जान जाने तक लटका रहे फांसी पर

अभियोजन ने मुबारक हुसैन के खिलाफ हत्या, अपहरण, यातना और घरों से लूटपाट करने के आरोप लगाए थे. न्यायमूर्ति एम इनायतुर रहीम के नेतृत्व वाले अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण-दो के न्यायाधीशों के तीन सदस्यीय पैनल ने फैसला सुनाते हुए कहा कि उसे जान जाने तक फांसी पर लटकाया जाए. न्यायाधिकरण ने कहा कि मुबारक हुसैन के खिलाफ लगाए गए पांच आरोपों में से उसे दो में दोषी पाया गया. 64 वर्षीय हुसैन को 22 अगस्त 1971 को मध्य ब्रह्मनबारिया जिले में 33 आम नागरिकों की हत्या के मामले में मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी. हुसैन तत्कालीन मिलिशिया बल की एक स्थानीय ईकाई का कमांडर था.

पार्टी ने किया था निष्कासित  

मुबारक हुसैन 1971 में मिलिशिया गुट रजाकार की स्थानीय इकाई का कमांडर था. यह मिलीशिया ऐसे बांग्लाभाषी देशद्रोहियों का समूह था जिसका गठन पाकिस्तानियों ने अपने सहायक सैनिकों के तौर पर किया था. हुसैन कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी से जुड़ा था जो बांग्लादेश की आजादी के खिलाफ था. पाकिस्तान की हार के बाद वह अवामी लीग में शामिल होने में सफल रहा, जिसने मुक्ति संग्राम की अगुवाई की थी. अभी तक युद्ध अपराधों में सजा पाने वाला वह एकलौता अवामी नेता है. उसे दो साल पहले मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था.

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