नई दिल्ली (आईएएनएस)। अगर अरुण जेटली का परिचय यूं दिया जाए, एक वकील से राजनेता बने तो यह बिल्कुल वैसे ही होगा जैसे सुनील गावस्कर के लिए यह कहना क्रिकेटर से कमेंटेटर बने। शानदार रणनीतिकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में से एक, जेटली एक कुशल वकील से बहुत अधिक हैं और राजनीति में अपने कई समकालीनों से कहीं ऊपर। शनिवार को लंबी बीमारी के बाद उनका एम्स में निधन हो गया। एक धारदार कानूनी दिमाग और श्रेष्ठ राजनैतिक कौशल के साथ, जेटली ने अपने विरोधियों को बौद्धिक कौशल से परास्त कर डाला, फिर भी एक गरिमापूर्ण व श्रेष्ठता का भाव बनाए रखा, जिसने उन्हें उनका भी प्रशंसा पात्र बनाया जो कभी उनके निशाने पर रहे। वे एक पूर्ण राजनीतिज्ञ के रूप में खिल रहे थे। जेटली ने खुद को कानूनी हलकों में एक चमकदार सितारे के रूप में स्थापित किया था। देश के शीर्ष वकीलों में से एक बनने के बावजूद, राजनीति उनके स्वभाव में थी।

अरुण जेटली ने राजनेता के रूप में खेली लंबी पारी,यहां पढ़ें उनकी लाइफ जर्नी

DUSU अध्यक्ष के रूप में छोड़ी छाप

1974 में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) के अध्यक्ष के रूप में अपनी छाप छोड़ने के बाद राष्ट्रीय राजनीति में उनका आना तय था और आपातकाल विरोधी आंदोलन का हिस्सा बन गए। वह 70 का दशक था जब श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स (SRCC) जैसे प्रतिष्ठित संस्थान के किसी छात्र को स्टूडेंट यूनियन का प्रतिनिधित्व करते हुए देखना आश्चर्य की बात नहीं थी, इन दिनों के विपरीत जब कैंपस की राजनीति में गुंडों और ठगों का आधिपत्य हो गया है। राष्ट्रीय परिदृश्य पर उनके औपचारिक आगमन के द्वार 1990 के दशक के प्रारंभ में खुल गए, जब राष्ट्र सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन के शिखर पर था।

अरुण जेटली ने राजनेता के रूप में खेली लंबी पारी,यहां पढ़ें उनकी लाइफ जर्नी

विकास के एजेंडे को राजनीतिक विमर्श में शामिल कराया  

हिंदी पट्टी में मंडल की राजनीति चरम पर थी, अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस से उड़ी धूल एक गहरे काले बादल में बदल गई थी, जिससे देश की नींव हिलने का खतरा पैदा हो गया था, इस सबके बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और उनके वित्त मंत्री मनमोहन सिंह अर्थव्यवस्था की नई स्क्रिप्ट लिख रहे थे। अटल बिहारी वाजपेयी और एलके आडवाणी की छाया तले जेटली ने धीरे-धीरे बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के बीच अपनी जगह बनाई। 2003 में बीजेपी ने मध्य प्रदेश से कांग्रेस को उखाड़ फेंका, इसके बाद जेटली की एक चुनाव प्रबंधक के रूप में क्षमताओं को जमकर सराहा गया। उन्होंने 'बिजली, सड़क, पानी जैसे बुनियादी और लंबे समय से अनदेखे मुद्दों पर अभियान चलाया और विकास के एजेंडे को राजनीतिक विमर्श में आगे लाकर खड़ा कर दिया।

अरुण जेटली ने राजनेता के रूप में खेली लंबी पारी,यहां पढ़ें उनकी लाइफ जर्नी

सुप्रीम कोर्ट के गलियारों से शास्त्री भवन तक का सफर

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के गलियारों से शास्त्री भवन तक बदलाव का सफर सुगमता से तय किया। पहले वाजपेयी सरकार में कनिष्ठ मंत्री के रूप में सूचना और प्रसारण मंत्रालय और विनिवेश का कार्यभार संभाला और फिर जुलाई 2000 में कैबिनेट मंत्री के रूप में कानून, न्याय और कंपनी मामलों व जहाजरानी मंत्रालय का संचालन किया। हालांकि, जेटली कैबिनेट की तुलना में संसद में अधिक फले-फूले। 2004 के बाद जब वाजपेयी सरकार की अप्रत्याशित हार के बाद जेटली उच्च सदन में विपक्ष की आवाज बनकर उभरे। जून 2009 में वे राज्यसभा में विपक्ष के नेता बने और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के खिलाफ कई ताबड़तोड़ हमलों की अगुवाई की। उनके तीखे भाषणों की गूंज राज्य सभा की ऊंची छतों पर गूंज उठी, क्योंकि उन्होंने सरकार को भ्रष्टाचार, घोटालों और जिसे वह पॉलिसि पैरालिसिस कहकर पुकारते थे पर जमकर घेरा।

