PATNA : सूबे के ब्8.फ् प्रतिशत बच्चे अपनी उम्र के हिसाब से ग्रोथ नहीं कर रहे हैं। यही कारण है कि बिहार में हर दूसरा बच्चा नाटेपन का शिकार है। कारण है कुपोषण। ये चौंकानेवाला खुलासा नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे का है। सर्वेक्षण के मुताबिक विश्व में भ् साल तक हर चार बच्चों से एक बच्चा नाटा है जबकि बिहार में हर दो बच्चों में एक नाटा है। ऐसे में समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले दिनों में लंबाई एक बड़ी चुनौती होगी।

एक नजर आंकड़ों पर

- भारत उन देशों में है जहां नाटापन (फ्0.0-फ्9.9 प्रतिशत) काफी है।

- इस मामले में दक्षिण एशिया में श्रीलंका और बांग्लादेश भी भारत से बेहतर।

- विश्व का हर पांचवा और भारत का तीसरा बच्चा कुपोषित है

- म् से ख्फ् माह के केवल फ्0.7 प्रतिशत बच्चे ही ठोस आहार पाते हैं

- लंबे समय से कुपोषित बच्चे उन बच्चों के मुकाबले ख्0 फीसदी कम साक्षर हैं जो संतुलित आहार ले पाते हैं

- लैनसेट इंटरनेशनल ख्0क्फ् के अनुसार विश्व में बच्चों की ब्भ् प्रतिशत मौत के लिए कहीं न कहीं कुपोषण जिम्मेदार।

- मां के गर्भ से ही परेशानी

सर्वेक्षण के मुताबिक गर्भ में ही बच्चे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं। नतीजा उनकी लम्बाई कम होने का खतरा बढ़ जाता है। ये एक बड़ा चैलेंज है। कुपोषण मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं। स्टंटेड और वेस्टेड। उम्र के हिसाब से जिन बच्चों की लंबाई नहीं बढ़ती उन्हें स्टंटेड या नाटापन कहते है। वहीं वेस्टेड में उन बच्चों को रखते हैं जिनका वजन उनकी लंबाई के अनुपात में कम होता हैं। हाल ही में जारी मैटरेनल एंड चाइल्ड न्यूट्रिशिन नामक रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया में नाटापन बड़ी चुनौती है क्योंकि दुनिया के 0 से भ् आयुवर्ग के ब्0 प्रतिशत नाटे बच्चे यहीं रहते हैं।

- कमजोर होती है मानसिक शक्ति

नाटेपन के चलते बच्चों की मानसिक शक्ति कमजोर हो जाती है। जिसका असर पढ़ाई पर भी पड़ता है। नाटे इंसान की उत्पादकता भी कम होती है और आय पर भी उसका असर देखा जा सकता है। कुपोषण के कारण मानव उत्पादकता क्0-क्भ् प्रतिशत तक कम हो जाती है। कुपोषण के कारण बड़ी तादाद में बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं। बड़े होने पर वे अकुशल मजदूरों की लम्बी कतार में जुड़ जाते हैं।

ऐसे होगा समस्या का समाधान

- कुपोषण रोकने के लिए प्रयास हो

- जागरुकताकार्यक्रम चलाया जाए

- राज्य स्तर परपोषक तत्वों, दवाओं के स्टॉक और टीकों का प्रबंध हो

= कुपोषण व दवाओं के प्रबंधन को लेकर जवाबदेही तय हो

- क्षेत्रीय स्तर पर एफडीए से जुड़े प्रयोगशाला की स्थापना की जाए

- गर्भवर्ती माताओं के पोषण में सुधार को लेकर योजना चले

= म् माह तक केवल स्तनपान और म् माह बाद पौष्टिक खाद्य पदार्थ दिया जाए

- घरेलू खाद्य सुरक्षा पोषक तत्व से भरपूर अनाज (बाजरा, च्वार, रागी) को वितरित किया जाए

- खाने में आयोडीन युक्त नमक शामिल किया जाए