पटना (ब्यूरो)। देश का आम बजट एक फरवरी को पेश किया जाएगा। इससे पहले हर आम और खास बजट 2022 को लेकर उम्मीदें लगाए है। खास तौर पर सैलरीड क्लास और मिडिल क्लास के लिए बजट को अपेक्षा कहीं अधिक है क्योंकि उसके उपर टैक्स का बोझ सबसे ज्यादा है। इसके अलावा यदि सेगमेंट वाइज न देखते हुए कोरोना काल में समस्या से घिरे दौर में इस बजट को देखें तो सरकार से लेकर आम आदमी की आर्थिक स्थिति जटिल हो चुकी है। कुल मिलाकर, इकोनोमी को रिवाइव करने वाला बजट चाहिए। वास्तव में बजट में क्या रहेगा, यह तो बजट के दिन ही पता चलेगा। लेकिन इससे पहले दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने विभिन्न लोगों के बीच जाकर उनकी अपेक्षाओं को जानने का प्रयास किया।


राहत पैकेज की उम्मीद
लास्ट फाइनेंसियल ईयर में बजट में टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया गया था। इस बार उम्मीद है कि सरकार कोई बड़ी घोषणा कर सकती है। इसके अलावा हेल्थ, इंफ्रास्ट्रक्चर, रियल एस्टेट और एमएसएमई सेक्टर समेत अन्य क्षेत्रों के लिए कोरोना के दौर में बड़ी घोषणाएं और राहत पैकेज का एलान की उम्मीद की जा रही है। खास तौर पर मेडिक्लेम में मिलने वाली डिडक्शन का दायरा बढ़ाना जाना चाहिए। एमएसएमई के लिए भी बेहतर योजनाओं की घोषणा हो सकती है।

सैलरीड क्लास को सपोर्ट
बजट की उम्मीद में सैलरीड क्लास को स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा में इजाफा की उम्मीद है। सैलरीड क्लास के लिए इस समय धारा 16 के तहत स्टैंडर्ड डिडक्शन की रकम 50,000 रुपये निर्धारित है। लंबे समय से इसको बढ़ाकर एक लाख रुपये करने की मांग की जा रही है। ऐसा यदि होता है तो इसका सीधा-सीधा टैक्स लाभ मिलेगा।

इंश्योरेंस पर जीएसटी से हो राहत
कोरोना काल में इंश्योरेंस सेक्टर की डिमांड बहुत बढ़ गई है। खास तौर पर मेडिक्लेम की भी। लेकिन अभी समस्या यह दिख रही है कि इंश्योरेंस के प्रीमियम पर लगने वाले जीएसटी से आम लोग बोझिल हैं। टैक्स जानकार मानते हैं कि पर जीएसटी घटाए जाने से इस दायरे में आने वाले लोगों की संख्या को बढ़ाने में सहायक हो सकता है। इसे लेकर पिछले कई बजट में टैक्स पेयर के लिए कोई नई घोषणा नहीं की गई है। इस बार के बजट में इंश्योरेंस/मेडिक्लेम प्रीमियम पर लगने वाले जीएसटी कम करने की उम्मीद जतायी जा रही है।

ग्रोथ को मेनटेन करने के लिए
कोरोना काल में से सबसे अधिक प्रभावित एमएसएमई सेक्टर रहा है। उत्पादन की लागत बढ़ती जा रही है और डिमांड घट गया है। बाजार में पैसे की किल्लत भी है। इसे लेकर यह मांग हो रही है कि जीएसटी की दरों को इस सेक्टर के लिए उपयुक्त बनाया जाए और इस सेक्टर के लिए टैक्स की दरों को कम किया जाए। सीए अभिजीत बैद ने बताया कि मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूत करने और उसे स्लो डाउन से उबारने के लिए समुचित प्रयास की जरूरत है। इंडस्ट्रियलाइजेशन के माध्यम से ही जॉब सेक्टर को भी रिवाइव किया जा सकता है। इससे ग्रोथ को मेनटेन करने की ठोस पहल होगी।

पीपीएफ से भी उम्मीद
हाल ही में चार्टड अकाउंटेंट की संस्था आईसीएआई ने अपने सुझाव में पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (पीपीएफ) में इनवेस्टमेंट की अधिकत्तम सीमा को मौजूदा 1.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 3 लाख रुपये करने का सुझाव दिया है। आईसीएआई के मुताबिक पीपीएफ में निवेश की सीमा को बढ़ाने से जीडीपी में घरेलू सेविंग की हिस्सेदारी को बढ़ाने में मदद मिलेगी।