बंक मारने पर रोक लगानी होगी 
आज पढ़ाई का तरीका काफी बदल गया है। यह क्लासरूम तक ही सीमित नहीं रह गया है। डिजिटल लाइब्रेरी का विशाल संसार और सीखने के कई तकनीकी इनरैक्टिव टूल की वजह को छात्र अघोषित रूप से अच्छा बताते हैं। लेकिन यदि छात्रों के इन बातों को ही आधार मान लिया जाए, फिर भी यक्ष प्रश्न यह है कि आखिर पढ़े क्या? राजधानी पटना के एक सीनियर डॉक्टर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि परीक्षा परिणाम यह सोचने पर विवश कर दिया है कि पढ़ाई को गंभीरता से लेने की जरूरत है। व्हाट्सअप और अन्य सोशल मीडिया पढ़ाई के लिहाज से बेहतर टूल नहीं कहे जा सकते हैं। क्लास में स्टूडेंट्स की उपस्थिति बढ़ानी होगी, बंक करने वालों पर सख्त कार्रवाई करनी होगी.

क्लिनिकल वायवा में लोचा 
सीनियर फिजिशियन डॉ राजीव रंजन ने बताया कि यह बात चिंताजनक है। सभी पहलुओं को समझने की जरूरत है। परीक्षा दो हिस्सों में बंटी है। एक थ्योरी और दूसरा क्लिनिकल वायवा, जिसे प्रैक्टिकल कहना चाहिए। थ्योरी में स्थिति ठीक है। लेकिन क्लिनिकल वायवा पर ध्यान दें तो पता चलता है कि इसमें खराब स्थिति है। इस बार की परीक्षा में अधिकांश छात्र इसी हिस्से में फेल हुए हैं। यह बात सरकार से पूछनी होगी कि मेडिकल लैब की क्या स्थिति है.

क्लास रूम स्टडी ही बेहतर 
डॉक्टर राजीव रंजन बताते हैं कि आज की पीढ़ी के छात्र मेडिकल की पढ़ाई के लिए क्लास रूम से कहीं ज्यादा डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक बुक से पढ़ते हैं, क्लास नहीं आते हैं। लेकिन मेरा मानना है कि क्लास रूम स्टडी ही बेहतर है। क्योंकि आज भी इलेक्ट्रिॉनिक कम्यूनिकेशन वन-वे ही है। इस प्रकार इनटैक्सशन नहीं होने से छात्र विफल हो रहे हैं.

टर्मिनल एग्जाम में भी फेल 
हद यह है कि इस बार 69 छात्र कॉलेजों की ओर से आयोजित टर्मिनल परीक्षा में भी फेल हो गए।  इन सभी परीक्षाओं का संचालन आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी ने किया था। 2015 बैच के एमबीबीएस फस्र्ट ईयर के 950 
छात्र-छात्राएं परीक्षा में शामिल हुए थे.

फेल हुए स्टूडेंट्स की संख्या 
कॉलेज 2015 2016
अनुग्रह नारायण म। मे। कॉलेज 07 51 
दरभंगा मेडिकल कॉलेज 19 08 
जवाहर लाल मेडिकल कॉलेज 31 18 
पटना मेडिकल कॉलेज 33 15 
श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज 08 32 
दरभंगा मेडिकल कॉलेज 19 08 
नालंदा मेडिकल कॉलेज 15 07

पांच साल से खराब रिजल्ट 
एमबीबीएस के रिजल्ट पर गौर करें तो करीब पांच साल से रिजल्ट लगातार खराब हो रहा है। वर्ष 2014 में 104 छात्र फेल हो गए थे। इसमें मुजफ्फरपुर, भागलपुर और गया के छात्र थे। इसका एक मुख्य कारण यह माना जा रहा है कि प्रदेश भर के मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों की कमी है। वजह सरकार मेडिकल शिक्षकों को इंजीनियरिंग शिक्षकों जैसा मानदेय नहीं देती। प्रमोशन मिलने में भी देरी होती है। 2014 बैच में सर्वाधिक फेल छात्र (33) पटना मेडिकल कॉलेज से थे जबकि 2015 बैच में अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज, गया के 100 में से 51 छात्र फेल हो गए हैं.

यह पाया गया है कि परीक्षा में क्लिनिकल वायवा के हिस्से में ही अधिकांश छात्र फेल हैं। पहले भी संबंधित संस्थान के प्रिंसिपल से शैक्षिक स्तर बढ़ाने को कहा गया है. 
- राजीव रंजन, एग्जाम कंट्रोलर, एकेयू

मेडिकल स्टूडेंट पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। यह चिंताजनक है।  पढ़ाई का माहौल बनाने के लिए सुधार जरूरी है। अटेंडेंस पर भी कड़ाई होना चाहिए.
- डॉ एसएन सिन्हा, प्रिंसिपल, पटना मेडिकल कॉलेज

छात्रों के लिए डिजिटल कंटेंट आसानी से और पर्याप्त मात्रा में उपलŽध है। लेकिन इसमें इनटरैक्शन का वह स्तर नहीं है जो  क्लास रूम स्टडी का है. 
- डॉ राजीव रंजन, सीनियर डॉक्टर 

 

 

