बिल कम करने के लिए मीटर रीडिंग से जुड़े कर्मचारी खुद दे रहे कस्टमर को ऑफर

दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट के स्िटग ऑपरेशन में सामने आया चौंकाने वाला सच

vinay.ksingh@inex.co.in

सरकार की प्राब्लम यह है कि जितना भुगतान किया जायेगा, उतनी ही बिजली उसे मिलेगी। इसका इंपैक्ट होगा कि पब्लिक को भी उतनी ही बिजली मिलेगी। प्रदेश में भी राउंड द क्लॉक पॉवर सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए सरकार लगातार जतन कर रही है। स्कीम लांच कर रही है ताकि फंसा हुआ पैसा निकल आए। अफसरों को टारगेट दे दिया गया है। प्रतिदिन घर-घर जाकर कर्मचारी बिजली बिल वसूली के लिए प्रेशर बना रहे हैं। एक तरफ यह जीतोड़ मेहनत है। दूसरी तरफ हैं सरकार के इस प्रयास को चूना लगाने के लिए तैयार बैठे विभाग से ही जुड़े लोग। सौ-दो सौ रुपये की काली कमाई के चक्कर में वे सरकार और विभाग को तो नुकसान पहुंचा ही रहे हैं कस्टमर को भी ऐसे अंधेरे रास्ते पर ढकेल दे रहे हैं जिसका खामियाजा उन्हें बड़ा बकायेदार बनकर चुकाना पड़ रहा है। सौ-दो सौ रुपए के लालच में मीटर रीडिंग कर्मचारी लोगों का मीटर सेट करने का ऑफर दे रहे हैं। बिजली कर्मचारी का दावा है कि एक बार मीटर सेट होने के बाद बिजली का बिल कम आएगा। दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने एक ऐसे ही बिजली कर्मचारी को कॉल किया तो पूरी पोल खुल गयी।

फोन पर दी जानकारी

पब्लिक से यह फीडबैक आने के बाद दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट रिपोर्टर ने इस नेक्सस का भंडाफोड़ करने का फैसला लिया। खुद कस्टमर बन गया और मीटर रीडिंग से जुड़े कर्मचारी को कॉल किया। आपभी जानिए कैसे किया गया सेटिंग का ऑफर

रिपोर्टर: हलो, बिजली विभाग से बोल रहे हैं?

मीटर रीडिंग कर्मचारी: जी हां, बोल रहे हैं।

रिपोर्टर: हमारे यहां बिजली का बिल बहुत ज्यादा आता है।

कर्मचारी: चेक करना पड़ेगा कि क्या कारण हो सकता है।

रिपोर्टर: कैसे चेक हो सकता है। कोई जुगाड़ है क्या?

कर्मचारी: उपाय है और जुगाड़ भी। इसके लिए पैसे खर्च करने पड़ेंगे।

रिपोर्टर: कैसे पता चलेगा कि कितना पैसा खर्च करना पड़ेगा?

कर्मचारी: मीटर की रीडिंग के लिए सेट करना है तो एक बार टोटल बिल का 20 फीसदी देना होगा। इसके बाद सौ रुपये महीना।

रिपोर्टर: मतलब नहीं समझा। 20 फीसदी और 100 रुपये का क्या लफड़ा है।

कर्मचारी: मीटर की रीडिंग को सेट करने के लिए अलग कर्मचारी जाएगा। 20 फीसदी एमाउंट सबमें बंटता है। बाद में प्रति माह रीडिंग अपडेट करने वाला बंदा सौ रुपये लेगा।

रिपोर्टर: हमारा घर सिविल लाइंस डिवीजन में पड़ता है। आपतो शायद इस एरिया को देखते नहीं।

कर्मचारी: आपको इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है। हम लोगों की हर डिवीजन में सेटिंग है। सब लड़के अपने हैं। आप बस रुपया बिल निकालने वाले लड़के को दे दीजिएगा।

मीटर खराब करने का दिया आइडिया

बातचीत के दौरान रिपोर्टर ने मीटर खराब होने का डर जाहिर किया। मीटर से छेड़छाड़ पर नुकसान की संभावना पर भी रिपोर्टर ने रीडिंग कर्मचारी से बात की

रिपोर्टर: इससे बाद में कोई लफड़ा हो गया तो?

कर्मचारी: टेंशन लेने की कोई बात ही नहीं है। रीडिंग अधिक हो जाएगी तो मीटर खराब घोषित कर देंगे। आप नया मीटर इश्यू करा लीजिएगा।

रिपोर्टर: खराब बताया गया मीटर चेक करा लिया गया तो क्या होगा? पेनाल्टी कौन भरेगा?

कर्मचारी: ऐसा कुछ नहीं है। कुछ पैसे खर्च करके रीडिंग प्लेट चेंज हो जाएगी।

बड़े पैमाने पर खेल

सिर्फ सौ रुपए खर्च कर कम बिल निकालने का लालच कंज्यूमर्स को महंगा पड़ सकता है। असल में इस खेल में छोटे लेवल के कर्मचारी इंवॉल्व होते हैं। वह कंज्यूमर को झांसा देकर उसकी रीडिंग कम करते हैं और फीडिंग कम युनिट की करते हैं। इससे बिल कम आता है। मीटर रीडर को अंदाजा होता है कि कब कंज्यूमर का बिल ऐसी स्थिति में पहुंच जायेगा जब उस पर मोटा जुर्माना लगाया जा सकता है? तो वे अचानक से नया मीटर रीडिंग इंचार्ज भेज देते हैं। नया मीटर इंचार्ज जब पूरा बिल निकालकर देता है तो कंज्यूमर के पैरों तले जमीन खिसक जाती है। कई बार विभाग के कर्मचारी टीम को सूचना देकर ऐसे कंज्यूमर्स के यहां चेकिंग करवा देते हैं। सौ रुपये के चक्कर में लाखों की बिल सामने होती है तो कस्टमर के पास एक बार फिर से सेटिंग के अलावा कोई आप्शन नहीं होता। एफआईआर से बचने के लिए अगल से बड़ा पेमेंट करना पड़ जाता है और पुराना बकाया भी गले पड़ जाता है। वैसे तो अफसर कहते हैं कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। लेकिन, यह तथ्य गले से नीचे नहीं उतरता क्योंकि यह खेल हर मोहल्ले में चल रहा है।

आपके द्वारा इस प्रकरण को संज्ञान में लाया गया हैं। इसकी मैं अपने स्तर से जांच करवाता हूं। मीटर रीडिंग का काम प्राइवेट एजेंसी के लोग देखते हैं। ऐसा काम करना संगीन अपराध है। जांच में जिस किसी का भी नाम सामने आयेगा उसके विरुद्ध कार्रवाई तय है। रीडिंग कर्मचारी की इस हेराफेरी का खामियाजा फाइनली कस्टमर को ही भुगतना पड़ता है। कस्टमर्स से आग्रह है कि वे खुद भी सावधानी बरतें।

ओपी यादव,

चीफ इंजीनियर, पॉवर कारपोरेशन, प्रयागराज