देहरादून(ब्यूरो): उत्तराखंड सरकार ने देवभूमि को वर्ष 2025 तक ड्रग्स फ्री बनाने का लक्ष्य रखा गया है। स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक इस अभियान को सफल बनाने के लिए सभी की मदद ली जा रही है। स्पेशल युवाओं को नशे की खिलाफ जंग के लिए अवेयर किया जा रहा है। इसको देखते हुए विभाग ने सभी नशामुक्ति सेंटर्स का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया है। अवैध सेंटर्स संचालकों को चेतावनी दी है कि यदि उन्होंने पंजीकरण नहीं कराया तो उनके केंद्रों पर एक्ट के अनुसार कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

4 इंटीग्रेटेड रिहैबिलिटेशन सेंटर संचालित

स्वास्थ्य सचिव डॉ। आर राजेश कुमार के अनुसार स्टेट को 2025 तक नशा मुक्त करना है। राज्य में जहां एक ओर आमजन और विशेषकर युवाओं में नशे के विरुद्ध जागरूकता लाई जा रही है। वहीं, नशा तस्करी से जुड़े अपराधियों पर कड़ी करवाई की जा रही है। सीएम के निर्देश पर नशे से ग्रस्त लोगों को मुख्यधारा से जोडऩे व पुनर्वास के लिए सभी जिलों में नशा मुक्ति सेंटर्स को प्रभावी बनाया जा रहा है। वर्तमान में चार इंटीग्रेटेड रिहैबिलिटेशन सेंटर फॉर एडिक्ट्स संचालित किए जा रहे हैं।

नशे के विरुद्ध ये प्रयास शुरू


-समाज के कई वर्गों व विशेषकर युवाओं में नशे के दुष्परिणामों को लेकर अभियान शुरू।
-नशे की गिरफ्त में आए लोगों को काउंसिलिंग और इलाज कर नशे से किया जाएगा दूर।
-नॉन रजिस्टर्ड नशा मुक्ति सेंटर्स पर नियंत्रण के लिए सरकार ने लिया फैसला।
-जिन सेंटर्स ने किया रजिस्ट्रेशन, उन पर एक्ट के तहत होगी कार्रवाई तय।

रजिस्ट्रेशन की लास्ट डेट 14 दिसंबर

स्वास्थ्य सचिव के अनुसार नशामुक्ति सेंटर्स व मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों के संचालन के लिए कोई मानक न होने के कारण कई बार मीडिया व सोशल मीडिया के जरिए कुछ इंस्टीट्यूशंस में अनियमितताओं व मिस बिहेव की कंप्लेन सामने आ रही हैं। ऐसे में इन संस्थानों के लिए नियम बनाकर राज्य में लागू कर दिए गए हैं। जिससे सभी मानसिक स्वास्थ्य संस्थान, नशामुक्ति सेंटर्स व ऐसे पुनर्वास केन्द्र जहां मानसिक रोग से ग्रस्त व्यक्ति रखे जाते हैं। वे नियमों के साथ संचालित हों। सभी को राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण में रजिस्टर्ड होने जरूरी किया गया है। ये भी तय किया गया है कि ऐसे इंस्टीट्यूशंस को आकस्मिक विजिट किया जाएगा। इसके अलावा रजिस्ट्रेशन की लास्ट डेट 14 दिसंबर तय की गई है।

रजिस्ट्रेशन पर एक नजर

-राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण में करीब 70 नशामुक्ति केन्द्रों व मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों ने रजिस्टे्रशन के लिए किया आवेदन।
-इस क्रम में अंतिम रजिस्ट्रेशन प्रमाण-पत्र आवंटन की प्रक्रिया है गतिमान
-नॉन रजिस्टर्ड सेंटर्स संचालित करने पर ऐसे सेंटर माने जाएंगे गैर कानूनी।
-ऐसे सेंटर्स के खिलाफ राज्य मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम-2017 के तहत होगी कार्रवाई।

नशे के ये साइड इफैक्ट्स


-राज्य में युवाओं में नशे की प्रवृत्ति एक प्रमुख समस्या के रूप में उभर कर आ रही सामने।
-डब्ल्यूएचओ की 2001 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में मानसिक रोग से ग्रस्त लोगों का औसत कुल आबादी को 10 परसेंट।
-उत्तराखंड में मानसिक रोगियों की संख्या करीब 11 लाख 70,000 तक।
-स्वास्थ्य विभाग का दावा, इसमें से 2,34,000 अति गंभीर रोगी
-6 साल तक मानसिक दुर्बलता से ग्रस्त बच्चों की संख्या करीब 1,17,000 तक।


मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय में बढ़ रहे पेशेंट्स

विभाग के मुताबिक राज्य में एकमात्र मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय सेलाकुई दून में मौजूद है। जहां मानसिक रोग से ग्रस्त दीर्घकालीन प्रवास करने वाले पेशेंट्स की संख्या में हो रही है बढ़ोत्तरी। वर्तमान में यहां करीब 26 ऐसे मरीज हंै। जिनको पुनर्वास केन्द्र निर्मित होने पर वहां भेजा जा सकता है।

स्पेशलिस्ट की भारी कमी

राज्य में मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्यरत स्पेशलिस्ट की भारी कमी है। वहीं, पुनर्वास सेंटर्स की भी संख्या सीमित है। ऐसे में प्रदेश सरकार द्वारा 30 डॉक्टरों को निम्हांस बंगलुरू से डीपीसीपी का कोर्स कराया गया है। उनसे भी मानसिक रोगियों के ट्रीटमेंट का कार्य करवाया जा रहा है। स्टेट में दो स्थानों पर 100 बेड के नशा मुक्ति सेंटर गढ़वाल व कुमाऊं मंडल में बनाए जाने की प्रक्रिया गतिमान है। जबकि, मानसिक स्वास्थ्य संस्थान सेलाकुई को 100 बेड के साथ मानसिक चिकित्सालय में अपग्रेड किया गया है। गेठिया नैनीताल में 100 बेड का मानसिक चिकित्सालय को बनाने की योजना पर कार्य किया जा रहा है। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटलों में 5 परसेंट बेड मानसिक रोगियों व नशे के आदि वाले लोगों के लिए रिजर्व करने के निर्देश दिये गये हैं।


टोल फ्री नंबर पर लें सहायता

नशामुक्ति के लिए टेली-काउंसिलिंग की सुविधा भी दी जा रही है। इसके तहत 24 घंटे मानसिक स्वास्थ्य सहायता उपलब्ध कराई जा रही है। इसके लिए टोल-फ्री नंबर-14416 व 18008914416 जारी किया गया है।

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