-'हां, मैं सावित्री बाई फुले' नाटक का किया मंचन

-सावित्री बाई ने बालिका शिक्षा के लिए उठाए कदम

स्त्रद्गद्धह्मड्डस्त्रह्वठ्ठ@द्बठ्ठद्ग3ह्ल.ष्श्र.द्बठ्ठ

ष्ठश्व॥क्त्रन्ष्ठहृ : 'हां, मैं सावित्री बाई फुले' नाटक के मंचन ने सावित्री बाई के बालिका शिक्षा के लिए संघर्ष को जीवंत कर दिया। उन्होंने देश की पहली महिला शिक्षक बनकर बालिका शिक्षा की बुनियाद का पहला पत्थर 1 जनवरी 1848 को रखा। उन्होंने लड़कियों के लिए पहला स्कूल पुणे में खोला। संडे को नगर निगम के टाउन हॉल डाक्टर सुषमा देशपांडे ने देश की पहली महिला शिक्षक सावित्री बाई फुले के व्यक्तिव को मंच पर प्रस्तुत किया। पिछले दस वर्षो से उत्तराखंड में शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के सौजन्य से यह प्रस्तुति दून में हुई।

जाति, धर्म, वर्ग के भेद से ऊपर

करीब 25 वर्षो से नाटक की लेखिका व निर्देशिका सुषमा देशपांडे नाटक का सफल मंचन करती आ रही हैं। सुषमा के अनुसार नाटक का उद्देश्य शिक्षा की जरूरत जाति, धर्म, वर्ग, नस्ल के तमाम भेद से ऊपर है। इस सोच के जरिए ही महिलाओं के लिए शिक्षा के महत्व के विचार को और आगे बढ़ाना है।

शिक्षा सिर्फ पुस्तकों में ही दर्ज नहीं

राज्य प्रमुख अनंत गंगोला ने बताया की शिक्षा सिर्फ पाठ्य पुस्तकों में ही दर्ज नहीं है। इस तरह के कार्यक्रम शिक्षा के विजन को बढ़ाते हैं। उन्होंने बताया कि देहरादून के बाद नाटक की प्रस्तुति उधमसिंह नगर और पिथौरागढ़ में भी होगी। इस मौके पर सरकारी व गैर सरकारी शैक्षिक संस्थाएं, शिक्षक स्वयं सेवी संस्थाएं, लेखक, कलाकार आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन सुभाष रावत ने किया। सुषमा देशपांडे व सावित्रीबाई का परिचय प्रतिभा कटियार ने दिया।