पटना (ब्यूरो)। दुल्हिन बाजार प्रखंड अंतर्गत ग्राम धाना के राधे कृष्ण ठाकुरबाड़ी प्रांगण में स्थित श्रीनिम्बार्क कृष्ण माधवानंद संस्कृत महाविद्यालय एंव श्रीनिम्बार्क कृष्ण संस्कृत उच्च विद्यालय की स्थापना 1901 में की गई थी। बताया गया कि वहीं राधे कृष्ण ठाकुरबाड़ी की स्थापना लगभग पांच सौ वर्ष पहले की गई थी। महाविद्यालय कामेश्वर ङ्क्षसह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय से संबंधित हैं। एंव उच्च विद्यालय का संबंध बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड से है। दोनों ही संस्थानों का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है। लगभग 1984 तक संस्कृत में शिक्षा प्राप्त करने का यह दोनों प्रमुख केंद्र थे।

1920 से 1970 तक पढ़ाई
बिखरे दस्तावेजों को देखने से पता चलता है कि 1920 से 1970 तक संस्कृत अध्ययन के लिए यहां देश के कोने-कोने से लोग आते थे। परिसर में छात्र-छात्राओं के लिए आजादी के वर्ष काल से ही अलग-अलग छात्रावास की व्यवस्था थी, लेकिन आज सिर्फ यहां खंडहर ही दिखता है। संस्थान का जितना बड़ा नाम था, उतना ही भव्य कलाकृतियों से उभारी गई सुंदर इमारत भी, जिसका आज भग्नावशेष दिखाई पड़ती है। करीब पांच एकड़ में फैले इसके परिसर में राधे-कृष्ण का सुंदर मंदिर है।

जमीन पर अबैध कब्जा
इसमें करोड़ों रुपये की राधे-कृष्ण की मूर्ति भी थी, जो हाल के वर्षों में चोरी चल गई। इस संस्थान के रख रखाव के लिए पूर्व में राजा महाराजाओं के द्वारा 75 एकड़ जमीन दी गई थी। जिसमें 69 एकड़ जमीन खपुरी मौजा में हैं व छह एकड़ धाना में हैं। लोगों ने बताया कि सभी जमीनों पर दबंग किसानों के द्वारा दशक पूर्व अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया है। इस जमीन को मुक्त कराने के लिए संस्थान की बनी कमेटी ने प्रशासन से लिखित शिकायत भी की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी।

वर्षों से जमे हैं प्रोफेसर और स्टाफ
दो साल पूर्व यूजीसी से लगभग एक करोड़ की राशि से महिला छात्रावास व चाहरदिवारी का निर्माण व मरम्मत कार्य करवाया गया है। अन्य महाविद्यालय की तरह यूजीसी से प्रतिवर्ष इस संस्थान को भी राशि आती है। लाखों के लागत से कम्प्यूटर भवन व पुस्तकालय की देखभाल की वाउचर बनती है। लेकिन दोनों भवन परिसर में नहीं हैं। कालेज सरकार के नियंत्रण में है, परंतु उच्च विद्यालय कमेटी से संचालित की जाती है। कमेटी 11 सदस्यों द्वारा संचालित की जाती है, लेकिन इसमें स्थानीय या अनुमंडल क्षेत्र से भी कोई नहीं हैं। जिसका विरोध हमेशा किया जाता है। यहां पदस्थापित प्रोफेसर व कर्मी वर्षों से जमे हुए हैं।