Patna: रेल मंत्री बनने के बाद 100 से ज्यादा देशों ने रेल मिनिस्ट्री से लालू प्रसाद का डिटेल बायोडाटा मंगाया। कई देशों से उनकी पर्सनैलिटी पर जानकारियां मांगी गईं। विशेषकर एशिया, अफ्रिका और लैटिन अमेरिकी देशों की मीडिया में लालू हमेशा छाए रहे। आज भले ही लालू का बुरा दौर चल रहा है, मगर कहना गलत होगा कि लालू ब्रांड पिट चुका है। आगे-आगे देखिए लालू ब्रांड क्या-क्या गुल खिलाता है.
लालू ब्रांड आसानी से नहीं खत्म होने वाला है
कभी वोट देने का अधिकार खो चुके बाल ठाकरे रिलिजन और रिजनलिज्म की खिचड़ी पकाते हुए मरते दम तक पार्टी चला सकते हैं। इतना ही नहीं अपनी रीजनल पार्टी से लोकसभा स्पीकर भी बनवा सकते हैं तो लालू की पॉलिटिक्स क्यों और कैसे खत्म होने वाली है? लालू को चारा घोटाला मामले में सजा मिलने के बाद एक एफबी स्टेटस की ये बातें निराधार नहीं मालूम पड़तीं। मैनेजमेंट और बिजनेस की थ्योरी से भी समझें तो लालू ब्रांड आसानी से नहीं खत्म होने वाला है। ऑपोजिशन उन्हें जोकर कहती है। कांग्रेसी आज तक समझ नहीं पाए कि सोनिया गांधी से उनकी फ्रेंडशिप का राज क्या है, इसलिए हमेशा उनके फेवर में ही होते हैं.
आलोचना तक को भुनाना बखूबी जानते हैं
आखिर ऐसा क्या है लालू में? जवाब सीधा-सा है कि लालू अपनी आलोचना तक को भुनाना बखूबी जानते हैं। 24 मई 2004 को रेल मंत्री बनने के बाद 100 से ज्यादा देशों ने रेल मिनिस्ट्री से उनका डिटेल बायोडाटा मंगाया। कई देशों से उनकी पर्सनैलिटी पर जानकारियां मांगी गईं। विशेषकर एशिया, अफ्रिका और लैटिन अमेरिकी देशों की मीडिया में लालू हमेशा छाए रहे। यही नहीं हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ सोशल साइंस में लालू प्रसाद और बैकवर्ड कम्यूनिटी के वेलफेयर पर रिसर्च किया जा चुका है। भारत से 12 डेलीगेट्स पाकिस्तान गए थे। उस वक्त पाकिस्तानी मीडिया में सिर्फ लालू छाए रहे। पाक प्रेसिडेंट परवेज मुशर्रफ इतने प्रभावित हुए कि पाकिस्तानी फोटोग्राफरों से लालू के मूड और मोमेंट्स का अलबम बनवाया। इसके बाद मुशर्रफ के ऑटोग्राफ के साथ एंबेसी के स्पेशल परमिशन से उसे पटना में पाकिस्तानी ऑफिसर ने भेंट किया। ऐसा और किसी भी डेलीगेट के लिए नहीं किया गया.
प्रशंसकों की संख्या लगातार बढ़ती ही गई
1977 में 29 साल की उम्र में लोकसभा सांसद चुने गए लालू ने कई पॉलिटिकल उतार-चढ़ाव देखे हैं। मगर दुनिया भर में उनके प्रशंसकों की संख्या लगातार बढ़ती ही गई है। बॉलीवुड में 'पद्मश्री लालू प्रसाद यादव' मूवी भी बन चुकी है। हालांकि इसमें सिर्फ कैरेक्टर के नाम में लालू को यूज किया गया है। स्टोरी लालू से रिलेटेड नहीं है। यह तो रही एक फिल्म की बात। बॉलीवुड में कई बड़े नाम लालू के फैन हैं। डायरेक्टर महेश भट्ट को लालू पूरी तरह से पीएम मैटेरियल नजर आते हैं। वहीं बिहारी बाबू शत्रुध्न सिन्हा भी कह चुके हैं कि वे पॉलिटिशियन नहीं होते तो बढिय़ा एक्टर होते.
उन्होंने भी कभी इसका बुरा नहीं माना
लालू लेमनचूस और लालू का खजाना (चॉकलेट), लालू चले ससुराल (लोकल कॉस्मेटिक), लालू पशु आहार, लालू डॉल, लालू सत्तू कोला, लालू खैनी अब मार्केट से लगभग बाहर हो चुके हैं। लालू चारा पशु आहार का 2006 में सालाना टर्नओवर 200 करोड़ से ज्यादा का रहा था। एक समय प्रोडक्ट पर लालू का नाम ही इसके हिट कराने की गांरटी होती थी। सीनियर टीवी जर्नलिस्ट पशुपति शर्मा कहते हैं कि लालू की ब्रांड वैल्यू का गोल्डेन पीरियड रेलवे मिनिस्टर रहते हुए था। अधिकतर मामलों में बाजार ने कभी लालू को जानकारी नहीं दी और उन्होंने भी कभी इसका बुरा नहीं माना। लालू को भुनाने में वेबवल्र्ड पीछे नहीं रहा है। लालू के नाम से हजारों जोक्स ब्लॉग और वेबसाइट पर दिख जाते हैं। मुंबई बेस्ड एक सॉफ्टवेयर कंपनी लालूराबड़ी डॉट कॉम बना कर खूब कमाई कर चुकी है। इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए भी लालू मतलब हाई टीआरपी। भले ही आज लालू का बुरा दौर चल रहा हो, मगर कहना गलत होगा कि लालू ब्रांड पिट चुका है। आगे-आगे देखिए लालू ब्रांड क्या-क्या गुल खिलाता है.
