दो मैचों की सिरीज़ का पहला मैच ऑकलैंड में खेला जाएगा. पांच मैचों की वनडे सिरीज़ 0-4 से हारने वाली टीम इंडिया के प्रदर्शन पर अब सबकी निगाहें टिकी हैं.

वनडे सिरीज़ में भारत की न तो गेंदबाज़ी असरदार रही और न ही बल्लेबाज़ कोई दमखम दिखा सके. यहां तक कि भारत को किसी भी मैच में मज़बूत शुरुआत तक नहीं मिली.

ऐसे में देखना होगा कि भारतीय कप्तान  महेंद्र सिंह धोनी पांच गेंदबाज़ों के साथ मैदान में उतरते हैं या फिर एक अतिरिक्त बल्लेबाज़ के साथ.

अब बल्लेबाज़ी में भी भारत के पास भरोसे के रूप में केवल चेतेश्पर पुजारा, विराट कोहली और कुछ हद तक अजिंक्य रहाणे और कप्तान धोनी हैं.

जीवट की ज़रूरत

वैसे धोनी का रिकॉर्ड एकदिवसीय क्रिकेट में अधिक शानदार है लेकिन एक बार विकेट पर जमने के बाद टेस्ट मैच में भी उनमें रन बनाने की क्षमता है.

दूसरी तरफ़ न्यूज़ीलैंड के गेंदबाज़ अपनी घरेलू परिस्थितियों में शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं तो रोस टेलर, केन विलियमसन, कोरी एंडरसन और ख़ुद कप्तान बेंडन मैकुलम बल्ले से क्या कुछ कर सकते हैं, ये वो एकदिवसीय सिरीज़ में दिखा चुके हैं.

इसलिए भारतीय गेंदबाज़ों को पहले तो इनसे पार पाना होगा और उसके बाद भारतीय बल्लेबाज़ों को अपना जीवट दिखाना होगा.

शिखर धवन और मुरली विजय की सलामी जोड़ी को भी अब कुछ कर दिखाना होगा वरना टीम में उनके चयन को लेकर सवाल तो अब उठने ही लगेंगे.

रोहित शर्मा की प्रतिभा पर किसी को शक नहीं है लेकिन ऑफ स्टम्प से बाहर जाती गेंदों पर बार बार एक ही अंदाज़ में उनका आउट होना टीम के मध्यमक्रम को कमज़ोर कर रहा है. कुल मिलाकर अभी तो भारतीय टीम की राह ऑकलैंड में आसान नज़र नहीं आ रही.

कठिन राह

क्या वनडे पस्त टीम इंडिया टेस्ट में दिखाएगी दम?

भारत के लिए न्यूज़ीलैंड का दौरा हमेशा ही कठिन रहा है. इसका जीता-जागता उदाहरण दोनों देशो के बीच कीवियों की धरती पर खेली गई टेस्ट सिरीज़ों के परिणाम हैं.

भारत ने न्यूज़ीलैंड में अब तक कुल आठ टेस्ट सिरीज़ खेली हैं जिनमें से भारत ने केवल दो सिरीज़ अपने नाम की है जबकि न्यूज़ीलैंड ने चार बार टेस्ट सिरीज़ फतह की. दो सिरीज़ बराबरी पर समाप्त हुई.

भारत ने साल 1967-68 में पहली बार नवाब मंसूर अली खान पटौदी की कप्तानी में न्यूज़ीलैंड का दौरा किया और चार टेस्ट मैचों की सिरीज़ को 3-1 से अपने नाम किया.

इसके बाद भारत को न्यूज़ीलैंड में टेस्ट सिरीज़ जीतने में 40 साल लग गए, जब साल 2008-09 में पिछली टेस्ट सिरीज़ में भारत ने न्यूज़ीलैंड को तीन मैचों की सिरीज़ में 1-0 से पराजित किया.

तब भी भारत के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ही थे, लेकिन तब भारतीय टीम में सलामी बल्लेबाज़ के रूप में गौतम गंभीर और वीरेंद्र सहवाग के रूप में कामयाब सलामी जोड़ी थी तो मध्यक्रम में  सचिन तेंदुलकर, वीवीएस लक्ष्मण और राहुल द्रविड जैसे करिश्माई बल्लेबाज़ थे. इसके अलावा ईशांत शर्मा उस दौरे पर अपने पूरे शवाब पर थे तो स्पिन में हरभजन सिंह का जलवा था.

क्या करें धोनी

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अब वर्तमान टीम की हालत ऐसी है कि उस टीम के केवल तीन खिलाड़ी कप्तान महेंद्र सिंह धोनी, तेज़ गेंदबाज़ ज़हीर ख़ान और ईशांत शर्मा ही टीम के अनुभवी सदस्य है जबकि बाक़ी खिलाड़ी पहली बार न्यूज़ीलैंड का दौरा कर रहे हैं.

आलम यह है कि ना तो ज़हीर में पहले जैसा दमख़म है और ना ही पहले जैसी तेज़ी. ईशांत शर्मा लगातार महंगे साबित हो रहे है और विकेट तो उन्हें मिल ही नहीं रहे हैं.

ऐसे में तेज़ गेंदबाज़ी के लिए कप्तान धोनी किसे टीम में जगह दें?

ईश्वर पांडेय ने न्यूज़ीलैंड इलेवन के ख़िलाफ़ दो दिवसीय अभ्यास मैच में तीन विकेट लेकर कुछ उम्मीदें जगाई हैं. अनुभव के नाम पर ईश्वर पांडेय के पास कोई अंतराष्ट्रीय मैच नहीं है लेकिन उन्होंने भारत के घरेलू सत्र में अपनी छाप ज़रूर छोड़ी है.

भुवनेश्वर कुमार को भविष्य के गेंदबाज़ के तौर पर देखा जा रहा था लेकिन विदेशी पिचों पर उनका प्रदर्शन अभी तक दमदार नहीं दिखा. स्पिन विभाग में रविंद्र जडेजा ने नया भरोसा जगाया है.

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