अब वो दाग नहीं दिखते हैं

शहर के नामी गल्र्स कॉलेज से एक मैथ से, दूसरी बायो और तीसरी आट्र्स से इंटरमीडिएट कर रही हैं। तीनों ऐसी लड़कियां हैं जिनके चेहरे पर कभी बदनाम गलियों के दाग थे, पर अब वो दाग नहीं दिखते हैं। ये तीनों लड़कियां पीडब्लूसी में आयोजित प्रोग्राम 'ऐज इफ वुमेन मैटर : होप्स एंड चैलेंजेज अहेड' में अमेरिका से आयी ग्लोरिया स्टेन को सुनने आयी थीं। इन लोगों ने अपनी बात भी इनसे शेयर की और बताया कि लड़कियों के अधिकार और उससे जुड़े कानून काफी मजबूत हैं। इन्हें सुनकर काफी हौसला मिला। आई नेक्स्ट से तीनों लड़कियों ने अपनी कहानी शेयर की।

मां के पास आते थे लोग अच्छा नहीं लगता था

फारबिसगंज के भागदोलिया की रहने वाली रश्मि ने बताया कि उसकी मां के पास काफी लोग आते थे। जब उन लोगों के आने का मतलब समझने लगी, तो काफी बुरा लगा। आसपास के लोग हमसे बात नहीं करते थे। स्कूल की लड़कियां देखकर हंसती थीं। दो बहनों में बड़ी हूं, मुझे काफी सहना पड़ा था। मैं एक रात वहां से भाग निकली। फिर मुझे एनजीओ वाले ने रेणु गांव स्थित कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में पढ़ाया और अब मैं पटना में रहकर पढ़ाई कर रही हूं। आपके सामने हूं। छोटी बहन क्लास नाइंथ में पढ़ती है। उसे भी वहां से निकाल लाऊंगी। जाने में डर नहीं लगता है। पहले लगता था। अब उन लोगों को मेरा चेहरा देखकर डर लगेगा। मैं डॉक्टर बनूंगी और ऐसे एरिया की लड़कियों के लिए एक मिसाल बनूंगी।

मां के साथ बहन भी उतर गयी दलदल

चंद मिनट सैकड़ों सवाल का जवाब देने वाली फारबिसगंज की शगुफ्ता आज भी एक सवाल के जवाब पर चुप हो जाती है। पहले सोचती है फिर धीरे-धीरे बोलती है। तीन बहन एक भाई थी। सभी उस दलदल में आज भी फंसे हैं। मैं निकल आयी। मुझे वो पसंद नहीं था। वहां की हालत काफी खराब है। रोज चिल्लाना, रोना और न जाने क्याक्या। आप सुन नहीं पाएंगे और मैं बोल नहीं पाऊंगी।

हर सफेद चेहरे से कोर्ट में उतारूंगी नकाब

काल कोठरियों में दम तोड़ती सिसकियों की आवाज उन्हीं की बेटी सीमा बनने जा रही है। सीमा वही लड़की है जो नेपाल के दूबी एरिया के रेड लाइट में फंसी हुई थी। वो बाहर निकली अपने आप को पहचाना और एडवोकेट बनने की तैयारी में जुटी हुई है। इस दलदल से निकालने के लिए इसकी बड़ी बहन पहले से ही 'अपने आप वीमेन वल्र्ड वाइडÓ एनजीओ से जुड़ी है, इसलिए सीमा भी उनका दामन थामते हुए बाहर निकल आयी।

गुम हुई लड़कियों का ठिकाना रेड लाइट

रेड लाइट पर काम करने वाली संस्था और उससे जुड़े लोग बताते हैं कि पहले जहां फैमिली का अपना-अपना कस्टमर होता था। वहीं अब ऐसा नहीं होता है। हर तीन में से एक लड़की इससे निकलना चाहती है। इसलिए इस बाजार मैं रौनक बनाए रखने के लिए बाहर से लड़कियों को सप्लाई किया जाता है। ये वो लड़कियां हैं जिसकी खबर आए दिन अखबार में गुम होने की छपी रहती है। इन लड़कियों की हालत इन जगहों पर काफी बुरी होती है।

सीमांचल में वीमेन ट्रैफिकिंग

लड़कियों ने बताया कि इन एरियाज में आज भी वीमेन ट्रैफिकिंग के जरिए लड़कियों की खरीदारी होती रहती है। अररिया रेणु ग्राम स्थित कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय से आज भी लड़कियां गायब हो रही हैं और उसका कुछ पता नहीं चल पा रहा है।

हर किसी को आना होगा सामने

वीमेन ट्रैफिकिंग रोकने के लिए अमेरिका से आयी ग्लोरिया स्टेन तथा वीमेन वल्र्ड वाइड की संस्थापक और अध्यक्ष रुचिरा गुप्ता ने बताया कि बिहार में वीमेन ट्रैफिकिंग रोकने के लिए अभी ग्राउंड लेवल पर काफी प्रयास किया जा रहा है। हर दिन लड़कियों को इस दलदल से निकालने की कोशिश की जा रही है।