लालू ब्रांड आसानी से नहीं खत्म होने वाला है कभी वोट देने का अधिकार खो चुके बाल ठाकरे रिलिजन और रिजनलिज्म की खिचड़ी पकाते हुए मरते दम तक पार्टी चला सकते हैं। इतना ही नहीं अपनी रीजनल पार्टी से लोकसभा स्पीकर भी बनवा सकते हैं तो लालू की पॉलिटिक्स क्यों और कैसे खत्म होने वाली है? लालू को चारा घोटाला मामले में सजा मिलने के बाद एक एफबी स्टेटस की ये बातें निराधार नहीं मालूम पड़तीं। मैनेजमेंट और बिजनेस की थ्योरी से भी समझें तो लालू ब्रांड आसानी से नहीं खत्म होने वाला है। ऑपोजिशन उन्हें जोकर कहती है। कांग्रेसी आज तक समझ नहीं पाए कि सोनिया गांधी से उनकी फ्रेंडशिप का राज क्या है, इसलिए हमेशा उनके फेवर में ही होते हैं।
आलोचना तक को भुनाना बखूबी जानते हैं आखिर ऐसा क्या है लालू में? जवाब सीधा-सा है कि लालू अपनी आलोचना तक को भुनाना बखूबी जानते हैं। 24 मई 2004 को रेल मंत्री बनने के बाद 100 से ज्यादा देशों ने रेल मिनिस्ट्री से उनका डिटेल बायोडाटा मंगाया। कई देशों से उनकी पर्सनैलिटी पर जानकारियां मांगी गईं। विशेषकर एशिया, अफ्रिका और लैटिन अमेरिकी देशों की मीडिया में लालू हमेशा छाए रहे। यही नहीं हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ सोशल साइंस में लालू प्रसाद और बैकवर्ड कम्यूनिटी के वेलफेयर पर रिसर्च किया जा चुका है। भारत से 12 डेलीगेट्स पाकिस्तान गए थे। उस वक्त पाकिस्तानी मीडिया में सिर्फ लालू छाए रहे। पाक प्रेसिडेंट परवेज मुशर्रफ इतने प्रभावित हुए कि पाकिस्तानी फोटोग्राफरों से लालू के मूड और मोमेंट्स का अलबम बनवाया। इसके बाद मुशर्रफ के ऑटोग्राफ के साथ एंबेसी के स्पेशल परमिशन से उसे पटना में पाकिस्तानी ऑफिसर ने भेंट किया। ऐसा और किसी भी डेलीगेट के लिए नहीं किया गया।
प्रशंसकों की संख्या लगातार बढ़ती ही गई 1977 में 29 साल की उम्र में लोकसभा सांसद चुने गए लालू ने कई पॉलिटिकल उतार-चढ़ाव देखे हैं। मगर दुनिया भर में उनके प्रशंसकों की संख्या लगातार बढ़ती ही गई है। बॉलीवुड में 'पद्मश्री लालू प्रसाद यादव' मूवी भी बन चुकी है। हालांकि इसमें सिर्फ कैरेक्टर के नाम में लालू को यूज किया गया है। स्टोरी लालू से रिलेटेड नहीं है। यह तो रही एक फिल्म की बात। बॉलीवुड में कई बड़े नाम लालू के फैन हैं। डायरेक्टर महेश भट्ट को लालू पूरी तरह से पीएम मैटेरियल नजर आते हैं। वहीं बिहारी बाबू शत्रुध्न सिन्हा भी कह चुके हैं कि वे पॉलिटिशियन नहीं होते तो बढिय़ा एक्टर होते.
उन्होंने भी कभी इसका बुरा नहीं माना लालू लेमनचूस और लालू का खजाना (चॉकलेट), लालू चले ससुराल (लोकल कॉस्मेटिक), लालू पशु आहार, लालू डॉल, लालू सत्तू कोला, लालू खैनी अब मार्केट से लगभग बाहर हो चुके हैं। लालू चारा पशु आहार का 2006 में सालाना टर्नओवर 200 करोड़ से ज्यादा का रहा था। एक समय प्रोडक्ट पर लालू का नाम ही इसके हिट कराने की गांरटी होती थी। सीनियर टीवी जर्नलिस्ट पशुपति शर्मा कहते हैं कि लालू की ब्रांड वैल्यू का गोल्डेन पीरियड रेलवे मिनिस्टर रहते हुए था। अधिकतर मामलों में बाजार ने कभी लालू को जानकारी नहीं दी और उन्होंने भी कभी इसका बुरा नहीं माना। लालू को भुनाने में वेबवल्र्ड पीछे नहीं रहा है। लालू के नाम से हजारों जोक्स ब्लॉग और वेबसाइट पर दिख जाते हैं। मुंबई बेस्ड एक सॉफ्टवेयर कंपनी लालूराबड़ी डॉट कॉम बना कर खूब कमाई कर चुकी है। इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए भी लालू मतलब हाई टीआरपी। भले ही आज लालू का बुरा दौर चल रहा हो, मगर कहना गलत होगा कि लालू ब्रांड पिट चुका है। आगे-आगे देखिए लालू ब्रांड क्या-क्या गुल खिलाता है। chandan.sharma@inext.co.in
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