अखिलेश यादव के राजनीतिक जीवन का सबसे ख़राब दिन वह था जब तीन साल पहले उनकी पत्नी डिम्पल यादव को राज बब्बर ने फ़िरोज़ाबाद के उप चुनाव में हरा दिया था।

अखिलेश यादव कन्नौज और फ़िरोजाबाद दोनों जगहों से जीते थे लेकिन उन्होंने फिरोजाबाद की सीट से त्यागपत्र दे कर वहाँ से अपनी पत्नी को चुनाव मैदान में उतारा था।

इस बार के उत्तर प्रदेश चुनाव में उन्होंने कोई जोखिम नहीं उठाया है। वह अकेले इंसान हैं जिन्होंने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान करीब नौ हज़ार पांच सौ किलोमीटर का रास्ता तय किया है। इसमें से दो सौ किलोमीटर वह साइकिल पर घूमे हैं।

वह कोई बहुत अच्छे वक्ता नहीं हैं लेकिन उन्हें पता है कि माइक्रोफ़ोन का इस्तेमाल कैसे किया जाता है। बोलते समय उनकी आवाज़ कभी कभार ही ऊपर उठती है।

जब वह बीएसपी और कांग्रेस के खिलाफ कोई आरोप लगा रहे होते हैं तो ऐसा लगता है कि वह लगभग दबी ज़ुबान में उनके बारे में कोई मजेदार गप्प सुना रहे हों !

पढ़ाई-लिखाई

धौलपुर के सैनिक स्कूल से अपनी पढ़ाई की शुरुआत करने वाले अखिलेश ने मैसूर से इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करने के बाद सिडनी से पर्यावरण इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है।

अखिलेश अपने साथियों से धाराप्रभाव अंग्रेज़ी में बात करते हैं लेकिन सार्वजनिक मंच पर उन्हे यदाकदा ही अंग्रेज़ी में बाते करते सुना गया है। यहाँ तक कि अंग्रेज़ी टीवी चैनलों में जब एंकर अंग्रेज़ी में सवाल पूछते हैं तो अखिलेश उसका जवाब हमेशा हिंदी में देते हैं।

उनकी राजनीतिक परवरिश हमेशा गन्ने के समर्थन मूल्य और जाति समीकरणों पर बातचीत के बीच हुई है, लेकिन वह अपने आपको उस माहौल में ज़्यादा सहज पाते हैं जहाँ मानचेस्टर यूनाइटेड, आर्सेनल और लियोनेल मेसी और वेन रूनी की स्पीड की चर्चा हो रही हो।

साल 2000 में कन्नौज से उप चुनाव से संसद में पहुँचने वाले अखिलेश सही मायनों में पिछले वर्ष ही अपने असली रंग में आए हैं। उन्होंने अपने चाचा शिवपाल सिंह और वरिष्ठ पार्टी नेता आजम खाँ की इच्छा के ख़िलाफ़ बाहुबली डीपी यादव को टिकट देने से इंकार कर दिया। जब एक और वरिष्ठ नेता मोहन सिंह से इस पर कुछ सवाल उठाए तो उन्हे प्रवक्ता के पद से हटा दिया गया।

इससे पहले उन्होंने कल्याण सिंह के साथ पार्टी का गठजोड़ ख़त्म किया ताकि मुसलमान दोबारा पार्टी की तरफ़ आ सकें। अमर सिंह जब बहुत ज्यादा बोलने लगे तो उन्हें भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया।

अखिलेश मृदुभाषी हैं। वरिष्ठ नेताओं का हाथ जोड़ कर अभिवादन करते हैं और सबसे बड़ी बात कि किसी कार्यकर्ता का नाम नहीं भूलते और हमेशा उसके पहले नाम से पुकारते हैं।

छवि

समाजवादी पार्टी की छवि के ठीक उलट इस बार उन्होंने कई पेशेवर लोगों को पार्टी का टिकट दिया है। आईआईएम के पूर्व प्रोफेसर अभिषेक मिश्र लखनऊ उत्तर से उम्मीदवार बनाए गए हैं तो उत्तर प्रदेश रंजी टीम के पूर्व सदस्य ज्योति यादव को भी पार्टी का टिकट दिया गया है।

सफ़ेद बुर्राक कुर्ता पायजामा, काली जैकेट और पार्टी की ट्रेडमार्क लाल टोपी पहनने के शौकीन अखिलेश हमेशा अपने साथ आईपैड, ब्लैक बेरी और बोस के स्पीकर रखते हैं।

उम्मीद के खिलाफ़ उनके अनुगामियों में छुटभैये नेता और बंदूकधारी नहीं दिखाई देते। उनके करीबी लोगों में सुनील यादव हैं जिन्हें उनकी आँख और कान कहा जाता है। वह उन्नाव के जयनारायण डिग्री कॉलेज छात्र यूनियन के पूर्व अध्यक्ष हैं। राजीव राय पार्टी के सचिव हैं। उन्हें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर पार्टी का मत रखने की ज़िम्मेदारी दी गई है।

साथी-सहयोगी

एक और सचिव नवेद सिद्दीकी हैं जो पहले रेडियो मिर्ची में आरजे हुआ करते थे। उनके एक और साथी विजय चौहान हैं जो ऑस्ट्रेलिया में पढ़े हैं। उनकी मानेसर में बुलेट प्रूफ़ जैकेट बनाने की फ़ैक्ट्री है। उनके साथी उन्हें भैय्या कह कर पुकारते हैं। उन्हे खुश करने के लिए कभी कभी वह उन्हे एमपी साहब ओर युवराज भी कहते हैं।

उनकी पार्टी पर अक्सर जातिवादी होने का आरोप लगाया जाता है। इसके जवाब में वह कहते हैं, मुझे हाल ही में पता चला कि सैम पित्रोदा विश्वकर्मा हैं वह भी तब जब राहुल गाँधी ने अपने चुनाव भाषण में ज़ोर दे कर इसका ज़िक्र किया। उनका कहना था, ''राहुल बार बार यह कहना नहीं भूलते कि वह दलितों के घर खाना खाते रहे हैं। मेरा तो रसोइया ही दलित है.''

अपनी रैलियों के दौरान भी वह सुबह की सैर करना नहीं भूलते। खाली समय में वह अक्सर अपने साथियों के साथ फुटबॉल और क्रिकेट खेलते नजर आते हैं। जब उनका तफ़रीह का मन होता हैं तो दिल्ली में उन्हें इटालियन खाने का आनंद लेते देखा जा सकता है क्योंकि लखनऊ में अच्छा इटालियन खाना नहीं मिलता।

अखिलेश बुद्धिजीवी होने का आभास नहीं देते। विकास के बारे में उनकी सोच में भी कोई ताजगी नही है लेकिन उनके इरादे नेक हैं और फ़िलहाल उन्हें आगे ले जाने के लिए इतना काफ़ी है।

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