यह प्रयत्न आवश्यक

विहिप के प्रदेश अध्यक्ष अमन पूरी द्वारा सरकार को भेजे गए पत्र में लिखा है कि सरकारी गजट और कई दस्तावेज गवाह हैं कि पूर्व में शिमला का नाम मां श्यामला के नाम पर ही था। अंग्रेजों की ग्रीष्मकालीन राजधानी के कारण वह मां श्यामला का नाम द्वेषपूर्वक उन्होंने शिमला रख दिया। सलाह यह भी दी गई है कि पीटरहॉफ का नाम महर्षि वाल्मीकि सदन होना चाहिए। आज भी पीटरहॉफ पर तीन शेर के निशान व यूनियन जैक का झंडा गुलामी की दास्तान को याद कराते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम राम जन-जन के राजा बने जिन्हें जन-जन का राजा बनाने का योगदान महर्षि वाल्मीकि का है। सरमसता का यह प्रतीक चिह्न बनेगा। विहिप का तर्क है कि भारत जाति वर्ग में टूट रहा है इसे अखंड रखने के लिए यह प्रयत्न आवश्यक है।

सुभाष चंद्र बोस के नाम

इसी प्रकार डलहौजी का नाम नेता जी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर होना चाहिए। डलहौजी से नेता जी सुभाष चंद्र बोस का नाता जुड़ा है। ब्रिटिशकाल के सबसे बड़े आतताई लॉर्ड डलहौजी जिसने कई रियासतें अपनी धूर्तता के साथ कब्जाईं, हम उसके नाम से इस स्थान को क्यों संजोए हुए हैं। नूरपूर का नाम बेगम नूरजहां के पर रखा गया है जिसका नाता हिमाचल से कभी नहीं रहा। 1857 की क्रांति के पहले के नायक वीर राम सिंह पठानिया के नाम पर नूरपुर का नाम हो। जिन्होंने अंग्रेजों को अपनी मात्रभूमि को छूने तक नहीं दिया।यह हिमाचल का वीर सपूत वीर राम सिंह पठानिया था जिसने भारतवर्ष के अंदर 1857 की क्रांति से पहले हिमाचल में अंग्रेजों को नाकों चने चबवाए थे। परिषद ने मांग की है कि दलगत राजनीति से उठकर इन सब गुलामी के प्रतीक चिह्नों को बदल कर अपने पूर्वजों व देवी देवताओं को याद किया जाए।

सनातन संस्कृति की रक्षा

हालांकि इस मांग पर मुख्यमंत्री और सरकार क्या निर्णय लेते हैं, यह भविष्य के गर्भ में है लेकिन विहिप ने अपने पत्र में वीरभद्र सिंह के बारे में यह माना है कि 'आपने पूर्व में भी धर्म स्वतंत्रता विधेयक पारित कर सनातन संस्कृति की रक्षा की है।Ó विहिप ने लिखा है कि अगर नाम परिवर्तित हो जाएं तो एक ङ्क्षहदू राजा के रूप में आपका नाम हिमाचल में नहीं, संपूर्ण भारत वर्ष में सम्मानित रहेगा। पत्र में यह हवाला भी दिया गया है कि कैसे आजादी के बाद देश में गुलामी के कई प्रतीक हटे हैं जैसे जैसे मिंटो ब्रिज का नाम शिवा जी पर और विक्टोरिया पार्क का नाम भामाशाह/महात्मा गांधी रख दिया गया था। इधर, मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने स्पष्ट किया कि शिमला शहर का नाम बदलने का कोई औचित्य नहीं है।

अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त

हिमाचल की राजधानी का यह नाम प्राचीन होने के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त है। सचिवालय में मीडिया के साथ बात करते हुए कहा कि सरकार इस बात पर विचार कर सकती है कि डलहौजी, पीटरहॉफ व नूरपूर का नाम बदलने का मामला प्रदेश मंत्रिमंडल की बैठक में लेकर जाएगी। मंत्रिमंडल की बैठक में प्रदेश के शहरों का नाम बदलने का विचार किया जाएगा। उनका कहना था कि विश्व ङ्क्षहदू परिषद की ओर से अंग्रेजों के नाम पर रखे गए शहरों का नाम बदलने का प्रस्ताव आया है। उन्होंने कहा कि मैंने कभी भी दलगत राजनीति के आधार पर काम नहीं किया है। पूरे प्रदेश को समग्र रूप से देखा है। मैं लोगों का दु:ख दर्द समझने के लिए उनके बीच मेंं जाता हूं। यही कारण है कि मैं प्रदेश की जनता में लोकप्रिय हूं।

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