- औरंगाबाद में डिप्रेशन की डयूटी ने ले ली चार जवानों की जान

- प्रदेश की हर फोर्स में डिप्रेशन से परेशान जवान

- कहीं भी हो सकती है औरंगाबाद जैसी घटना

PATNA : औरंगाबाद की घटना और सोशल मीडिया पर एक फौजी के बयान ने साबित कर दिया है कि जवान डिप्रेशन में डयूटी कर रहे हैं। परिवार से दूरी और छुट्टी की मजबूरी कहीं न कहीं से उन्हें अवसाद में ला रही है। औरंगाबाद में चार सीआईएसएफ जवानों की हत्या के बाद जब आई नेक्स्ट ने पड़ताल की तो पता चला अ‌र्द्ध सैनिक बलों के साथ नागरिक पुलिस के जवान भी डिप्रेशन के शिकार हैं। सुरक्षा के लिए यह बड़ी चुनौती है। ऐसे में जल्द ही इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो कभी भी औरंगाबाद जैसी घटना की पुनरावृत्ति हो सकती है। जवानों से बातचीत और पड़ताल में सामने आए सच के माध्यम से आई नेक्स्ट आपको बताने जा रहा है कि जवान किस तरह से डयूटी कर रहे हैं।

- अधिकार के बाद भी नहीं मिलती छुट्टी

जवान पारा मिलिट्री का हो या नागरिक पुलिस का सभी को छुट्टी का अधिकार है। छुट्टी का कारण जवानों के घर में शादी या किसी के बीमार होने की होती है। इसके बाद भी अफसर छुट्टी देने में आनाकानी करते हैं। और कभी छुट्टी मिलती भी है तो एक हफ्ते के आवेदन पर महज दो दिनों का अवकाश मंजूर होता है जो सफर में ही खत्म हो जाता है। ऐसे में जवान कुंठित हो जाते हैं। उनका काम में मन नहीं लगता है और परिणाम बुरा होता है। पटना में ऐसी शिकायत कई बार आई है जब पुलिस वालों पर पब्लिक के साथ अभद्र व्यवहार करने का आरोप लगा है। इसके लिए जवानों का डिप्रेशन में होना काफी हद तक जिम्मेदार है।

- आज भी अंग्रेजी हुकूमत

सूत्रों की मानें तो विभाग में आज भी अधिकारियों की हुकूमत अंगे्रजों जैसी है। वह जवानों की सुविधाओं पर ध्यान नहीं देते हैं। सिर्फ काम लेना जानते हैं। उनके अधिकारों का दमन किया जाता है। कभी कभी तो छुट्टी के आवेदन पर अफसर इतना बिगड़ जाते हैं कि जवान सदमे से डिप्रेशन में चला जाता है। वह हमेशा डरा रहता है और अधिकार के बाद भी मुंह नहीं खोल पाता है। फिर धीरे-धीरे नौकरी से उबने लगता है।

- क्0 प्रतिशत को ही छुट्टी

बिहार पुलिस एसोसिएशन से जुड़े लोगों का कहना है कि क्0 प्रतिशत जवानों को ही छुट्टी मिल पाती है। जबकि कोई भी जवान या पदाधिकारी बिना जरूरत के अवकाश नहीं मांगता है। पहले तो उसे छुट्टी के लिए अफसरों का चक्कर लगाना पड़ता है फिर भी अधिक संख्या में जवानों की छुट्टी मंजूर नहीं होती है। मंजूर होती भी है तो एक दो दिन की जो नाकाफी होती है।

- हर माह आधा दर्जन शिकायत

एसोसिएशन के आंकड़ों बताते हैं कि यहां हर माह आधा दर्जन से अधिक ऐसी शिकायतें आती हैं जिसमें अफसरों द्वारा छुट्टी के लिए प्रताडि़त करने का आरोप लगता है। यहां तक कि एसोसिएशन अवकाश के अधिकार पर विचार करने के लिए शासन से लेकर डीजीपी तक कई बार पत्र लिख चुका है लेकिन ध्यान नहीं दिया गया। कई बार जिलों के एसपी से बात की जाती है। इसके बाद कुछ पुलिस कर्मियों को छुट्टी मिल पाती है।

- दर्द से भर आई आंख

आई नेक्स्ट ने अ‌र्द्ध सैनिक बल से लेकर नागरिक पुलिस के जवानों से बात की। औरंगाबाद घटना की चर्चा करते हुए जवानों के दिल से ऐसा दर्द बाहर आया जिसे सुनकर किसी की भी आंख भर सकती है। अनुशासन वाले विभाग में जवान मुंह नहीं खोल सकते है इसलिए हम बिना उनका नाम प्रकाशित किए आपके सामने उनका दर्द ला रहे हैं।

मैं मां-बाप का इकलौता संतान हूं और एसएसबी का जवान हूं। घर से भ्00 किमी दूर तैनात हूं। हमेशा घर में कोई न कोई समस्या आती है और मैं चाहकर भी घर नहीं जा पाता हूं। एक माह पूर्व बूढे पिता को अटैक हुआ और मां परेशान हो गई। छुट्टी के लिए आवेदन दिया तो अफसर को मेरी बात झूठ लगी और छुट्टी नहीं दी। तब तड़प कर रह गया। चाहकर भी कुछ नहीं कर सका। रिश्तेदारों के सहारे पिता का इलाज हुआ। यही सोचता हूं दिन रात डयूटी करने के बाद भी विभाग मेरा नहीं है।

