- 6 साल गुजरने के बाद भी नहीं हो पाया लोक कथाओं का प्रकाशन

PATNA: हजारों साल पुरानी मूर्त और अमूर्त इतिहास को खुद में समेटे पटना की विरासतों को जानने, समझने और दूसरों को भी इसकी गौरव गाथा से परिचित करवाने के उद्देश्य से स्थापित बिहार विरासत समिति अपने उद्देश्य को ही भूल गई है। स्थापना काल में विरासत संरक्षण को लेकर कई बातें अधिकारियों द्वारा कही गई थी। लेकिन 11 साल गुजरने के बाद भी सब बातें कागजों में ही दब कर रह गई है। 2015 में बिहार के तत्कालीन कला संस्कृति मंत्री शिवचन्द्र राम ने बिहार के विभिन्न लोक कथाओं और भाषाओं के प्रकाशन और डिजिटलाइजेशन की बात कही थी। इसके लिए टेंडर भी हुआ था। लेकिन 6 साल के बाद प्रकाशन कार्य नहीं हो पाया है। आज दैनिक जागरण आई नेक्स्ट में पढि़ए विस्तृत रिपोर्ट

कहानियां संग्रह कर होना था प्रकाशन

बिहार सरकार के कला संस्कृति एवं युवा विभाग की ओर से बिहार विरासत समिति को बिहार की लोकभाषाओं मैथिली, अंगिका, वज्जिका, मगही, भोजपुरी, सूर्यापुरी, संथाली, थारू और उर्दू की कहानियां संग्रह कर दस्तावेज तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी। इसके लिए विरासत समिति की ओर से टेंडर भी निकाला गया। विहार के विभिन्न क्षेत्रों के लोग कहानियां संकलित करने लगे। लेकिन बिहार विरासत समिति की उदासीन रवैये के कारण प्रकाशन कार्य नहीं हो सका।

म्यूजियम से जोड़ने की थी तैयारी

हमारी दादी और नानी की लोक कथाओं को विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित कर डिजिटाजेशन कर वेब दुनिया के अलावा पटना म्यूजियम, बिहार म्यूजियम के साथ-साथ अन्य जगहों पर उपलब्ध कराने की बात कही गई थी। ताकि लोक कथाएं देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों को आसानी उपलब्ध हो सके। लेकिन सरकार के बदलते ही पूरी योजना कागजों में ही दफन हो गई।

रिसर्च स्कॉलर को होगा फायदा

पटना के इतिहासकारों ने बताया कि क्षेत्रीय भाषा में रिसर्च करने वाले रिसर्च स्कॉलर को कहानी प्रकाशित होने पर सबसे अधिक लाभ होगा। इतिहासकारों की माने तो विरासत समिति की ओर से कई ऐसी कहानियों का संकलन किया गया है जो इतिहास से संबंधित है। इन कहानियों से रिसर्च स्कॉलर को हेल्प मिल सकता है।

निकाली गई थी पद यात्रा

पटना समेत पूरे बिहार की विरासत को विश्व पटल पर लाने के लिए पद यात्रा निकाली गई थी। यात्रा के दौरान कला संस्कृति विभाग के अधिकारियों ने कहा था कि पटना की 2600 साल पुरानी और बिहार की विशाल विरासत को संभालने के लिए राज्य के लोगों में इनके प्रति जागरूकता फैलाने की जरूरत है। इसके लिए विभाग सुदूर गांवों में भी इस तरह की यात्राएं करवाएगी ताकि लोगों को अपनी विरासतों की जानकारी मिले सके। लेकिन सुदूर गांव तो दूर की बात है पटना में भी लोगों को अवेयर नहीं किया जा सका है।

प्रकाशन कार्य अभी पाइपलाइन में है। प्रूफ रीडिंग हो गया है। जल्द ही प्रकाशन किया जाएगा। जिसकी सूचना आपलोगों को मिल जाएगी।

- विजय कुमार चौधरी, कार्यपालक निदेशक, बिहार विरासत समिति, पटना