PATNA: भिखारी शब्द सुनते ही हमारे सामने एक छवि उभरती है। आधुनिक युग में ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो मेहनत के बल पर कुछ ऐसा कर जाते हैं जिससे लोग सोचने पर मजबूर हो जाते हैं। उन्होंने भोजपुरी संस्कृति को एक नई पहचान दी। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर जमकर प्रहार किया। बिदेशिया, गबर-घिचोर, बेटी-बियोग, बेटी बेंचवा आदि नाटकों में गजब की सामाजिक ¨चतन दिखती है। वे इन नाटकों से मनोरंजन के साथ सामाजिक कुरितियों को खत्म करने का प्रयास करते थे। जिनकी समाज में आज भी जरूरत है। भिखारी ने बालविवाह, काम के लिए पलायन, नशाखोरी जैसी सामाजिक कुरितियों पर उस समय प्रहार किया, जब कोई बोलने को तैयार नहीं था।

आज मनेगी क्ख्9वीं जयंती

आज भिखारी ठाकुर की क्ख्9वीं जयंती है। बिहार के अलग-अलग क्षेत्रों में उनकी जयंती मनाई जाएगी। छपरा में इप्टा का ख्फ्वां सम्मेलन सह भिखरी ठाकुर लोकोत्सव मनाया जाएगा। इप्टा के सचिव अमित रंजन ने कहा कि लोकोत्सव की शुरुआत खनन और भूतत्व मंत्री मुनेश्वर चौधरी करेंगे। इप्टा के कलाकार विदेसिया का मंचन करेंगे। तो वहीं वरीष्ठ कलाकारों की प्रस्तुति होगी। बौद्धिक सत्र में नित्यानंद की काव्य बुद्धभूमि का लोकापर्ण किया जाएगा। इप्टा के कार्यकारी अध्यक्ष सीताराम सिंह और अध्यक्ष डॉ। वीरेंद्र नारायण यादव, राष्ट्रीय इप्टा के सचिव फिरोज अशरफ खां आदि मौजूद रहेंगे।

दयनीय थी आर्थिक स्थिति

छपरा के कुतुबपुर दियरा में क्8 दिसंबर क्887 को एक निम्न वर्गीय परिवार में भिखारी ठाकुर का जन्म हुआ। भिखारी ठाकुर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनका संपूर्ण जीवन संघर्ष में बीता। जब उनका जन्म हुआ उस समय पढ़ने और लड़ने को हक सभी को नहीं था। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों को नजदीक से समझा। उसके बाद अपने नाटकों के माध्यम से उस पर प्रहार किया। उनका बचपन गायों की चरवाही में बीता। माता-पिता उनसे पुश्तैनी धंधा नाई का काम करवाना चाहते थे। वे कमाने के लिए असम गए। वहां जाने के लिए भी उनके पैसे नहीं थे। गांव के बाबू राम एकबाल नारायण से ख्0 रुपए कर्ज लेकर भिखारी असम गए। वहां इनके रिश्तेदार समेत अन्य ग्रामीण रहते थे। वे वहां से मनीआर्डर भेजकर कर्ज चुकाए।

------

पंडित से सीखा चिट्ठी लिखना-पढ़ना असम में एक पंडित थे। वे रात में कथा कहते थे। जिसे भिखारी ठाकुर रुचि लेकर सुनते थे। उसी पंडित ने चिट्ठी लिखने और पढ़ने के लिए सिखाया। वे रामायण के भी कुछ-कुछ बातें जानने लगे। असम से घर लौट गए और कुछ दिन बाद कोलकाता चले गए। वहां भी पुश्तैनी कार्य के बाद फिर गांव लौटे।

--------

रामलीला का पड़ा प्रभाव

भिखारी के पड़ोसी गांव महाजी में रामलीला मंडली आई थी। रात में जब रामलीला होता था तो गांव के लोगों के साथ भिखारी भी जाते थे। उन पर रामलीला का गहरा प्रभाव पड़ा। वे तुकबंदी करने लगे। रामलीला मंडली के जाने के बाद गांव में रामलीला करने लगे। जिसमें नाच भी होने लगा। भिखारी इसमें प्रमुख थे। वे शादी-विवाह में भी नाच करने लगे। इसके बाद अपना काम छूट गया।

उनकी प्रमुख कृतियां एक नजर में

उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर नाटकों की रचना की। समाज की समस्याओं पर अपनी प्रस्तुतियों से प्रहार किया। प्रमुख नाटकों में विदेसिया, बेटी बेचवा, गबर घिचोड़, बहरा-बहार, भाई विरोध, गंगा स्नान, विधवा विलाप, पुत्र वधु, ननद भौजाई, राधे श्याम बहार, पिया निसइल आदि है। जब भिखारी ठाकुर मंच पर आते थे तो लोग सिक्के फेंक कर उनका स्वागत करते थे। क्0 जुलाई क्97क् को भिखारी ठाकुर हमलोगों के बीच से शारीरिक रूप से चले गए।