स्त्री अधिकारों, दलितों तथा आदिवासियों के हितों के लिए उन्होंने पूरी उम्र जूझने वाली महश्वेता देवी का जन्म 14 जनवरी, 1926 को हुआ था। भारत के ढाका में जन्मी इस लेखिका के पिता कवि और मां लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। इनकी स्कूली शिक्षा ढाका में ही हुई थी। हालांकि जब देश का बंटवारा हुआ तो इनका परिवार बाद में पश्चिम बंगाल में बस गया था।
यहां पर इन्होंने'विश्वभारती विश्वविद्यालय', से बी.ए. व'कलकत्ता विश्वविद्यालय' से अंग्रेज़ी से एम.ए. किया। इसके बाद शिक्षक और पत्रकार के रूप में वह सक्रिय रहीं। हालांकि बाद में उन्होंने 1984 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी व्याख्याता के रूप में नौकरी से सेवानिवृत्ति ले ली थी। इस दौरान इन्होंने पश्चिम बंगाल की औद्योगिक नीतियों के ख़िलाफ़ भी आंदोलन छेड़ा था।
काफी कम उम्र से लिखने वाली महाश्वेता देवी कई साहित्यिक पत्रिकाओं के लिए लघु कथाओं में योगदान दिया। 1956 में इनकी प्रथम रचाना 'झांसी की रानी' और 1957 में इनका प्रथम उपन्यास 'नाती' 1956 प्रकाशित हुआ था। 'अग्निगर्भ', 'जंगल के दावेदार' और '1084 की मां', 'माहेश्वर' और 'ग्राम बांग्ला' आदि इनकी काफी फेमस कृतियां हैं।
लेखिका की चर्चित किताबों में हज़ार चौरासी की मां, ब्रेस्ट स्टोरीज़, तीन कोरिर शाध शामिल हैं है। महाश्वेता देवी को कई बड़े पुरस्कार भी मिले हैं। 1977 'मेग्सेसे पुरस्कार', 1979 में उन्हें 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' व 1996 में 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' मिला। इसके साथ 1986 में 'पद्मश्री' तथा फिर 2006 में उन्हें 'पद्मविभूषण' सम्मान भी प्राप्त हुआ।
अपनी मां की तरह यह भी समाजसेवाम में निपुण रहीं। बिहार, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाके इनके कार्यक्षेत्र रहे। महाश्वेता देवी के जाने से लोगों को कुछ ऐसा लग रहा है कि जैसे समाज में बहुत कुछ थम सा गया है। उन्हें 22 मई को हार्टअटैक पड़ा था। जिसके बाद बेल व्यू नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया था। ऐसे में कल कोलकाता में उन्होंने अंतिम सांस ली।
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