आज का यूथ मौजूदा सिस्टम में बदलाव तो चाहता है, लेकिन सिस्टम का हिस्सा बनकर खुद बदलाव लाने का हौंसला नहींदिखाता. ये इंजीनियर डॉक्टर, साइंटिस्ट और राइटर बनना चाहता है, लेकिन पॉलिटिशियन नहीं. आखिर क्या वजह है कि भगत सिंह, महात्मा गांधी और विवेकानंद का फॉलोअर होने के बावजूद देश का युवा पॉलिटिक्स से नफरत करता है.

youth क्यूं बचते हैं politics से?

They don’t like politics

पॉलिटिक्स का मौजूदा स्वरूप बेहद डरावना है. उसे देखकर युवा इसमें शामिल होने का साहस नहीं जुटा पा रहा है. मौजूदा दौर के लीडर्स डेवलपमेंट के अलावा सबकुछ करने को राजी हैैं. इसके अलावा उन पर करप्शन के अनगिनत केसेज चल रहे हैं. इन सब ने युवाओं को पॉलिटिक्स से दूर कर दिया है.

Afraid of their future

आज के यूथ की एक बड़ी कैटेगरी अपने बेहतर फ्यूचर को लेकर बहुत कंसर्न रहती है. वह करियर ओरिएंटेड है और आईआईटी और आईआईएम जैसे इंस्टीट्यूट्स से पढक़र एक प्रोफेशनल के तौर पर अपना करियर बनाना चाहती हैं. पॉलिटिक्स को प्रोफेशन के तौर पर अपनाना उसे मंजूर नहीं, क्योंकि उसकी इमेजिनेशन बहुत तेज है, जबकि पॉलिटिक्स में डेवलपमेंट बहुत स्लो. वह पॉलिटिशियंस को क्रिटिसाइज तो करता है, लेकिन इसे सुधारने के लिए इसमें शामिल होने का हौंसला उसमें नहीं है.

They only think about themselves 

युवाओं की एक बड़ी तादाद ऐसी है, जो सिर्फ अपने बारे में सोचती है. उन्हें अपनी मोटी सैलरी, अच्छी वाइफ, ब्रांडेड क्लॉथ्स, बड़ी कार और एक शानदार बंगले से मतलब है. ऐसे युवा अपनी फैमिली को लेकर बहुत ज्यादा पजेसिव होते हैं. इसमें उनका भी कोई दोष नहीं, क्योंकि ये एटीट्यूड उन्हें फैमिली और आस पड़ोस के लोगों से मिला है.

...but don’t get chance

युवाओं की एक बड़ी तादाद पॉलिटिक्स में एंट्री करना चाहती है, लेकिन उन्हें सही चैनल और सही चांस नहीं मिल पा रहा है. कहने को तो लगभग सभी पॉलिटिकल पार्टीज में यूथ विंग्स हैं, लेकिन इसकी हालत अच्छी नहीं है. पॉलिटिक्स की समझ और क्वालिफिकेशन के बावजूद युवाओं को पॉलिटिकल करियर शुरू करने में मुश्किल हो रही है.

हमारे बदलने से क्या होगा?

बीएचयू स्टूडेंट प्रकाश राज के मुताबिक, पॉलिटिकल पार्टीज में यूथ को बड़े लीडर डॉमिनेट करने का मौका ही नहीं देते. उन्हें इन लीडर्स की कठपुतली की तरह काम करना होता है. इसके अलावा पॉलिटिक्स में आने और बने रहने के लिए फाइनेंशियल सपोर्ट की जरूरत होती है. इसके बिना यहां टिकना नामुमकिन है. प्रकाश की तरह दिनेश का भी मानना है कि अकेले उसके बदलाव लाने से कुछ नहीं होगा. अलबत्ता पॉलिटिक्स में जाने का मतलब उस सिस्टम का हिस्सा बन जाना होगा, जो पहले से ही काफी गंदा है. अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के जुनैद मानते हैं कि बूढ़े पॉलिटिशयंस रिटायर नहीं होना चाहते, ऐसे में यंगस्टर्स के पास पॉलिटिक्स में आने का कोई चांस ही नहीं.

Career option

आज के दौर में भी पैरेंट्स ही अपने बच्चों का करियर चूज करते हैं. ऐसे में अगर यूथ पॉलिटिक्स में जाना भी चाहे तो पैरेंट्स इजाजत नहीं देते.

-    आज का यूथ बहुत खर्चीला है. पॉकेट मनी से उसके खर्च पूरे नहीं होते. ऐसे में वह पार्ट टाइम जॉब या कोई ऐसा जरिया ढूंढ़ता है, जिससे उसे इनकम हो सके. पॉलिटिक्स एक लांग टर्म प्रॉसेस है. इसमें इनकम के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ता है. यह भी एश्योरिटी नहीं कि लंबे संघर्ष के बाद भी वो एमएलए या एमपी बन सकेंगे.

-    मौजूदा दौर में जितने भी युवा लीडर हैं उनके पीछे कोई न कोई पॉलिटिकल बैकग्र्राउंड है. ऐसा एक भी युवा लीडर नहीं, जिसने बिना बैकग्र्राउंड के जमीं से उठकर आसमां तक का सफर तय किया हो. इससे भी युवा लीडर्स का कांफिडेंस कमजोर हुआ है.

-    स्टूडेंट पॉलिटिक्स ने देश को कई बड़े लीडर दिए हैं, लेकिन मौजूदा दौर में स्टेट गवर्नमेंट्स की पॉलिसीज के चलते यह काफी कमजोर हुई है जिसका सीधा असर यूथ के हौंसलों पर दिखाई दिया है.

Political dynasty or real youth?

youth क्यूं बचते हैं politics से?

हमने जब लोगों से पॉलिटिक्स के युवा चेहरे की बात की तो जवाब में कुछ ऐसे नाम गिनाए गए जो वास्तव में आम लोगों के बीच के हैं ही नहीं. जब एक आम यूथ लीडर की बात की गई तो माहौल मौन ही मिला. जानते हैं क्या यहीं हैं हमारे यूथ लीडर...

राहुल गांधी

राहुल पॉलिटिक्स में क्यों हैं, क्योंकि वह गांधी फैमिली के वारिस हैं. कांग्रेस पार्टी के युवराज हैं. इसके अलावा उनके पास दूसरा कोई अनुभव नहीं.

सचिन पायलट

सेंट्रल गवर्नमेंट में मिनिस्टर सचिन पायलट को भी पॉलिटिक्स में इसलिए जगह मिली क्योंकि वह कांग्रेस के सीनियर और कद्दावर लीडर रह चुके स्व राजेश पायलट के बेटे हैं.

ज्योतिरादित्य सिंधिया

गुना के राजघराने से रिलेशन और कांग्रेस के सीनियर लीडर रहे स्व माधवराव सिंधिया के बेटे होने के कारण ही ज्योतिरादित्य सिंधिया आज पॉलिटिक्स में एक्टिव हैं.

उमर अब्दुल्ला

केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री और जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारुख अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुला भी अपनी राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं.

वरुण गांधी

राहुल गांधी की तरह वरुण गांधी भी गांधी फैमिली से बिलांग करते हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि वह बीजेपी के लीडर हैं.

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