बंक मारने पर रोक लगानी होगी 

आज पढ़ाई का तरीका काफी बदल गया है। यह क्लासरूम तक ही सीमित नहीं रह गया है। डिजिटल लाइब्रेरी का विशाल संसार और सीखने के कई तकनीकी इनरैक्टिव टूल की वजह को छात्र अघोषित रूप से अच्छा बताते हैं। लेकिन यदि छात्रों के इन बातों को ही आधार मान लिया जाए, फिर भी यक्ष प्रश्न यह है कि आखिर पढ़े क्या? राजधानी पटना के एक सीनियर डॉक्टर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि परीक्षा परिणाम यह सोचने पर विवश कर दिया है कि पढ़ाई को गंभीरता से लेने की जरूरत है। व्हाट्सअप और अन्य सोशल मीडिया पढ़ाई के लिहाज से बेहतर टूल नहीं कहे जा सकते हैं। क्लास में स्टूडेंट्स की उपस्थिति बढ़ानी होगी, बंक करने वालों पर सख्त कार्रवाई करनी होगी।

 

क्लिनिकल वायवा में लोचा 

सीनियर फिजिशियन डॉ राजीव रंजन ने बताया कि यह बात चिंताजनक है। सभी पहलुओं को समझने की जरूरत है। परीक्षा दो हिस्सों में बंटी है। एक थ्योरी और दूसरा क्लिनिकल वायवा, जिसे प्रैक्टिकल कहना चाहिए। थ्योरी में स्थिति ठीक है। लेकिन क्लिनिकल वायवा पर ध्यान दें तो पता चलता है कि इसमें खराब स्थिति है। इस बार की परीक्षा में अधिकांश छात्र इसी हिस्से में फेल हुए हैं। यह बात सरकार से पूछनी होगी कि मेडिकल लैब की क्या स्थिति है।

 

क्लास रूम स्टडी ही बेहतर 

डॉक्टर राजीव रंजन बताते हैं कि आज की पीढ़ी के छात्र मेडिकल की पढ़ाई के लिए क्लास रूम से कहीं ज्यादा डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक बुक से पढ़ते हैं, क्लास नहीं आते हैं। लेकिन मेरा मानना है कि क्लास रूम स्टडी ही बेहतर है। क्योंकि आज भी इलेक्ट्रिॉनिक कम्यूनिकेशन वन-वे ही है। इस प्रकार इनटैक्सशन नहीं होने से छात्र विफल हो रहे हैं।

 

टर्मिनल एग्जाम में भी फेल 

हद यह है कि इस बार 69 छात्र कॉलेजों की ओर से आयोजित टर्मिनल परीक्षा में भी फेल हो गए।  इन सभी परीक्षाओं का संचालन आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी ने किया था। 2015 बैच के एमबीबीएस फस्र्ट ईयर के 950 

छात्र-छात्राएं परीक्षा में शामिल हुए थे।

 

फेल हुए स्टूडेंट्स की संख्या 

कॉलेज 2015 2016

अनुग्रह नारायण म। मे। कॉलेज 07 51 

दरभंगा मेडिकल कॉलेज 19 08 

जवाहर लाल मेडिकल कॉलेज 31 18 

पटना मेडिकल कॉलेज 33 15 

श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज 08 32 

दरभंगा मेडिकल कॉलेज 19 08 

नालंदा मेडिकल कॉलेज 15 07

 

पांच साल से खराब रिजल्ट 

एमबीबीएस के रिजल्ट पर गौर करें तो करीब पांच साल से रिजल्ट लगातार खराब हो रहा है। वर्ष 2014 में 104 छात्र फेल हो गए थे। इसमें मुजफ्फरपुर, भागलपुर और गया के छात्र थे। इसका एक मुख्य कारण यह माना जा रहा है कि प्रदेश भर के मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों की कमी है। वजह सरकार मेडिकल शिक्षकों को इंजीनियरिंग शिक्षकों जैसा मानदेय नहीं देती। प्रमोशन मिलने में भी देरी होती है। 2014 बैच में सर्वाधिक फेल छात्र (33) पटना मेडिकल कॉलेज से थे जबकि 2015 बैच में अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज, गया के 100 में से 51 छात्र फेल हो गए हैं।

 

यह पाया गया है कि परीक्षा में क्लिनिकल वायवा के हिस्से में ही अधिकांश छात्र फेल हैं। पहले भी संबंधित संस्थान के प्रिंसिपल से शैक्षिक स्तर बढ़ाने को कहा गया है. 

- राजीव रंजन, एग्जाम कंट्रोलर, एकेयू

 

मेडिकल स्टूडेंट पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। यह चिंताजनक है।  पढ़ाई का माहौल बनाने के लिए सुधार जरूरी है। अटेंडेंस पर भी कड़ाई होना चाहिए।

- डॉ एसएन सिन्हा, प्रिंसिपल, पटना मेडिकल कॉलेज

 

छात्रों के लिए डिजिटल कंटेंट आसानी से और पर्याप्त मात्रा में उपलŽध है। लेकिन इसमें इनटरैक्शन का वह स्तर नहीं है जो  क्लास रूम स्टडी का है. 

- डॉ राजीव रंजन, सीनियर डॉक्टर