- एसएसबी जवान, पटना

दो माह से घर नहीं जा सका हूं। सुबह से लेकर शाम तक बच्चों की याद में खोया रहता हूं। परिवार की जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहा हूं। ऐसे में नौकरी से इच्छा खत्म होती जा रही है। कई बार आवेदन दिया लेकिन जवानों की कमी बताकर छुट्टी रद करी दी जाती है। काम इतना लिया जा रहा है कि तबियत खराब हो जाती है। एक माह में एक बार भी घर चला जाउं तो दिल बहल जाए लेकिन यहां तो छुट्टी का अधिकार देकर भी मांगने की इजाजत नहीं दी गई है।

- सीआरपीएफ जवान, पटना

पुलिस विभाग में डयूटी बहुत कड़ी है। हर समय अफसरों का चाबुक चलता है। न खाने का टाइम है और न ही सोने का। ऐसे में तबियत खराब होती जा रही है। परिवार में कोई भी कितना परेशान क्यों न हो छुट्टी नहीं दी जाती है। छठ के बाद दो दिन की छुट्टी मिली थी उसके बाद से आवेदन पर कोई विचार ही नहीं किया जाता है। पटना एसएसपी के पास पेश हुआ लेकिन छ़ुट्टी नहीं मिली। पुलिस एसोसिएशन तक दौड़ लगा चुका हूं।

- नागरिक पुलिस का जवान, पटना

मेरी बेटी की हालत खराब थी अधिकारियों के पास जाकर रोया लेकिन छुट्टी नहीं दी गई। हालत ऐसी हो गई कि बेटी की जान पर बन आई। जब अफसरों ने बात नहीं सुनी तो भागकर घर चला गया। इसके बाद अफसरों को रहम नहीं आई। मजबूरी पर ध्यान दिए बिना मुझे सस्पेंड कर दिया गया। दिन रात सुरक्षा के लिए मरने के बाद भी ऐसी हालत है कि किसी की तकलीफ में इलाज के लिए नहीं जा सकता हूं। अब तो बहाली के लिए अफसरों का चक्कर काट रहा हूं।

- दारोगा, खगडि़या

एक्टिव हो जाता है टेंशन का हारमोन

जब आई नेक्स्ट ने मनोचिकित्सकों से बात की तो और बड़ा खुलासा हुआ। उनके मुताबिक मनुष्य के शरीर में कुछ ऐसे हारमोन होते हैं जो संतुलित हो तो खुशी देते हैं और इन बैलेंस होने पर नकारात्मक सोच लाते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि मनुष्य के शरीर में एड्रिनालीन और क्वार्टीसाल नाम के हारमोन होते हैं। जब आदमी एक ही तरह का काम करता है और परिवार से दूर रहता है। स्थान और काम में परिवर्तन नहीं होता है तो ये हारमोन इन बैलेंस होने लगते हैं। ऐसे में मनुष्य डिप्रेशन में चला जाता है।

-हारमोन इन बैलेंस से जवानों मे बदलाव

- नौकरी से इच्छा खत्म हो जाती है

- अफसरों के प्रति नकारात्मक सोच होती है

- व्यवहार में काफी परिवर्तन हो जाता है।

- न चाहते हुए भी लोगों से अभद्र व्यवहार हो जाता है

बदलनी होगी दिनचर्या

- जवानों की छुट्टी में नहीं करनी होगी कोताही ।

- योग और अन्य एक्टिविटी पर बनाना होगा प्लान।

- जवानों की आवश्यकता पर देना होगा ध्यान।

- जवानों को पीपुल फ्रेंडली बनाना होगा।

- जवानों की समय समय पर करानी होगी काउंसलिंग।

- मूड डिस आर्डर वाले जवानों पर रखनी होगी विशेष नजर।

- क्या कहता है आंकड़ा

- म्0 प्रतिशत जवान डिप्रेशन के शिकार।

- 99 प्रतिशत जवान छुट्टी को लेकर नहीं होते संतुष्ट।

- भ्0 प्रतिशत जवानों को ही जरुरत पर मिल पाती है छुट्टी ।

- क्भ् दिनों के आवेदन पर मिलती है दो दिन की छुट्टी।

- म् से अधिक शिकायत हर माह आती है पुलिस एसोसिएशन के पास।

- फ्0 प्रतिशत जवान डिप्रेशन के कारण डयूटी से रहते हैं खिन्न।

- क्या है अवकाश का अधिकार

- क्म् दिन आकस्मिक अवकाश।

- ख्0 दिन क्षतिपूर्ति अवकाश ।

- फ्0 दिन अर्निंग लीव।

- ख् से फ् दिन महिलाओं के लिए विशेष अवकाश।

- म् माह महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश।

- ख्0 दिन मेडिकल अवकाश ।

- म् माह से एक साल तक एजुकेशनल अवकाश

- विशेष परिस्थिति में बिना वेतन के अवकाश

पुलिस कर्मियों को छुट्टी का अधिकार दिया गया है लेकिन अफसर तानाशाही करते हैं। इससे जवानों में डिप्रेशन हो रहा है। शासन से लेकर डीजीपी तक को पत्र लिखा गया लेकिन अफसर पुलिस मुख्यालय के आदेशों का पालन नहीं कर रहे हैं। छुट्टी को लेकर अफसरों की धारणा नहीं बदली तो पुलिसिंग पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा।

- मृत्युंज्य कुमार सिंह, प्रदेश अध्यक्ष

बिहार पुलिस एसोसिएशन

काम के बोझ से इंसान में हारमोनल इन बैलेंस होता है जो डिप्रेशन के साथ बड़ी घटनाएं करा सकता है। इसके लिए काउंसलिंग के साथ साथ मूड चेज करने पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। पुलिस विभाग में तो काम का बोझ और जिम्मेदारी होती है इसलिए हारमोन को संतुलित रखने के लिए योग और अन्य एक्टिविटी पर ध्यान देना होगा।

- नुसरत बानो, एक्सपर्ट मनोरोग चिकित्सा