देहरादून (ब्यूरो) गूगल पर दून हॉस्टल सर्च करते ही हजारों हॉस्टल-पीजी की लिस्ट सामने आ जाती है। लोकल तो छोडि़ए बड़ी कंपनियों पर भी इनका प्रचार चल रहा है। कंपनियां भी इनसे से करोड़ों रुपए कमा रही है। इतनी बड़ी संख्या में हॉस्टल-पीजी चलने के बाद भी सिस्टम सोया हुआ है। राज्य बनने के 23 साल बाद भी सरकार इस पर कोई कानून नहीं बना पाई है। जिम्मेदार आखिर क्यों सोए हुए हैं, इसको लेकर तमाम सवाल उठ रहे हैं।

सिस्टम ने मूंदी आंख, अभिभावक परेशान
दून में बगैर रजिस्ट्रेशन के चल रहे हॉस्टल-पीजी पर सरकार को कोई नियंत्रण नहीं है। नगर निगम से लेकर, एमडीडीए, शिक्षा से लेकर पुलिस-प्रशासन कोई भी जिम्मेदार उठाने को तैयार नहीं है। इसके चलते हॉस्टल और पीजी संचालक अभिभावकों को मनमाने तरीके से पैसे वसूल रहे हैं। करोड़ों की कमाई करने वाले ये हॉस्टल-पीजी एक रुपया भी टैक्स नहीं दे रहा है। आखिर सवाल यह है कि इनकी मॉनिटरिंग क्यों नहीं है। क्या इनसे अफसर मिले हुए हैं। यदि नहीं, तो फिर इस पर कार्रवाई आगे क्यों नहीं बढ़ रही है।

कई बड़े संस्थान भी शामिल
दून को एजुकेशन हब के रूप में जाना जाता है। यहां कई नामी स्कूल, कॉलेज, यूनिवसिर्टीज हैं, जहां हजारों स्टूडेंट््स हॉस्टल में रहते हैं। कालेज 10 से लेकर 20 हजार रुपए प्रति स्टूडेंट््स वसूल रहा है। नियम न होने से ये लोगों से मनमाना पैसा वसूल रहे हैं। जो सिस्टम पर सवाल खड़ा कर रहा है। शासन और पुलिस-प्रशासन इस ओर क्यों आंखें मूंदे बैठा, यह सोचने वाली बात है।

रजिस्ट्रेशन होना जरूरी
शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि हॉस्टल-पीजी में युवा बच्चे पढ़ते हैं। कई हॉस्टल-पीजी के नाम पर गलत गतिविधियां भी संचालित कर रहे हैं। इसलिए ऐसे में शासन और प्रशासन स्तर पर इनकी मॉनिटरिंग जरूरी हो जाती है। इसके लिए रजिस्टे्रशन अनिवार्य किया जाना चाहिए। किसी विभाग को इसकी जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। इससे जहां व्यवस्था सुधरेगी वहीं सरकार को करोड़ों का टैक्स भी अर्जित होगा। रजिस्ट्रेशन करके ही इन पर शिकंजा कसा जा सकता है। आवासीय क्षेत्रों में कॉमर्शियल गतिविधियांदून में तमाम हॉस्टल-पीजी आवासीय भवनों में संचालित हो रहे हैं। इन पर न नगर निगम का ध्यान है और न ही एमडीडीए का। एमडीडीए का नक्शा पास करते समय यह नहीं देख रहा है इसका प्रपज क्या है और नगर निगम कॉमर्शियल गतिविधि करने के बावजूद इनसे हाउस टैक्स ले रहा है। कई पीजी तो हाउस टैक्स भी नहीं भर रहे हैं कॉमर्शियल टैक्स तो दूर। इससे सरकार को हर माह करोड़ों का चूना लग रहा है। कालेजों के आस-पास सर्वाधिक हॉस्टल व पीजी हैं।

500 करोड़ से अधिक का कारोबार
एक हॉस्टल-पीजी संचालक एक स्टूडेंट्स से मंथली 10 हजार के हिसाब से ले रहा है। एक पीजी में 30 से लेकर 50 स्टूडेंट्स है, तो वह करीब 5 लाख मंथली बैठता है। इसमें यदि आधी भी बचत लगाई जाए तो एक पीजी कम से कम 2.50 लाख मंथली कमा रहा है, जो सालाना 30 लाख बैठता है। यदि 2 हजार पीजी का 30 लाख के हिसाब से भी कैल्कुलेशन लगाया जाए तो यह 600 करोड़ से अधिक कमा रहे हैं। ताज्जुब की बात यह है कि इसमें से एक रुपया भी सरका को टैक्स नहीं मिल रहा है।

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