की है, जिन्हें खरीदना मुश्किल है। ऐसे में जितना भी संभव हो रहा है जेसबी और पोकलेन मशीनों से ही काम चलाया जा रहा है। भविष्य में इसमें और एडऑन की गुंजाइश है।

100 साल तक पुराने पेड़
सहस्रधारा रोड और हरिद्वार बाईपास से ट्रांसप्लांट किए जा रहे कई पेड़ 50 से 100 साल तक पुराने हैं। इनमें से कई पेड़ आयु पूरी कर चुके हैं। कोशिश की जा रही है कि किसी तरह भी पेड़ों को नुकसान से बचाया जा सके। इसके लिए कंपनी भी हायर की गई है, जो पेड़ों को ट्रांसप्लांट के साथ ही उनकी परवरिश भी कर रही है। 50 परसेंट से अधिक पेड़ों का सर्वाइव करना भी बड़ी उपलब्धि बताया जा रहा है।

अनुभव की भी कमी
दून में ट्रांसप्लांट तकनीक पहली बार यूज हो रही है। इसलिए विभागीय अधिकारियों के पास अनुभव की भी कमी है। अफसरों ने बताया कि ट्रांसप्लांट के बाद कमियों को प्वाइंटेड किया जा रहा है, जिन्हें आगे ट्रांसप्लांट होने वाले पेड़ों पर एप्लाई किया जाएगा। हर तरह से पेड़ों की मॉनिटरिंग की जा रही है। आगे इसके रिजल्ट और बेहतर होंगे।

ये हैं चुनौतियां
- संकरी सड़कें और घुमावदार मोड़ आ रहे आड़े
- बड़ी मशीन महंगी, छोटी मशीन से प्रभावित हो रहा काम
- सड़कों पर बिजली, टेलीफोन की तारें भी बन रही रुकावटें
- जगह की कमी भी हो रही महसूस, नहीं मिल रही खाली जमीनें
- नदी के किनारे लगाए गए पेड़ कर रहे कम सर्वाइव

एक पेड़ पर 40 हजार तक खर्च
एक पेड़ को ट्रांसप्लांट करने में 20 हजार से लेकर 40 हजार तक खर्च आता है। इसमें ट्रांसप्लांट से लेकर लोडिंग, अनलोडिंग और खाद देना शामिल होता है। जहां पर पेड़ लगाए जाते हैं उस जगह की पहले नमी की जांच की जाती है। एक्सपर्ट का कहना है कि ट्रांसप्लांट के जरिए 70 से 80 परसेंट पेड़ ही सर्वाइव कर पाते हैं।

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