हमने आपको सिर्फ कंवेंशनल रोल्स में ही नहीं बल्कि कई नॉन-कंवेंशनल रोल्स में देखा है, जैसे फिल्म स्वदेश, चक दे इंडिया, पहेली, माई नेम इज खान में. तो अब नेक्स्ट क्या होगा?
देखिए फिल्म मेकिंग में यह नहीं कहा जा सकता कि अब नेक्स्ट क्या होगा. यह बात तीन फैक्टर्स पर डिपेंड करती है. एक तो फिल्ममेकर जो किसी स्पेशल सब्जेक्ट पर काम कर रहा हो. दूसरा ये कि उसने अपने कैरेक्टर को मुझे माइंड में रखकर लिखा हो और तीसरा ये कि मुझे वो सब्जेक्ट या कैरेक्टर पसंद आता है या नहीं. इसके अलावा यह मेरे मूड पर भी डिपेंड करता है. मैं यह सोचकर फिल्में नहीं करता कि मुझे एक पर्टिकुलर टाइप की फिल्म करनी है. अगर मेरा मूड होता है कि मुझे सीरियस फिल्म करनी है तो मैं वैसी करता हूं, अगर मेरा मूड है कि नहीं, अब मैं एक हैप्पी फिल्म करना चाहता हूं तो मैं हैप्पी फिल्म करूंगा. जैसे अब देवदास पूरी करने के बाद मुझे लगा कि नहीं अब मैं कुछ वक्त के लिए सीरियस मूवी नहीं करूंगा, तो बस मैंने फिर एक हैप्पी फिल्म सिलेक्ट कर ली.

आपके लिए फिल्म के डायरेक्टर से साथ ट्यूनिंग होना कितना इंपॉर्टेंट है?
बहुत ज्यादा, मेरे ख्याल से मेरे लिए यह बहुत इंपॉर्टेंट है कि मैं अपनी फिल्म के डायरेक्टर के साथ एक अच्छी मेंटैलिटी और सेंसिबिलिटी शेयर करूं. डायरेक्टर कम से कम ऐसा होना चाहिए कि शूट्स के बीच में मैं उसके साथ बैठकर बातें कर सकूं. एक फिल्म के फाइनलाइजेशन में करीब एक-डेढ़ साल का वक्त लग जाता है. ऐसे में अगर मैं उस डायरेक्टर को अच्छे से नहीं भी जानता हूं तो इस दौरान मैं उसे जानने की कोशिश करूंगा ताकि हम कंफर्टेबली एक फिल्म बना सकें.

आप एक लंबे वक्त से अपनी ऑटोबायोग्राफी लिख रहे हैं, आपके फैंस को यह कब पढऩे को मिलेगी?
हां, काफी लंबा वक्त हो गया है इसे. जब मैंने दस साल पूरे किए थे तब मैंने इसे लिखना शुरू किया था. तब मुझे लगता था कि मैंने इन दस सालों में बीस साल की जिंदगी पूरी कर ली है. फिर मेरा बेटी हुई और मुझे लगा कि अगर मैंने इस बुक में बेटे के बारे में लिखा और बेटी के बारे में नहीं लिखूंगा तो उसे बुरा लगेगा. फिर मेरी सर्जरी, फिर आईपीएल की टीम और इसी तरह से वक्त बीतता गया. हां, लेकिन अब मैं सोच रहा हूं कि जल्द ही इसे पूरा कर लूं.

क्या स्पेशल होगा इस ऑटोबायोग्राफी में?
लोगों ने मेरे बारे में बहुत कुछ लिखा है और पढ़ा है, पर अभी भी कोई नहीं जानता है कि मेरे दिल में क्या है. ऊपर से हमारी लाइफ बहुत ग्लैमरस दिखती है पर अंदर क्या है, हम लाइफ में क्या मिस करते हैं, इसका अंदाजा किसी को नहीं होता. इस बुक में सबको रियल शाहरुख मिलेगा. यह बुक स्पेशली मेरे बच्चों के लिए होगी क्योंकि काम की वजह से मैं उनके साथ वो टाइम नहीं स्पेंड कर पाया जो चाहता था. कम से कम इस बुक के जरिए मैं उनसे अपनी फीलिंग्स एक्सप्रेस कर पाऊंगा.

क्या आप इस बुक के बारे में कुछ ऐसा रिवील करना चाहेंगे जो बिल्कुल स्पेशल है?
हां, मैंने इस बुक में दो चैप्टर्स गुस्से में लिखे हैं. मुझे कई बार ऐसा लगा कि अगर कोई मेरे बारे में ऐसा लिख सकता है तो मैं क्यों नहीं. तो मैंने भी जगहों पर अपना गुस्सा जाहिर किया है जो मैं यूं ही सबके सामने नहीं कर सकता.

फिल्म मेकर्स लेटेस्ट टेक्नोलॉजी के जरिए ऑडियंस को इंफ्लुएंस करने की कोशिश करते हैं. इसके बारे में आप क्या कहेंगे?
देखिए फिल्म में दो चीजें इंपॉर्टेंट होती हैं एक कहानी और दूसरा उसका प्रेजेंटेशन. कहानी के बारे में हम यह नहीं कह सकते कि यह सबको पसंद आएगी या नहीं क्योंकि ये सिर्फ कुछ ही लोगों की सोच होती है और करोड़ों लोगों के सामने आती है. कुछ को कहानी पसंद आएगी तो कुछ को नहीं. लेकिन जो चीज हमारे कंट्रोल में है, वो टेक्नोलॉजी है. हम लेटेस्ट इंस्ट्रुमेंट्स और टेक्नोलॉजी के जरिए ऑडियंस को एंटरटेन करने की पूरी कोशिश करते हैं.

आप इतने लंबे वक्त से इंडस्ट्री में है, इतना रिकग्नाइज्ड काम किया है. उन सबमें आपको बेस्ट कौन सा लगता है?
मुझे लगता है कि मेरा बेस्ट आना अभी भी बाकी है, और जिस दिन वह हो जाएगा, तो शायह वह मेरा आखिरी काम भी होगा. मैं हमेशा चलता रहना चाहता हूं, अभी और 25 सालों तक काम करना चाहता हूं. और यह मैंने देव साहब (देव आनंद) से सीखा है. एक बार मैं उनसे मिला तो उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं फिल्म करना चाहता हूं. इससे पहले मैं कुछ कहता वो बोले ठीक है नहीं करना चाहते कोई बात नहीं और बोलते गए. मैंने सीखा कि मुझे रुकना नहीं है, बस चलते जाना है. मैं अभी भी अपने काम से सैटिस्फाइड नहीं हूं और मेरा बेस्ट अभी भी बाकी है...

Report by: Kratika Agarwal

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