PATNA: आधुनिक शिक्षा आत्म केन्द्रित हो गई है। पढ़ना है नौकरी करना है, बेहतर भौतिक संसाधन जुटाना है। अनुशासन, संस्कार, कर्मठता, परोपकार आदि पढ़ने वाले के व्यक्तित्व में शामिल नहीं दिख रहे हैं। महामना मदन मोहन मालवीय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना राष्ट्र निर्माण के लिए था, न कि कैरियर बिल्डिंग के लिए। उनका मानना था कि जब राष्ट्र निर्माण होगा तो कैरियर बिल्डिंग का लक्ष्य स्वत: ही पूरा हो जाएगा। उक्त बातें कार्यक्रम के चीफ गेस्ट एवं मुख्य वक्ता बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के वीसी डॉ गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने कहा। यह मौका था भारत रत्‍‌न महामना सम्मान समारोह एवं महामना मालवीय स्मृति व्याख्यानमाला के अंतर्गत प्रथम व्याख्यान का। इसका विषय था- महामना और आधुनिक शिक्षा। कार्यक्रम की अध्यक्षता बिहार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह ने की। डॉ गोपाल प्रसाद सिन्हा कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

स्वतंत्रता की शर्त

डॉ गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने महामना मदन मोहन मालवीय की बातों को दोहराते हुए कहा कि भारत अब अंग्रेजों से जल्द ही आजाद हो जाएगा। लेकिन बड़ी चिंता इस आजादी एवं संप्रभुता को बनाये रखने की होगी। क्योंकि ज्ञान एवं आत्म निर्भरता के बगैर किसी देश, किसी संस्थान और किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को अधिक समय तक बरकरार रखना मुश्किल है। उन्होंने महामना की कृतियों को याद करते हुए कहा कि इसी प्रेरणा से उन्होंने राष्ट्रभक्ति का परिचय दिया और बीएचयू की स्थापना की।

महामना क्यों कहा गया

व्याख्यानमाला के दौरान डॉ गिरीश ने इस बात पर जोर दिया कि मदन मोहन मालवीय क्यों महामना कहलाये। उन्होंने उनकी अनेकों साहसिक एवं जटिल लक्ष्यों का उदाहरण रखते हुए बताया कि वे अपने सभी लक्ष्यों को पूरा करते थे। इसलिए उन्हें महामना कहा गया। कहा कि भारत रत्‍‌न तो कई हैं, लेकिन महामना सिर्फ वे ही हैं।

सबसे बड़ा दोष शिथिलता

समाज को दुष्ट लोगों की दुष्टता से कहीं अधिक अच्छे लोगों की शिथिलता से नुकसान हुआ है। आज जरूरी है कि शिक्षा संस्कार, साम‌र्थ्य, अनुशासन स्थापित करने का एक उपक्रम होना चाहिए। इसके लिए कर्मठता, पुरूषार्थ, धैर्य की जरूरत है।

आधुनिक शिक्षा के दोष

व्याख्यानमाला में आधुनिक शिक्षा के दोष की चर्चा के दौरान यह बात उभर कर आयी कि इसमें मूल्यों, संस्कारों की कमी है। इस दौरान एक सवाल उभरकर सामने आया कि क्या कोई पढ़ा लिखा किसी स्त्री का अपमान कर सकता है। यह बात अब आम है। आजादी के बाद शिक्षा के स्तर में गिरावट आयी है। डॉ गिरिश ने कहा कि आज बड़ी समस्या है कि युवाओं को सब कुछ चाहिए और तुरंत चाहिए। उनमें अनुशासन की कमी है। इसे आत्म केन्द्रित होने की बजाय सामाजिक एवं सास्कृतिक रूप से व्यापक करने वाला होना चाहिए।

समाज को हम अधिक दे

विशिष्ट अतिथि डॉ गोपाल प्रसाद सिन्हा ने कहा कि जब तक शिक्षा को धर्म, संस्कृति, सामाजिक संवेदना से नहीं जोड़ा जाएगा तक तक यह समाज के लिए व्यापक रूप से लाभकारी नहीं हो सकता है। कहा कि गांधीजी, स्वामी विवेकानंद और महामना आधुनिक भारत के निर्माता है। उन्होंने डॉ जेसी बोस की सिम्पोजियम में कही बातों का जिक्र किया। कहा कि समाज हमें जितना देता है, हमें समाज को उससे अधिक देना चाहिए। तभी एक सबल समाज का निर्माण हो सकता है। इस अवसर पर महामना मालवीय मिशन, बिहार के अध्यक्ष डॉ अजय कुमार, महासचिव मृत्युंजय कुमार, सचिव शांतनु कुमार व अन्य उपस्थित थे।

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सेमिनार की मुख्य बातें

- आधुनिक भारत के अधिष्ठाता थे गांधी, महामना और स्वामी विवेकानंद

- स्वतंत्रता, संप्रभुता को बनाये रखने के लिए ज्ञान की है सख्त दरकार

- राष्ट्रीय पटल पर ज्ञान के प्रचार-प्रसार में बीएचयू का योगदान अतुलनीय

- समाज हमें जितना देता है उससे अधिक देना चाहिए

- शिक्षा को संस्कृति, धर्म, देश भक्ति से जोड़ने की है जरूरत

- व्यक्ति का व्यक्तित्व विकास करने का लक्ष्य होना चाहिए शिक्षा का

- कर्मठता, इमानदारी और संस्कार की कमी है आज की शिक्षा प्रणाली में

- युवाओं को तुरंत और सबकुछ चाहने की प्रवृति घातक