जुलाई में दिल्ली एयरपोर्ट से लगभग एक करोड़ रुपए के 600 महंगे मोबाइल फ़ोन चोरी हो गए थे।

ये फ़ोन हांगकांग से भारत मंगाए गए थे। रिपोर्ट के अनुसार, छानबीन पर पता चला कि चोरी हुए करीब 200 मोबाइल फ़ोन कथित तौर पर फ़्लिपकॉर्ट डॉट कॉम पर देश के कई हिस्सों में बेच दिए गए थे।

इस मामले में छह लोगों को गिरफ़्तार किया गया है और जांच जारी है लेकिन उन लोगों की क्या ग़लती जिन्होंने ये फ़ोन कंपनी वेबसाइट पर खरीदे?

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कहीं ऑनलाइन खरीदा मोबाइल चोरी का तो नहीं?

ई-कॉमर्स की मदद से देश के एक कोने में बैठा विक्रेता दूसरे कोने में उपभोक्ता को सामान बेच पा रहा है। ऐसे वक्त जब बड़ी संख्या में घर के राशन से लेकर गाड़ियां तक ऑनलाइन खरीदी जा रही हैं, ये ताज़ा पुलिस जांच कई सवाल खड़े करती है।

बीबीसी को भेजे एक वक्तव्य में फ़्लिपकार्ट ने कहा, कंपनी के 40,000 से ज़्यादा विक्रेता कड़े दिशा-निर्देशों का सख़्ती से पालन करते हैं और दिशानिर्देशों की अवहेलना को बड़ी गंभीरता से लिया जाता है।

कंपनी का कहना है कि उसकी टीमें समय-समय पर विक्रेताओं की जांच करती रही हैं और नकली सामान बेचने वाले कई विक्रेताओं को ऐसा करने से रोका जा चुका है।

कंपनी ने कहा कि नकली, चोरी का सामान बेचने वालों या कानून का उल्लंघन करने वाले विक्रेताओं से कोई नरमी नहीं बरती जाएगी।

कंपनियों पर दबाव

साइबर मीडिया के समूह संपादक इब्राहिम अहमद बताते हैं, "ये सब नई कंपनियां पिछले तो-तीन सालों में उभरी हैं। इनके यहां प्रणालियों को मज़बूत करने में वक्त लगेगा। ई-कॉमर्स कंपनियों में होड़ लगी हुई है। कंपनियों की सफ़लता इस बात से है कि उनके कितने आपूर्तिकर्ताओं से टाई-अप हैं।"

कहीं ऑनलाइन खरीदा मोबाइल चोरी का तो नहीं?

उनके मुताबिक़, इन कंपनियों ने नियम तो बना रखे हैं, लेकिन ज़्यादातर कंपनियां इसका पालन नहीं करतीं।

वो कहते हैं, "बड़ी कंपनियां विदेशी निवेशकों के पैसों से चल रही हैं और उन पर अच्छे नतीजे दिखाने का बहुत दबाव रहता है।"

साइबर मामलों के जानकार पवन दुग्गल कहते हैं, “बहुत से मामलों में ऑनलाइन विक्रेता पूरा बिल नहीं देते या वादा तो करते हैं लेकिन बिल नहीं भेजते। कई ध्यान भी नहीं देते हैं। लेकिन उपभोक्ताओं को सतर्क रहने की ज़रूरत है।”

उधर, डीसीपी (इंदिरा गांधी हवाई अड्डा) दिनेश कुमार गुप्ता ने बताया कि उन्होंने फ्लिपकार्ट से जो जानकारियां मांगी हैं वो उन्हें दी जा रही हैं और कंपनी जांच में सहयोग कर रही है।

बड़ा बाज़ार

ऑडिट कंपनी प्राइसवॉटरहाउस कूपर्स के तकनीक और ई-कॉमर्स प्रमुख संदीप लड्डा के अनुसार, भारतीय ई-कॉमर्स बाज़ार एक लाख 25 हज़ार करोड़ का है और पिछले पांच सालों से इसमें 36 प्रतिशत कंपाउंडेड वार्षिक प्रगति दर की रफ़्तार से बढ़ोतरी हो रही है।

क्या कंपनियां सावधानियां बरत रही हैं? क्या उनके लिए ऐसा करना संभव भी है? उनका क्या अनुभव है?

कहीं ऑनलाइन खरीदा मोबाइल चोरी का तो नहीं?

संदीप लड्डा बताते हैं, “हर कंपनी तो नहीं लेकिन बड़ी कंपनियां सख्त जांच करती हैं। पीडब्ल्यूसी जैसी कंपनियां विक्रेताओं की जांच करने में ई-कॉमर्स कंपनियों की मदद करती हैं, लेकिन इस व्यवस्था को 100 प्रतिशत फुलप्रूफ़ बनाना संभव नहीं है।”

उधर फ़्लिपकार्ट के वक्तव्य के अनुसार, “विक्रेता के लिए हमारे पास तीन श्रेणी का रेटिंग सिस्टम है। विक्रेता की रेटिंग ग्राहक की रेटिंग, खरीदारी रद्द करने जैसी चीज़ों पर निर्भर रहती है।”

कंपनी का कहना है कि विक्रेताओं को सिर्फ़ असली वॉरंटी वाले मौलिक उत्पाद बेचने की इजाज़त होती है और जिन विक्रेताओं को दूसरी कंपनियां ब्लैकलिस्ट कर देती हैं, वो फ़्लिपकॉर्ट पर सामान नहीं बेच सकतीं।

क्या करें उपभोक्ता

-विक्रेता का रिव्यू देखें. पढ़ें लोग विक्रेता से कितने संतुष्ट हैं।

-उत्पाद की तस्वीर ध्यान से देखें।

-पता करें कि उत्पाद नया है या पुराना।

-उत्पाद के बारे में कितने विस्तार से जानकारी दी गई है।

-सुरक्षित वेबसाइट पर सामान खरीदें।

-क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल साइबर कैफ़े में न करें।

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