- औरंगाबाद में हुए नक्सली टाइम बम विस्फोट शहीद इंद्रजीत सिंह का पार्थिव शरीर पहुंचा उनके घर

- फैमिली वालों ने कहा, अगर समय रहते कुछ किया गया होता तो बच सकती थी जान

PATNA: सुबह को इंतजार था कि कब सीआरपीएफ के डिप्टी कमांडेंट इंद्रजीत सिंह का पार्थिव शरीर खाजपुरा के एबी एनक्लेव में पहुंचेगा। औरंगाबाद में हुए नक्सली टाइम बम विस्फोट ने उनकी जान ले ली। जो आंखें पति के सही सलामत घर लौटने की दुआ में रहती थी, जिसके लिए कितना कठिन था ये रात भर का इंतजार। क्भ्फ् बटालियन के इंद्रजीत सिंह का पार्थिव शरीर जब लाया गया, तो पत्नी दुर्गावती सिंह सहित कई महिलाओं के रोने की आवाज लाचारी का वह समुद्र बना रहे थे, जिसके खारे आंसू में पूरी व्यवस्था डूब रही थी। लोकतंत्र का महापर्व शान से मनाया जा सके, इसी के लिए जान की बाजी लगा गए इंद्रजीत तिरंगे में लिपटे आए। पत्नी बार-बार कोफीन पर पति के लिखे नाम को छू रही थी और मुंह से निकल रहा थानाम मिटाय के चल दिहलें हमरे राजा। बेटा अंकित भी पास में सिसकता रहा। बेटे को फोन पर खुद इंद्रजीत सिंह ने बताया था कि वे घायल हो गए हैं। देर तक कोफीन पर सिर टिकाए रही उनकी पत्नी।

सरकार को विल पावर कहां है?

इंद्रजीत सिंह अपने छोटे बेटे अंकित को एक दिन पहले ही बिहटा ले गए थे इंजीनियरिंग का एग्जाम दिलाने। बड़ा बेटा अभिजीत विलासपुर में बीटीके फाइनल इयर का स्टूडेंट है। अंकित ने कहा कि सरकार के पास नक्सलियों से लड़ने का विल पावर नहीं है। यह होता तो ऐसा हादसा न होता। पापा की जान बच सकती थी। अंकित पापा को लाने एयरपोर्ट भी गया था। उसके पास मीडिया वालों के ढेर सारे सवालों के जवाब नहीं हैं। दुख के वक्त समय से कैसे लड़ना है, यह उसने पिता से इसी उम्र में सीख लिया है।

बेकार हैं ऊपर बैठे लोग

इंद्रजीत सिंह के साले भी भीतर ही भीतर गुस्से में हैं। पर, कर क्या सकते हैं। वे कहते हैं डॉक्टर जल्दी मिल गए होते, तो जान बचायी जा सकती थी।

जब गिरते-पड़ते पहुंची बहन

इंद्रजीत सिंह की बहन प्रभा देवी जब रोहतास से पहुंची, तो ऑटो से उतरते ही एबी एनक्लेव के गेट पर रोते-रोते गिर गईं। किसी तरह उन्हें फ्लैट पर ले जाया गया।

सिसकती रहीं मां और सास

मां और सास दोनों सिसकती रहीं। सब चुप कराते रहे, लेकिन सिसकियां उस व्यवस्था पर तमाचा लगाती रही, जिसमें हम आप जी रहे हैं। नक्सली हमले कर रहे हैं और जवान शहीद हो रहे हैं।

लेकिन ठीक हो जाएंगे

डिप्टी कमांडर शैलेश कुमार को फोन पर इंद्रजीत सिंह ने कहा था कि वे घायल हो गए हैं, पर ठीक हो जाएंगे। दुबारा साथ काम करेंगे हम। इससे उनके जज्बे को महसूस कर सकते हैं हम-आप।

जवानों ने दी सलामी

पटना एयरपोर्ट पर हेलीकॉप्टर से उतारने के बाद पार्थिव शरीर राजेन्द्रनगर ले जाया गया, जहां सीआरपीएफ के जवानों ने उन्हें सलामी दी।

जब एलबम मांगा हमने

इंद्रजीत ंिसंह अब नहीं हैं। उनकी तमाम फोटोज उनके घर के एलबम में हैं। हमने उनके परिजनों से संपर्क किया। उनकी पत्नी की अनुमति से हमें एलबम इस शर्त के साथ मिला कि इसमें से एक भी फोटो न निकाले जाएं। कुछ ही देर बाद वो चिल्लाने लगी। मेरा एलबम मुझे दे दो। हमें तुरंत एलबम लौटाना पड़ा। कुछ ही तस्वीर हम आप पाठकों के लिए बना पाए।

कलेजा मजबूत कर ले

सारी महिलाएं उनकी पत्नी को कहती रहीं-कलेजा मजबूत कर ले। यह कहते हुए महिलाएं खुद सिसक भी रही थीं। कोई कैसे कलेजा मजबूत कर ले। कलेजा तो फटा जा रहा था। कलेजा तो कट रहा था। आंसू पहाड़ से पूरे वेग से उतर रहा था। किसी की आस्था टूट गई। सिंदूर छीन लिया गया।

इंद्रजीत ही नहीं, सिंदूर पर भी हमला

नक्सलियों ने फिर से सिंदूर पर हमला किया। जब पार्थिव शरीर को उनके गांव महनावां ले जाया जाने लगा, तो पत्नी की चीख गूंजने लगी। बार-बार यही कहती रही ले गया ले गयागाड़ी खुलने से पहले एक व्यक्ति ने सिंदूर की वह डिबिया लाकर दी, जो इंद्रजीत सिंह के शहीद होने के साथ उनकी पत्नी के लिए किसी काम की नहीं रह गई थी। सिंदूर था तो घर में नहीं रहकर भी पति घर में थे। पापा घर में थे। खून के लाल खेल ने लाल ंिसंदूर पर भी हमला बोल दिया था। सिंदूर का कीमत कितनी बड़ी है ये पता नहीं कब जानेंगे नक्सली! कब जानेगी व्यवस्था!