अरुण जेटली ने राजनेता के रूप में खेली लंबी पारी,यहां पढ़ें उनकी लाइफ जर्नी

संसद में असरदार आवाज

संसद में उनकी कोई साधारण आवाज नहीं थी। जब वह बोलने के लिए उठे, तो दिन की सरकार ने ध्यान से सुना। वास्तव में, यह उनका व्यक्तित्व ही था कि यूपीए सरकार अक्सर डरती थी कि इसके द्वारा लाए गए कानून जेटली की जांच से तो नहीं गुजरेंगे। यह विडंबना है कि सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला सांसद 2014 में लोगों के परीक्षण में विफल रहा। जेटली ने अमृतसर से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह से हार गए। यह हार उनके लिए एक व्यक्तिगत झटका थी क्योंकि मोदी लहर में भी भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया। इसके हार के बावजूद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में उनके कद पर कोई असर नहीं हुआ। जेटली को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे भरोसेमंद विश्वासपात्र के रूप में देखा गया जिन्होंने अपने लंबे समय के मित्र से नई दिल्ली के पॉवर इकोसिस्टम को समझा। जेटली को दो प्रमुख मंत्रालयों का प्रभार दिया गया था -वित्त एवं रक्षा।

अरुण जेटली ने राजनेता के रूप में खेली लंबी पारी,यहां पढ़ें उनकी लाइफ जर्नी

लगातार खराब होते स्वास्थ्य के बीच भी महत्वपूर्ण बने रहे

जब वह नॉर्थ और साउथ ब्लॉक के बीच चहलकदमी कर रहे थे, उन्हें एक और झटका लगा और इस बार यह व्यक्तिगत अधिक था। वह स्वास्थ्य समस्याओं से घिर गए। लगातार अस्पताल के चक्कर और बाद में लंबे समय तक चले इलाज के बावजूद जेटली जेटली मोदी 1.0 में सबसे महत्वपूर्ण मंत्री बने रहे, जब तक कि कई बीमारियों के कारण उनकी स्थिति और अधिक खराब नहीं हुई। अपनी खराब सेहत के बावजूद, वह सोशल मीडिया पर अपनी टिप्पणियों के माध्यम से मोदी सरकार का बचाव करते रहे। जेटली 2019 के चुनाव अभियान से शारीरिक रूप से अनुपस्थित रहे लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से कांग्रेस पर हमला जारी रखा। अपने एक हालिया पोस्ट में, उन्होंने जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 के उन्मूलन पर कांग्रेस की नीति की जमकर आलोचना की थी।

मैंने एक मूल्यवान दोस्त खो दिया है, पीएम मोदी ने जेटली के निधन पर जताया शोक

जेटली ने विरोधियों का भी सम्मान अर्जित किया

अरुण जेटली ने अपने विरोधियों का भी सम्मान अर्जित किया। उनके दक्षिणपंथी झुकाव ने उन्हें अन्य राजनीतिक विचारधारा के नेताओं से दोस्ती करने से नहीं रोका। उनके परिवार में राजनीतिक विचारधाराओं के बीच की सीमाएं धुंधली थीं। दिल्ली का एक लड़का (वह सिविल लाइन्स के सेंट जेवियर्स स्कूल में पढ़े), वह जम्मू के दामाद भी थे, जिसकी शादी कट्टर कांग्रेसी और क्षेत्रीय दिग्गज गिरधारी लाल डोगरा की बेटी संगीता से हुई। मोदी ने 2015 में उनके श्वसुर के शताब्दी समारोह में भाग लिया, जिसमें कांग्रेस नेताओं के साथ अन्य लोग भी उपस्थित थे। जेटली का प्रभाव राजनीतिक क्षेत्र से कहीं अधिक था। वह राजनेता बनने के बाद भी कानूनी हलकों में हावी रहे और एक प्रमुख क्रिकेट प्रशासक थे, जिनका दिल्ली और जिला क्रिकेट संघ (DDCA) पर पूर्ण नियंत्रण था। वह दिल्ली के बार में एक प्रमुख प्रभावशाली व्यक्ति थे, जिन्होंने राजनीति में एक जटिल भूमिका निभाई। उन्होंने देश के जटिल क्रिकेट मामलों में प्रभाव अर्जित किया। क्रिकेट और कानूनी क्षेत्र के अलावा, जेटली मीडिया के प्रिय थे।

National News inextlive from India News Desk