पटना (ब्यूरो) । क्या मानवीय रूप से अत्यधिक संवेदनशील होना इनोवेशन और इसके बाद एक तकनीकी रूप से एक अत्यधिक महत्वपूर्ण प्रोडक्ट को विकसित मददगार हो सकता है। ऐसा ही एक खास उपलब्धि समेटे हुए हैं लेवलीन डीसा। वर्ष 2013 में आईआईटी पटना में पढ़ाई के दौरान इनके साथ एक दोस्त थे, जिनका एक हाथ कटा हुआ था। काम करने में उन्हें परेशानी होती थी। लेवलीन इससे प्रभावित थे और जो आर्टिफिशियल लिंब उनका दोस्त यूज कर रहा था, उसकी लिमिट और यूटिलिटी को उन्होंने समझा। इसके बाद इन्होंने आर्टिफिशियल लिंब बनाने के लिए अपना मिशन तय कर लिया। फरवरी, 2021 में इसे लॉन्च किया गया। इसका नाम ग्रिपी है।
सात साल में किया डेवलप
लगभग सात साल की कड़ी मेहनत के बाद इन्होंने इसे डेवलप करने का सपना पूरा कर लिया है। अब तैयारी है देश भर में मौजूद इसके जरूरतमंदों के बीच इसे पहुंचना का। इस सफलता के लिए इन्हें देश विदेश से काफी प्रसंशा मिली है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के साथ इन्होंने इस प्रोडक्ट के इनोवेशन जर्नी को शेयर किया।

ऐसे शुरू हुई प्रोडक्ट बनाने की जर्नी
लेवलीन डीसा बताते हैं कि इस प्रोडक्ट को तैयार करने के लिए इन्होंने आईआईटी पटना में एमटेक की थीसिस में इस विषय को रखा। इसके डिजाइन और फंक्शन को लेकर पहले से ही प्रयास चल रहा था। वर्ष 2016 में आईआईटी पटना के इनक्यूबेशन सेंटर में इसके प्रोडक्ट को बनाने का प्रपोजल रखा गया। इसके बाद भारत सरकार के अधीन एआईटी यानि एकेडमी इंडस्ट्री ट्रेनिंग में भी इनका प्रपोजल सेलेक्ट किया गया। रोबो बायोनिक्स नाम से इसका स्टार्ट अप शुरू किया गया। एआईटी के तहत छह माह बेंगलुरू और 15 दिन स्वीट्जरलैंड में ट्रेनिंग कराई गई। इस प्रोडक्ट या डिवाइस को बनाने के लिए खर्च आईआईटी से फंड होने लगा।

पेटेंट भी लिया
इस प्रोडक्ट को बनाने के लिए तमाम काम के साथ इसके पेटेंट पर भी काम किया गया। शुरू में यह आईआईटी पटना के नाम से था, लेकिन आईआईटी पटना ने पेटेंट लेवलीन और उनकी टीम को ट्रांसफर कर दिया। लेवलीन ने बताया कि इसका मकसद था इस प्रोडक्ट के डेवलपमेंट पर काम जारी रहे। लगभग पांच साल तक की कड़ी मेहनत के बाद यह प्रोडक्ट पूरी तरह से तैयार हुआ। फरवरी, 2021 में इसे लॉन्च किया गया। इसका नाम ग्रिपी है। इसे भारत सरकार से मान्यता प्राप्त एनएबीएल लैब में टेस्टिंग और सर्टिफिकेशन किया गया।

किनको होगा लाभ
इस प्रोडक्ट या डिवाइस को उन लोगों के लिए डिजाइन किया गया है जिनकी रिस्ट से एलबो तक हाथ कटा हुआ है। ग्रिपी को लगाने से यह आम लोगों के हाथ की तुलना में 50 प्रतिशत तक काम कर पाने में सक्षम है।

सेंस ऑफ टच तकनीक पर करता है काम
यह बेहद खास तकनीक से काम करता है। ग्रिपी के को-फाउंडर लेवलीन का कहना है कि उनकी टीम में उनके साथ चार फुल टाइम को- फाउंडर और आठ एडवाइजर काम कर रहे हैं। यह डिवाइस 'सेंस ऑफ टचÓ की तकनीक पर काम करता है। यह रोबोट की तकनीक नहीं है। क्योंकि इससे भार को उठाना और उसे एक जगह से दूसरे जगह रखा जाता है। लेकिन यह कुछ बारीक काम भी करता है। जैसे सब्जी काटना, अंडा या कोई नाजुक चीज पकडऩा। सेंस ऑफ टच की मदद से यह आर्टिफिशियल लिंब बहुत बारीकी से चीजों को पकड़ता है।

बेहद सस्ता है
आम तौर पर इस प्रकार के आर्टिफिशियल लिंब या डिवाइस विदेशों से मंगाए जाते हैं। जिसकी बाजार में कीमत 10 लाख से 24 लाख तक है। लेकिन आईआईटी के इनक्यूबेशन सेंटर में स्टार्ट अप के तहत तैयार इस डिवाइस की कीमत लगभग 2.5 लाख है। मकसद है जरूरतमंदों को कम कीमत पर बेहतर प्रोडक्ट देना।

इन कार्य को करेगा ग्रिपी
- सामान को पकडऩा
- उठाना
- घुमाना आदि
- जैसे पानी बोतल पकडऩा, अखबार पकडऩा, टूथपेस्ट दबाना, चाय पीना, कप रखना आदि।