PATNA : अगर आप विद्यार्थी बनना चाहते हैं तो सुख का त्याग करना होगा और सुख चाहते हैं तो विद्यार्थी होने की पहली शर्त ही टूट जाती है। इसी सुख का ध्यान रखकर कुछ प्राइवेट स्कूल शिक्षा देने के बदले सुविधाएं देने लगे और पैसा एंठने लगे। कुछ इसी तरह की बातें सामने आई दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की परिचर्चा में। बेलगाम फीस अभियान के तहत हुई इस परिचर्चा में पैरेंट्स और स्कूल के प्रतिनिधियों के साथ शिक्षाविद् और शिक्षा के जुड़े लोग शामिल हुए। कार्यक्रम को मॉडरेट दैनिक जागरण आई नेक्स्ट पटना के एडिटोरियल हेड अश्विनी पांडेय ने किया।

परिचर्चा का अमृत

पैरेंट्स के लिए

- बिना विरोध किए बात नहीं बनेगी, गलत का विरोध करें

- स्कूल चुनते समय उसकी शिक्षा का स्तर देखें, सुविधा देखेंगे तो अधिक पैसा लगेगा

- अपनी क्षमता के अनुरूप ही स्कूल चुने, पढ़ाई किसी भी स्कूल में हो सकती है।

- स्कूल अगर गलत कर रहा तो कानून का सहारा भी लें, डरने से स्थिति खराब होगी।

- जो स्कूल आपके फ् किमी के दायरे में है वही स्कूल बच्चों के लिए बेहतर है। सरकार की नीति भी यही है।

स्कूल के लिए

- स्कूल को अपनी विश्वस्नीयता बनाए रखनी चाहिए।

- कोई भी फीस लेने से पहले पैरेंट्स से संवाद स्थापित करना चाहिए।

- ट्रांसपैरेंसी के लिए सीबीएसई के नॉ‌र्म्स फॉलो करने चाहिए।

- शिक्षा का व्यवसायिक दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए।

- सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी समझकर फीस बढ़ोतरी के समय पैरेंट्स की कैपेसिटी का ध्यान रखना चाहिए।

विद्या बेचने की वस्तु नहीं यह समझा होगा। पहले शिक्षा के साथ अहंकार तोड़ने के लिए राजा और प्रजा के बच्चे एकसाथ पढ़ते और भिक्षा मांगकर खाते थे। अब केवल सुविधाओं पर जोर दिया जाता है, जिससे पूरा बाजार तैयार हो गया है। हमें शिक्षा पर जोर देने वाले स्कूलों का चुनाव करना चाहिए।

- डॉ। संजय कुमार, डायरेक्टर, अंकुर

पैरेंट्स और स्कूल के बीच कन्फ्यूजन है। क्लालिटी पर स्कूलों को ध्यान देना चाहिए और उस क्वालिटी का वाजिब चार्ज लिया जाना चाहिए। कई बार जो स्कूल बच्चों से फीस लेते हैं तो उस सर्विस के बारे में पैरेंट्स को बताना भी चाहिए। मैं 1200 रुपए फीस लेता हूं जो काफी कम है।

-अविनाश चंद्र दुबे, कॉर्डिनेटर, क्राइस्ट चर्च स्कूल

पैरेंट्स और स्कूल के बीच कन्फ्यूजन है। क्लालिटी पर स्कूलों को ध्यान देना चाहिए और उस क्वालिटी का वाजिब चार्ज लिया जाना चाहिए। कई बार जो स्कूल बच्चों से फीस लेते हैं तो उस सर्विस के बारे में पैरेंट्स को बताना भी चाहिए। मैं 1200 रुपए फीस लेता हूं जो काफी कम है।

-अविनाश चंद्र दुबे, कॉर्डिनेटर, क्राइस्ट चर्च स्कूल

हम अपने लिए बेहतर स्कूल कैसे खोजे। स्कूल के टीचर कई बार पढ़ाने में भी गलती करते हैं लेकिन हम उन्हें नहीं बता सकते कि आप गलत कर रहे हैं। फीस बढ़ाने से पहले वे पूछते भी नहीं।

- अंजली, पैरेंट

सरकारी स्कूल के टीचर भी काफी एजुकेटेड हैं। पैरेंट्स से आग्रह करूंगा की प्राइवेट स्कूल की अंधी दौड़ में न जाकर एकबार सरकारी स्कूल को भी मौका दें। अब पहले वाली स्थिति नहीं रही।

- शारदा चरण झा, टीचर, सीनियर सेकेंड्री स्कूल, खगौल

हमें स्कूल के फीस स्ट्रक्चर का पता ही नहीं चलता है। शिक्षा से अधिक फोकस वे फीस वसूलने पर रखते हैं। इसपर रोक लगना चाहिए। किताबों पर कमिशन लेना कहां तक उचित है।

- दिव्या रॉय, पैरेंट

सरकार अपने स्कूलों में कुछ सुविधाएं बढ़ा कर पैरेंट्स को ऑप्शन दे सकती है। सरकार को प्राइवेट स्कूल को भी सहयोग करना चाहिए, ताकि फीस कम हो। जैसे स्कूल व्यवसाय नहीं है तो बिजली कमर्शियल न लिया जाए।

- मुकेश कुमार, डायरेक्टर, आईकॉम प?िलक स्कूल

प्राइवेट स्कूल के खर्चे काफी हैं, अभिभावकों को चाहिए कि अगर स्कूल नाजायज चार्ज कर रहा तो उनके पास से बच्चे को निकाल लें। शहर में हर तरह के स्कूल हैं।

-भूषण शर्मा, प्रदेश अध्यक्ष, भारतीय स्वतंत्र शिक्षण संघ

पैरैंट्स काफी कंफ्यूज हैं कि उन्हें बच्चों को बनाना क्या है। वे डिसाइड नहीं कर पाते कि उनके लिए कौन सा स्कूल ठीक रहेगा। वह अपने बच्चों को ऐसे स्कूल में भेज रहे हैं जहां का सिस्टम उनके समझ से बाहर है। ऐसे स्कूल में शिक्षा से अधिक सुविधाएं मिलती है। यह तो फिजूलखर्ची है।

- नीतिन रंजन, सीईओ, मातरम नेटवर्क

स्कूलों ने खुद को बिजनस की तरह बना लिया है, जो नए तरीके निकाल कर वसूली करते हैं। अपर क्लास के लोग तो चाहते ही हैं कि स्कूल ज्यादा फीस ले और ज्यादा सुख-सुविधा दें। मिडिल क्लास के लोग भी अधिक खर्चीले स्कूल के चक्कर में अपना पैसे बर्बाद करते हैं।

- उत्पल दत्त, वाइस प्रेसिडेंट, बिहार सोशल इंटरप्रेन्योर्स एसोसिएशन

स्कूल में पढ़ाई का मापदंड निर्धारित होना चाहिए। शुल्क के अलावा भी कई एक्टिविटी होती है जिसके लिए चार्ज लिया जाना चाहिए।

- गौरी शंकर, असिस्टेंट टीचर, सीनियर सेकेंड्री स्कूल, मैनपुरा